तेरे संग का रंग

तेरे संग का रंग

होली में हमारे घर भांग पिसी जाती और उसे छुपा कर ठंडई में, पुआ में डाल दिया जाता ताकि देवरों नंदो को पता न चल पाए भाभी के मज़ाक का, और पति को भी आनंद के रंग में डुबो दिया जाए। उन दिनों परिवार बड़ा था और होली में मायका ससुराल के रिश्तेदार सब इक्ट्ठे खाना पीना करते। कभी दही बड़े के घोल से ही चेहरे पर पुताई हो जाती तो कभी पुए के घोल से, पानी का रंग से इश्क परवान चढ़ने का इंतजार कौन करे। भांग अपना रंग शाम तक दिखाना शुरू करता और फिर होली की शाम इतनी रंगीन हो जाती कि उसके रंगों को स्मृतियों से मिटा पाना मुमकिन नहीं । ऐसी ही एक होली याद आती है जब हमारे पति को भांग चढ़ गई। दोस्तों की टोली में साथ निकलकर मुहल्ले में घर घर जा कर पड़ोसियों के साथ रंग भी खेला और पुआ पूड़ी भी खा लिया। किसी ने मेरी तरह ही ठंडई में चुपके से भांग मिला कर प्यार से होली के नाम पर पिला दिया। हमलोग डिंडली एनक्लेव कदमा में रहते थे।

टाटा स्टील के अफसरों की यह कॉलोनी एक दूसरे से सटे हुए घर और अपने अड़ोस पड़ोस से घनिष्ठ संबंध। धीरे धीरे सभी अपने अपने घर लौट गए पर मेरे पति महाशय का मैं इंतजार कर रही थी कि आयेंगे तब एक बाल्टी रंग जो छुपा कर दरवाजे के पीछे रखा है उससे सराबोर कर दूंगी। लेकिन पति देव अपने घर न आ कर ये किसके घर घुस रहें हैं…… ओह गनीमत है उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ…..अब आयेंगे अपने घर । अरे नही यह क्या ये तो फिर किसी और के घर जा रहें हैं , इस बार पड़ोसन निकलकर बोली यहां जूही नही रहती मैं होली नहीं खेलती सिन्हा जी को बुलाती हूं। पति को बात कुछ समझ नहीं आई।मेरे घर में सिन्हा जी कौन हैं…..निकलकर आ गए और अपने घर की बजाए बगल वाले घर के गेट को खोल कर अंदर जाने लगे इसके पहले कि मेरी सुंदर पड़ोसन मौके का फायदा उठा कर अपने घर बिठा कर उन्हें गुजिया और ठंडई पिलाती मैने जोर से आवाज देकर बुलाया, अपना घर भी भूल गए क्या अपनी बीबी बच्चों को तो पहचान लो । लड़खड़ाते कदमों से अपने घर आए और दरवाज़े के पीछे रंगों की बाल्टी भूल कर मैंने उन्हें ऐसे प्यार में रंग कि अब 37 वर्षों में कभी किसी राह पर उन्होंने मुझे नहीं छोड़ा। पिया के संग प्यार का रंग बना रहे।

डॉ जूही समर्पिता
जमशेदपुर, झारखंड

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