मातृरुपेण हिंदी

मातृरुपेण हिंदी

हे मातृरुपेण हिंदी!!
हमारी मातृभाषा,
हम सब की ज्ञान की दाता हो,
जब से हमने होश संभाला,
तूने ही ज्ञान के सागर से,
संस्कारों का दीप जलाया,
हर गुरुजनों की शान हो तुम,
उनकी कर्मभूमि हो तुम,
जिसने ज्ञान-विज्ञान,वेद-ऋचाओं,
और!
कर्त्तव्यों का एहसास कराया,
सभ्यता-संस्कृति को जीवित रखा,
देश विदेश को जोड़े रखा,
हिंदी का प्रचार और प्रसार हुआ,
तुम न होती तो!
इतिहास कब का मिट जाता,
आदिकाल से तू अपने ,
जन्मों का मूल्य निभा रही,
वैदिक काल से हर पल को,
जिया है हर काल को,
हर युग की साक्षी हो तुम,
धर्मों का भी ज्ञान दिया,
बहुत उपकार किए तुमने,
आगे भी ज्ञान के सागर से,
अमृत पान कराओगी,
जिसने भी तेरा मान बढ़ाया,
तूने भी उसका शान बढ़ाया,
जीवन मूल्यों का पाठ पढ़ाया,
ज्ञान का प्रकाश भरा,
जन्मों- जन्मों से नाता है,
तुम्हारी प्रगाढ़ता का वादा है,
हम सब जब तक जीएंगे,
तब तक तुम्हारा सम्मान करेंगे,
सभ्यता संस्कृति को बढ़ावा देंगे,
हे मातृरुपेण हिंदी ,
तू न होती तो!!
हम आदि मानव बन रह जाते,
आदि मानव बन रह जाते।

पद्मा प्रसाद
साहित्यकार
जमशेदपुर, झारखंड

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