हिंदी है भारत की कला व संस्कृति की पहचान
विश्व करे इसका सम्मान ।
संस्कृत की बेटी हिंदीभाषियों की है शान।
भारतीय कला व संस्कृति की यही है पहचान ।
तभी तो भारतेंदु ने लिखा था। –
निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति कौमूल,
बिनु निज भाषा ज्ञान के मिटै न हिय कौ सूल ।
हिंदी वैश्विक भाषा है ,पूरे विश्व में समझी जाती है।
दूरदर्शन , पत्र पत्रिका सिनेमा ने इसका किया प्रचार प्रसार ।
तभी तो लोग करते हैं हिंदी की जयजयकार।
फ़ादर क़ामिल बुल्के ,रांगेय राघव सबने हिंदी को किया समृद्ध ।
डॉ रागेय राघव प्रचारक रहे,हिन्दी के।
३९ वर्ष के जीवनकाल में,इस साहित्य प्रहरी ने
हिंदी में ही१५० किताबें लिखीं ।
रूसी तुलसी वरान्निकोव ने तुलसी से प्रेरित हो ,रूसी भाषा में रामायण लिखी ।
अपने कब्र पर लिखवाया-भले भलाईहि पा रहहिं’
अंग्रेजों ने भारत को तोड़ा है,हिंदी ने आसमुद्र हिमालयात् भारत को जोड़ा है ।
-डॉ आशा श्रीवास्तव