हमारी हिन्दी
हिंदी हमारी भाषा हैं।
हिंद की परिभाषा हैं।
हिन्दी हमारी संस्कृति हैं।
संस्कार का सुविचार हैं
पहले तो थी दबी-दबी सी।
अब सिर ताने खड़ी हैं।
सहमी सी हिंदी मेरी।
आज सरपट दौड़ रही हैं।
राह अपनी खुद बनाती,
समृद्ध हो रही भाषा हैं।
जुड़ रही है हिन्दी हमारी
नई टेक्नोलॉजी से।
क्षेत्रों का बिस्तार हो रहा,
जगह बनाती जा रही हैं।
लेखक लेखिकाओं की लेखनी
उन्मुक्त हो,खिलखिला रही हैं।
अखंड ज्योत जला विश्व में,
हिन्दी का परचंम लहराये।
सब की चहेती है भाषा हैं।
पर युवा वर्ग से दूर खड़ी हैं।
उनमें हिन्दी भरनी हैं।
कर्णधार जो कल के हैं।
भभिष्म के निर्माता है।
उन सभी को हमें आज
बोलना पढ़ना सीखना है।
हिंदी के प्रति उनमे भी
प्यार उत्साह भरना है।
बड़े , बुजुर्ग,बुद्धिजीवी,
शिक्षक,लेखक और कवि,
अलख जगा दो नई पीढ़ियों में,
सर्वश्रेष्ठ ये भाषा है।
छाया प्रसाद
साहित्यकार
जमशेदपुर, पटना