ज्ञान के गौरव

ज्ञान के गौरव

अंधकार से जो प्रकाश का स्वप्न दिखाते हैं
जीवन की शूलभरी राहों पर पुष्प खिलाते हैं
संघर्षों में जो मंगल के गान रचाते हैं
वंदनीय जग में गुरु की अनुपम सौगातें हैं
अमर हुए तुलसी कबीर भी गुरु का ज्ञान मिला
प्रतिभा की जय हुई जगत मे शुभ सन्मार्ग मिला
एकलव्य आरुणि गर्व के गान सुनाते हैं
वंदनीय जग गुरु की अनुपम सौगातें हैं
प्रथम गुरु है मॉ जीवन की पथ दिखलाती है
अपने अंचल की छाया में.सुख सेज बिछाती है
जग में हुए ख्यात ममता के लाल कहाते हैं
वंदनीय जग मे गुरु की अनुपम सौगातें हैं
डगमग होते है पाव अगर तुम हाथ थाम बढ जाते हो.
जीवन की लंबी राहों पर एक राह नयी दिखलाते हो
तुम गुरु,ज्ञान का गौरव हो,निज धर्म, बुद्धि की परिभाषा
अज्ञान तिमिर जब बढ़ जाए, अनुभव के दीप जलाते हो
अतर की कोमल माटी पर करुणा की मजरिया खिलती
तुम हृदय बुद्धि का मान लिए,साक्षर विवेक बन जाते हो
गुरु के चरणों में अर्पित है,शत बार नमन,पावन वंदन
अभिनंदन है शत बार तुम्हें, भावों के दीप करूं अर्पण

पद्मा मिश्रा

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