होली में
यही हसरत मेरे दिल में रही हर बार होली में,
करूं रंगीन गोरी के कभी रुखसार होली में ।
नहीं हद से गुज़र जाना हदों में मयकशी करना
हैं वरना नालियों में गिरने के आसार होली में।
चलेंगे दौर गुंजियो के चलेंगे दौर खुशियों के
चले आओ हमारे घर हैं हम तैयार होली में ।
हो साली या के हो भाभी सलीके से रंगो इनको
नहीं फिर तो यह लाज़िम है पड़ेगी मार होली में।
है कुछ हाथों में ठंडाई है कुछ हाथों में अंगूरी
नहीं ढूंढे मिलेगा साहिबे किरदार होली में।
हुआ बीते बरस में जो गिरा दो खाक़ उस पर अब
मिटा दो तल्ख़ियां दिल की लुटा दो प्यार होली में।
पंकज त्यागी ‘असीम’