मां-भारती का युवाओं से “आह्वान”
ये अमृत काल है
ये अमृत काल है
ये अमृत काल है
कसम तुझे उन दिवानो की
जो फंदा चूमकर झुले थे ।
कसम तुझे उन वीरों की
जो होली ख़ून से खेले थे ।
कसम तुझे उन शहीदों की
जो शहादत के लिये ही जन्मे थे ।
तू मुझको मेरा खोया वैभव फिर से दिलवायेगा ।
“सोने की चिड़ियां” का तमगा फिर से मुझे पहनायेगा ।
अखण्ड भारत का अधूरा सपना पूरा कर दिखायेगा ।
इसी अमृत काल में
इसी अमृत काल में
इसी अमृत काल में
कसम तुझे उन विरांगनाओं की
जो जलती चिताओं में कूदी थी ।
कसम तुझे उन मासूमों की
जिनके सिर से साये उठें थे ।
कसम तुझे उन मां-बहिनो की
जो मुझ पर अपना सुहाग चढ़ाती हैं ।
तू मेरे खोये ताज से मेरा शीश फिर सजायेगा ।
“विश्व-गुरु” का मेरा परचम फिर से लहरायेगा ।
अखण्ड भारत का अधूरा सपना पूरा कर दिखायेगा ।
इसी अमृत काल में
इसी अमृत काल में
इसी अमृत काल में
अवधेश गुप्ता
जयपुर,भारत