सब जमींदोज है
अब झील के
शिकारे उदास हैं
पानी का सैलाब
तटबंधों को तोड़
लौट चुका सतह पर
हर तरफ कीच
पसरा हुआ है
पर हालात
सब तरफ
बेतरतीब
टूटने की
निशानियां
तटबंदी देह पर
बेशुमार अनगिनत
कब घाव भरें
कौन जाने
व्यवस्था चरमराई
सबके सब्र बांध
टूट चुके
तुम एक बांध की
व्यथा मत कहो
पीड़ा तुम्हारी
हमारी कम नहीं
रोज नए नारे
भीड़ और गुब्बारे
राजनीतिक रोटियां
मानवीय अलाव पर
सिंकती रहेगी
जवानी बिकती रहेगी
उंगलियां कम हैं
उठने को
हाथ हर कहीं
लहरा रहे हैं
जूझते सवाल
बवाल ही बवाल
बुलडोजर प्रशासन
सब जमींदोज है
अरुण कुमार जैन
इंदौर,भारत
भारत