गीता परिक्रमा
“ गीता ब्रह्म विद्या है,ब्रह्म का ज्ञान कराने वाली विद्या है।किंतु यह केवल ब्रह्म का विवेचन ही नहीं करती,यह उन रास्तों को भी बताती है जिनपर चलकर ब्रह्मानुभूति की जा सकती है।इसीलिए गीता का योगशास्त्र योगदर्शन से बहुत समानता रखते हुए भी विशिष्ट है।“
“य इमं परमं गुह्यं मदभक्तेष्वभिधायस्ति।
भक्तिं मय परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशय:॥”
“ मुझमें पराभक्ति करके जो इस परम गोपनीय संवाद ( गीता ग्रंथ ) को मेरे भक्तों में कहेगा,वह मुझे ही प्राप्त होगा-इसमें कोई संदेह नहीं है।“
’ गीता की महिमा ’
( प्रथम अध्याय:अर्जुन विषाद योग )
“ गीता में आदि-मध्य-अंत-सर्वत्र भगवान का स्वरूप,भगवान की कार्य-पद्धति और भगवान का अवलम्ब ग्रहण करने पर जीव के निस्तार का मार्ग निर्दिष्ट है,तो यह गीता न केवल भगवत-कर्तृ शास्त्र है,बल्कि भगवत कर्म शास्र भी है।भगवत विषयक शास्त्र भी है,इसलिए इस शास्त्र की महिमा निरूपित करते हुए,बड़ी मर्यादा के साथ शंकराचार्य ने कहा-
’ भगवदगीता किंचित धीता गंगा-जलवल-कणिका पीता ’
अर्थात जिसने एक बार किंचित मात्र भी भगवदगीता का अध्ययन कर लिया,जिसने एक बार भी दो-चार बूंदें गंगाजल पान कर लिया,जिसने एक बार भी मुरारी की अर्चना कर दी,यम उसका क्या कर सकता है?”
” गीता के वचन “
( प्रथम अध्याय : अर्जुन विषाद योग )
“ किसी भी विषय की चर्चा के समय जब कोई शंका होती है तब प्रमाण के रूप में गीता के वचनों को उद्धृत किया जाता है।यह प्रमाण है यानी प्रमा का,ज्ञान का,ब्रह्म का निर्धारण करने वाला शास्त्र है।हम विनम्रता के साथ इस गीता अनुशीलन की ओर अपनी चित्तवृत्ति को केन्द्रित करें।“
” गीता शास्त्र का महत्व “
( प्रथम अध्याय:अर्जुन का विषाद योग )
“ गीता जिस धर्मशास्त्र का निरूपण कर रही है,वह धर्मशास्त्र केवल यज्ञशाला के लिए नहीं है।यज्ञशाला के लिए,अरण्य के लिए निरूपित धर्मशास्त्र और रणभूमि में निरूपित धर्मशास्त्र- इन दोनों में जो अंतर है,वह भी हृदयंगम होना चाहिए।’ धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे ’- इस बात पर ध्यान दीजिए कि हमारे धर्मग्रंथों का अर्थानुसंधान तीन स्तरों पर,तीन भूमिकाओं पर किया जाता है-आधिभौतिक स्तर पर,अधिदैविक स्तर पर और आध्यात्त्मिक स्तर पर।इन तीनों स्तरों पर गीता शास्त्र का अपना महत्व है।“
” कृपा का प्रथम आलम्बन “
( प्रथम अध्याय:अर्जुन विषाद योग )
“ आधिभौतिक स्तर पर गीता कौरवों और पांडवों के युद्ध का,महाभारत युद्ध का उपोदघात है।युद्ध भूमि में दोनों पक्षों की सेनाएं उपस्थित हैं और अर्जुन के मन में दोनों पक्षों की सेनाएं एकत्र देखने की इच्छा होती है।गीता का आरंभ तो वहां से होता है;लेकिन इसमें भी एक बात पर ध्यान दीजिए।गीता हमको किसके माध्यम से मिली?गीता हमको धृतराष्ट्र और संजय से मिली है।भगवान की कैसी अदभुत करुणा है,कैसी अदभुत कृपा है कि प्रथम आलम्बन उन्होंने एक अंधे को बनाया जो दोनों दृष्टियों से अंधा है।उसके चर्म चक्षु तो नहीं ही हैं,उसके ज्ञान चक्षु भी नहीं हैं।“
प्रवचन-आचार्य विष्णु कांत शास्त्री.
संपादन-डॉ. नरेंद्र कोहली
प्रस्तुति-डॉ सी भास्कर राव