हम हिन्दुस्तानी की है शान

हम हिन्दुस्तानी की है शान

प्यारी “मां” की बिंदी ।
सबकी प्यारी हिंदी।।

भारत वर्ष में चारों ओर बोलने वाली अनगिनत भाषाओं में यह कहना की कौन सी भाषा अधिक व कौन सी कम बोली जाती है। उत्तर भारत में हमेशा से ही हिन्दी बोली जाती हैं कि । अनेकों लेखक ,कवि ,संतों ने हिंदी को एक नया आयाम दिया।
पाठ्यक्रम में क से लेकर ज्ञ तक में धीरे धीरे कटौती होती गई। अं अः भी पुस्तकों से नदारत है। कितने कवि लेखकों की रचनाएं चाहे कबीर के “दोहे” हो या रसखान के “सवैये ” सदियों तक मुंह जबानी पीढ़ी दर पीढ़ी स्मरण कराई जाती थी। उसकी छवि और हिंदी की ओर रुझान आजतक स्लेट और पेंसिल से मिटा मिटा कर रटाया जाता था।
आज की शिक्षा पद्धति पूर्णतः बदली सी दिखती है। मात्र खाना पूर्ति करने के लिए पढ़ाई जाती है। वो भी खींच तान कर ज़्यादा से ज़्यादा १० वीं या १२ वीं तक।
इसका नुकसान तब महसूस करा जा सकता है जब आप उच्च स्तरीय प्रतियोगिताओं में सम्मिलित होने पर आठवें दर्जे की हिंदी के व्याकरण को ना समझ पाए।
विवाह कार्ड , निजी कार्ड ,स्कूल द्वारा दिए जाने वाले फॉर्म भरने की प्रक्रिया से लेकर अपनी बात समझाने में हिंदी का उपयोग ही पुनरोत्थान में सहायक होगा।
धन्य है वो ! जिनके बच्चों के संस्कार अपनी धरती, अपने भाषा से जुड़े है, इसका अर्थ यह नहीं कि वो विदेशी सभ्यता से विमुख है ।दोनों जगह का तालमेल बखूबी निभाने में सक्षम है। धन्य है वो माता – पिता ,धन्य है वो शिक्षक – गुरु ,जिनके कारण आज तक हम अपने बरगद रूपी वृक्ष को सिंचित करने में सक्षम हैं।विदेशी भी अपनी मातृ भाषा से नहीं डगमगाते, फिर हम क्यों ??

हम हिन्दुस्तानी की है शान ।
हिंदी राष्ट्रभाषा पर है गुमान ।।

विनी भटनागर
दिल्ली

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