होली पर आओ कान्हा
नर है वो मनमाना, होली का करे बहाना,
होली के बहाने से वो,डाले कुड़ियों को दाना।।
रंग ले अबीर ले और साथ में है भाँग छाना,
मनमौजी छैला है, वो बातों में न कोई आना
होली की मादकता में उसका न कोई सानी,
गुलाल की आड़ में वो कर रहा मनमानी।।
नर है वो मनमाना, होली का करे बहाना,
होली के बहाने से वो,डाले कुड़ियों को दाना।।
चितचोर कान्हा बने सबका दुलार चखे,
राधा रानी जिसे देखो अपना कन्हैया कहे,
आज की नारी को ना भाए कोई छलिया,
वो तो बस राम जैसा आदर्श किशोर कहे।।
नर है वो मनमाना, होली का करे बहाना,
होली के बहाने से वो,डाले कुड़ियों को दाना।।
अब कहाँ होली का वो प्रेम कहाँ गोपियाँ,
कहाँ मथुरा का रास, बृज की वो गलियाँ,
चले आओ साँवरे बाँसुरी की तान लेके,
इस हाहाकार में पुकारती है दुनिया।।
नर है वो मनमाना, होली का करे बहाना,
होली के बहाने से वो,डाले कुड़ियों को दाना।।
जहां में अमन करो होलिका दहन करो,
इन पापी असुरों का जग से हरण करो,
आज भी कई दुशासन खुले आम घूम रहे,
पांचाली उद्धार के लिए अब अवतरण करो।।
कान्हा है वो मनमाना, होली का करे बहाना,
होली के बहाने से अब,धरती पर पुनः आना।।
डॉ मीनू पाराशर ‘मानसी‘
दोहा-कतर