हिंदी ऐसी भी

हिंदी ऐसी भी

“सुनिये, आप मेरा मोबाइल दुकान पर जाकर दिखा लाओ। इसमें बहुत दिनों से राहुल का फोन नहीं आ रहा। शायद अमेरिका का नेट यहाँ काम नहीं कर रहा।”, वेणु हाथ में लिए मोबाइल को किशोरजी को देते हुए बोली।
“अरे वेणु..”, कहते हुए किशोरजी बोलते हुए चुप हो गए और मोबाइल लेकर टेबल पर रख दिया। अखबार में नजर डालकर उन्होंने अपनी आंखों में आई नमी को वेणु से छिपा ली।
“कितना लेट आएगी लक्ष्मी ? फोन तो कर दिया कर अगर लेट आ रही हो।”, वेणु किशोरजी का यूँ चुप होना समझती उससे पहले आँगन के गेट से अंदर आ रही काम में सहयोग करनेवाली लक्ष्मीबाई को देख बोल उठी।
“अरे मैडमजी, फोन में बैलेंस नहीं था वरना सुबह ही फोन कर देती कि लेट आऊँगी।”, बोलते हुए आती हुई लक्ष्मी फोन टेबल पर रख किचन में जाने लगी तो किशोरजी मूड चेंज कर मुस्कुराते हुए बोले, “लक्ष्मी, नाम तो लक्ष्मी लिए हुए है और पास में बैलेंस नहीं है।”, और तीनों हँस दिए।
किशोरजी किचन में जाती वेणु को देख सोचने लगे कि इकलौते बेटे का साथ न होना वेणु के लिए कितना असहनीय होगा। अभी वे सेवानिवृत्त भी नहीं हुए थे तो उनके ऑफिस जाने के बाद वेणु कितना अकेलापन महसूस करती होगी। कुछ सोचकर वे उठे और किचन के दरवाजे पर खड़े होकर बोले, “सुन लक्ष्मी तेरे बच्चों को दिन में भेज दिया कर वेणु से पढ़ने के लिए।”
“साहबजी, मेरा घर बड़ा दूर है आपके घर से, फिर मेरे बच्चे भी छोटे और नासमझ है। मैं घर जाकर तो थकी हुई सिर्फ अपने घर का काम निबटाती हूँ। उन्हें लाना ले जाना मुझसे नहीं होगा और दोनों को अकेला मैं भेज नहीं सकती।”, लक्ष्मी ने बच्चों को पढ़ाने की इच्छा होते भी न लाने की अपनी बेबसी जाहिर की।
“तू चिंता मत कर। वेणु तेरे बच्चों को फोन से पढ़ा देगी। आजकल तो वैसे भी ऑनलाइन पढ़ाई का जमाना हो गया है।”, किशोरजी के बोलते ही वेणु उन्हें देखने लगी।
“हाँ, हाँ यह ठीक रहेगा लेकिन मेरा मोबाइल इतना बैलेंस बर्दाश्त नहीं कर सकेगा।”, और लक्ष्मी ने लंबी सी सांस ली।
‘तेरा मोबाइल नहीं बर्दाश्त कर सकेगा लेकिन मेरा तो कर सकता है। तू तेरा नम्बर बता तो अभी तेरे मोबाइल की बर्दाश्त बढ़ा देता हूँ ।”, उनके कहते ही लक्ष्मी धो रही उस बर्तन को सिंक में रख अपने गीले हाथों को आँचल से पोछते हुए उनके पीछे चल दी।
मोबाइल में मनी ट्रांसफर की आवाजें सुन वेणु किचन में से बाहर आकर किशोरजी को देखने लगी।
उसे खुद को देखते हुए देख किशोरजी मुस्कुरा दिए।
“वेणु, अब तुम मैडम वेणु बन गई हो। तो बताओ मैडमजी, शुरुआत कहाँ से ?”, किशोरजी बोले तो वेणु के उत्तर देने से पहले ही किचन में जा रही लक्ष्मी बोली, “शुरुआत तो हिंदी से। हिंदी पढ़नी, लिखनी आ जायेगी तो दूसरा सब तो अपने आप सरल होता जाएगा।”
“तो मैडमजी, शुरुआत हिंदी से। अब तुम्हारा मोबाइल भी खराब नहीं रहेगा। इसमें भी घण्टी बोलती रहेगी।”, किशोरजी से यह सुन वेणु ने अपना मुँह झट से मोड़ दिया ताकि उसकी आंखों में आँसू किशोरजी देख न लें।

प्रतिभा जोशी
अजमेर,राजस्थान

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