हिन्दी दिवस : चुनौतियां व प्रोत्साहन
आजादी के 76 वर्ष पूरे हो गए परन्तु हिन्दी राजभाषा से राष्ट्रभाषा का सफर नहीं तय कर पाई। विविध भाषाओं एवं संस्कृतियों की संगमस्थली भारत में आज की वर्तमान तिथि तक
हिंदी जन – जन की भाषा है भी नहीं।कई प्रांतों में उनकी स्थानीय भाषाएं ही जन को जन से जोड़ती हैं।वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की 41 फीसदी आबादी की ही मातृभाषा हिंदी है। लगभग 75 फीसदी भारतीयों की दूसरी भाषा हिंदी है जो इसे बोल और समझ सकते हैं।भारत का दक्षिणी हिस्सा एवं पूर्वोत्तर क्षेत्र तो इसका विशेष प्रमाण है। स्थानीयता के प्रति विशेष मोह और हिंदी के प्रति दुराग्रह -इन दोनों की उपस्थिति हिंदी की लोकप्रियता और सर्वव्यापकता में बाधक बनी रही। हिंदी की रोजगारपरक शक्ति भी वर्तमान परिवेश के अनुसार अशक्त है।अधिकतर बहुअंतरराष्ट्रीय कंपनियों के कामकाज अंग्रेजी भाषा में होना इसके प्रभाव को कम कर देता है । इसलिए माता-पिता एवं अभिभावकों का झुकाव अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूलों में ही बच्चों को शिक्षा प्रदान करने की ओर है , जहां हिंदी सिर्फ एक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है और वह भी उपेक्षित विषय के रूप में। स्वयं छात्र भी इसे इस रूप में देखते हैं। समाज की दोरंगी मानसिकता, जिसके तहत अंग्रेजी बोलने वाले लोग अधिक सक्षम और उन्नत माने जाते हैं, हिंदी के विकास में बाधक बनकर खड़ी हो जाती है।अंग्रेजी में बोलना बुद्धिजीविता का प्रतीक चिन्ह बन गया है। हमारे वर्तमान समाज की बोलचाल की भाषा ; खासकर मध्यम वर्ग की;इसी ग्रंथि से प्रेरित दिखाई दे रही है। भाषा में अनावश्यक रूप से भी अंग्रेजी शब्दों के प्रयोग का बड़ा प्रचलन है। किसी दूसरी भाषा को सिखना या उसके शब्दों को बोलने के क्रम में उपयोग में लाना अनुचित नहीं ; अनर्थ तो तब जबकि ऐसा प्रयोग केवल आडंबर के लिए किया जा रहा हो। हमारे बॉलीवुड के कलाकार इसके सबसे सटीक उदाहरण हैं; जिनकी रोजी-रोटी तो चलती है उनकी फिल्मों के हिंदी भाषा के डायलॉग से परंतु अधिकांश इंटरव्यू या प्रेस के सामने कोई भी वक्तव्य प्रायः अंग्रेजी में ही होता है। इस दोहरे व्यवहार के उत्तर में सबसे अच्छा जवाब है वर्तमान में ही दिल्ली में संपन्न हुए जी-20 सम्मेलन में एक विदेशी महिला प्रतिनिधि का प्रेस के समक्ष हिंदी में बोलना। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विशेष कर तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में हिंदी की सीमाएं इसके वर्चस्व को बनाए रखने में सक्षम नहीं रह पाती ।हिंदी अपने आप में समृद्ध और पूर्ण रूप से व्याकरण सम्मत भाषा है-और जब तक इसके बोलने वाले स्वयं हिंदी को लेकर गर्व का अनुभव नहीं करेंगे,हिंदी को लेकर पल रही ग्रंथि हिंदी को गौरव दिलाने में बाधक बनकर खड़ी रहेगी।
अंसतुष्ट परिस्थितियों के बीच भारत में हिंदी साहित्य से जुड़ा समाज हिंदी के पोषण और संवर्धन के कार्य में लगा हुआ है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हिंदी साहित्य प्रेमी लोग अनेक संगठनों एवं कार्यक्रमों के माध्यम से हिंदी की फसल को लहलहाने का कार्य कर रहे हैं। अनेक पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद होना, हिंदी की पुस्तकों का अन्य भाषाओं में अनुवाद होना, हमारी संस्कृति की ओर अन्य संस्कृति के लोगों का झुकाव , इंटरनेट के क्षेत्र में हिंदी का बढ़ता प्रयोग,विदेशी धरती पर बसे भारतीय मूल के लोगों के द्वारा हिंदी का पोषण,सरकारी कामकाज में हिंदी का प्रयोग —इस क्षेत्र में आशा से पूर्ण कुछ किरणें हैं ।गूगल के अनुसार भारत में अंग्रेजी भाषा में जहाँ विषयवस्तु निर्माण की रफ्तार 19 फीसदी है तो हिंदी के लिए ये आंकड़ा 94 फीसदी है ।
हिन्दी दिवस के दिन सरकार द्वारा दिया जानेवाला हिंदी में अच्छे कार्य के लिए ”राजभाषा कीर्ति पुरस्कार योजना” के अंतर्गत कुल 39 की संख्या में पुरस्कार किसी विभाग, मण्डल, समिति आदि को दिया जाता है।अंतरिक्ष विभाग जैसे विभागों को राजभाषा हिंदी के प्रोत्साहन के लिए राजभाषा कीर्ति पुरस्कार योजना प्राप्त होना अपने आप में अनुपमेय है । यह विज्ञान में हिंदी की दर्ज होती उपस्थिति का द्योतक है।हिंदी में लेखन के लिए राजभाषा गौरव पुरस्कार का भी प्रावधान है। राजभाषा गौरव पुरस्कार हिन्दी दिवस पर हिन्दी भाषा में भारत के किसी भी नागरिक द्वारा ज्ञान-विज्ञान के मौलिक पुस्तक लिखने पर और केन्द्र सरकार के कर्मियों (सेवानिवृत्त सहित) द्वारा पुस्तक या उत्कृष्ट लेख लिखने हेतु मिलता है। केंद्र सरकार के कार्यालयों की मांग पर केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान द्वारा वीडियो कान्फ्रेसिंग के माध्यम से भी हिंदी भाषा, हिंदी टंकण एवं हिंदी आशुलिपि का प्रशिक्षण दिया जाता है । केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो द्वारा भी अनुवादकों को प्रशिक्षण देने के लिए इसी प्रकार के प्रबंध किए गए हैं। सरकार की सभी मंत्रालय हिंदी के विकास के लिए पत्रिकाएं निकलते हैं, पर जरूरी यह भी है इन पत्रिकाओं की पहुंच जन-जन तक हो ।
सरकार से इतर जनता के स्तर पर हिंदी की लोकप्रियता को बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि गैर हिंदी क्षेत्र में हिंदी के क्लिष्ट रूप से परहेज किया जाए ।सरकारी कामकाज की भाषा सरल एवं सुगम हो, न्यायालय में भी सरल हिंदी के प्रसार को महत्व दिया जाए ताकि जनसाधारण सहजता से हिंदी से जुड़ सके।बाल साहित्य में हिंदी का यथासंभव प्रचार- प्रसार किया जाए ताकि नवजात पौध को हिंदी से प्रेम हो,हिंदी की समझ हो। जगह- जगह के लोकगीत , लोकगाथा ,लोक संस्कृति को हिंदी में अधिक से अधिक बुना जाए ताकि अहिंदी भाषी क्षेत्रों के लोगों को हिंदी अपनी लगे , बिल्कुल घर की।हर प्रांत में (अहिंदी भाषी प्रांतों में भी )विशेष सूक्तियां ,स्थानों के नाम , विशेष संदेश , सड़कों पर लिखे गए निर्देश , जनहित में जारी की गई सूचनाएं स्थानीय भाषा के साथ-साथ हिंदी में भी लिखी जाए।इस क्षेत्र में हर प्रांत के जननायकों का भी महत्वपूर्ण योगदान होगा , अगर वह अपने उद्बोधन और संबोधन में हिंदी का अधिक से अधिक प्रयोग करें ; बशर्ते क्षुद्र राजनीति का स्वार्थ उन्हें अपने चुंबकत्व से आजाद कर सके। विज्ञापन, जिसकी पहुंच एक-एक घर तक है, अपने सटीक शब्दों और मधुर शैली के द्वारा’हर घर हिंदी ‘ का वाहक हो सकता है। स्वयं हिंदी को भी बहुत उदारमना होना होना होगा । हिंदी भी बहुत विस्तृत हृदय रखती रही है अन्य भाषाओं से शब्दों को ग्रहण करने के लिए; विदेशज शब्द हिंदी के खजाने में आयातित मोती हैं।हिंदी भाषियों को भी गैर हिंदी भाषियों को खुले दिल से स्वीकार करना होगा ,उनकी भाषा-संस्कृति को समझना और आदर देना होगा तभी वे भी हिंदी को खुले मन से स्वीकार करने को तैयार होंगे।सत्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि हिंदी भारत की अखंडता की आधारशिला है ।
रीता रानी
जमशेदपुर, झारखण्ड