हम जीतेंगे
हम जीतेंगे, हम जीतेंगे
लाज़िम है कि हम ही जीतेंगे
वो दिन कि जिसका अरमां है
हम सारे जनों का फ़रमां है
जब ये भय, ये दहशत का आलम
बन इक गुबार उड़ जाएंगे
बेशक़ हम दिलों को जोड़ेंगे
औऱ ज़ंजीरों को तोड़ेंगे
लेकिन, लेकिन…….
ना रखे दुश्मन कोई भरम
नहीं है मुश्किल कोई करम
ग़र वो ज़रूरत आन पड़ी तो
नदियों का मुख मोड़ेंगे
पर्वत का सीना चीरेँगे
औ चक्रव्यूह सा घेरेंगे
सारे देश की जनता के
जब एक साथ दिल धड़केँगे
हम जीतेंगे, हम जीतेंगे
लाज़िम है कि हम ही जीतेंगे
जब हमें डराने वाली ताक़त
इच्छाशक्ति तले रौंदी जायेगी
औऱ हमारे हौसलों की कूवत
मानवता का मान बढ़ाएगी
हम अपनी पारी खेलेंगे
औऱ कसके जो़र लगाएंगे
हरगिज़ न उसे जीतने देंगे
अपना ही परचम लहरायेंगे
ये दिन भी आखिर बीतेंगे
हम जीतेंगे, हम जीतेंगे
लाज़िम है कि हम ही जीतेंगे
कितना भी दहलाने की कोशिश
दुश्मन की न क़ामयाब होगी
जब हरेक हौसले की मँजिल
बस औ बस आफ़ताब होगी
इस देश की मिट्टी सोना है
श्रमिकों के श्रम से निखरती है
औ शूरवीर सैनिकों के दम पे
भारतमाता भी विहँसती है
फ़िर हमें अब भय किसका
आँखें तरेरने वालों के
दिल पे नश्तर चलवायेँगे
जीर्ण पड़ी इस दुनिया में
एक नया सवेरा लाएँगे
फ़िर सुंदर संसार बसाएँगे
बस नाम रहेगा इँसां का,और
सब मिलकर के गाएँगे
हम जीतेंगे, हम जीतेंगे
लाज़िम है कि हाम ही जीतेंगे
रेखा सिंह