इंग्लिश  समुद्री  डाकू  और  मुग़ल  सल्तनत 

                                                                           

इंग्लिश  समुद्री  डाकू  और  मुग़ल  सल्तनत 

         इंग्लैंड के संसद भवन में प्रमुख द्वार से अंदर जाते ही सीधे हाथ वाली दीवार पर एक अति विशाल चित्र बना है ,जिसमे मुग़ल सम्राट , नूरुद्दीन सलीम जहांगीर अंग्रेज कारिंदे सर थॉमस रो को भारत भूमि पर  व्यापार करने का पत्र दे रहा है।  इंग्लैंड के इतिहास में आज की तारीख तक ,यह सबसे महत्वपूर्ण घटना है। इसके बाद ही सोने की चिड़िया  भारत से उड़कर  इंग्लैंड के राजमहल में जा बैठी और आज तक ,पैदा चाहे जहां हो ,अपना घोंसला वहीँ बनाती है।भारत के लिए यह डूब मरने का दिन था।  हिमालय के स्वर्ण मुकुट से सुशोभित, नर्मदा के हीरों से मंडित , ऋषि मुनियों के स्वरसप्तक से गुंजायमान स्वर्णगर्भा धरती ,धूर्तों और डाकुओं का गढ़ बन गयी। 

            कोई कोई अपना सितारा इतना उद्दीप्त लेकर पैदा होता है कि सब उसके समक्ष फीका पड़  जाता है। हेनरी अष्टम की द्वितीय रानी ऐन बोलीन की पुत्री ऐसी ही एक त्याज्या बालिका थी।उसकी माँ को मरवा दिया गया था और उसका पालन पोषण  बंदी गृह में हुआ।अनेकों विवाहों के बाद भी हेनरी को स्वस्थ पुत्र न मिला। लम्बे गृहक्लेश के बाद १५५८ ई ० में बंदीगृह से मुक्त करके इसी अभागी लड़की को इंग्लैंड की रानी बनाया गया जो विश्व इतिहास की सबसे प्रसिद्ध ,लक्ष्मी का अवतार बनी, क्वीन एलिज़ाबेथ प्रथम।  

            इस काल में इंग्लैंड आर्थिक संकट से जूझ रहा था।  जनता असंतुष्ट थी।  यूरोप के अन्य देश अधिक धन कमा रहे थे।सन् १४९७ ई. में वास्कोडिगामा ने जबसे भारत का रास्ता खोज निकाला था ,पुर्तगाल और स्पेन अनेक देशों से बहुमूल्य सामान का व्यापार कर रहे थे। इंग्लैंड इनसे पचास वर्ष पीछे था। अतः स्पर्धा के कारण इंग्लिश समुद्री डाकू इनके माल से भरे जहाज लूट लेते थे। वालटर राले नामक डाकू ने १५९१ ई ० में एक पुर्तगाली जहाज के नाविकों को मारकर जहाज अपने कब्जे में कर लिया। यह भारत से माल लेकर आया था। जब यह इंग्लैंड के बंदरगाह पर खोला गया तो देखनेवालों की आँखें चौंधिया गईं। इसमें भरा था सोना चांदी ,हीरे जवाहरात , मसाले और इत्र , नील और मंजीठ, हाथीदांत और आबनूस की लकड़ी , रेशमी वस्त्र और कालीन , शेर चीतों की खालें आदि आदि।  और इन सबसे अधिक ,शक्कर और नमक। इस युग में समुद्री सफ़ेद नमक जनता ने  देखा भी  नहीं था। शक्कर केवल रानी या उसके अमीर सभासद ही खा सकते थे।बाकी जनता शहद से काम चलाती थी।  

             रानी ने इन समुद्री डाकुओं से गुप्त संधि कर ली। हर लूट का माल आधा आधा। इसी शर्त पर उनको भूमध्यसागर से आगे अरब सागर और हिन्द महासागर तक जाने की राजाज्ञा दे दी। सन् १६०० में कुछ अंग्रेज  सामंतों ने अपना धन एकत्र करके ईस्ट इंडिया कंपनी की नींव डाली। पहले – पहल तो अंग्रेज डाकू ही बने रहे।मलेशिया और इंडोनेशिया से आनेवाले जहाजों को लूटते रहे।परन्तु १६०३ ई० में एलिज़ाबेथ मर गयी। अंग्रेजी लुटेरे भारत के किनारों पर धावे करते रहे।  सं १६०८ में इन्होंने सूरत के बंदरगाह पर अपना ऑफिस खोला। नए राजा जेम्स प्रथम ने ईस्ट इण्डिया कंपनी को सन १६०९ में अनिश्चित काल के लिए भारत से व्यापार करने की राजाज्ञा दे दी।बस फिर क्या था ! एक के बाद एक इन लोगों ने अपनी फैक्ट्रियां लगानी शुरू कर दीं।यही नहीं, पुर्तगालियों को भी धकियाना शुरू किया। अब इनको चाहिए थी भारत की धरती। बिना मुग़ल सम्राट की आज्ञा के यह अंदरूनी शहरों से व्यापार नहीं कर सकते थे। अभी तक माल की सप्लाई दलाल करते थे अब उनको काटकर अलग करने का समय आ गया था।  इसलिए मुग़ल सम्राट की आज्ञा चाहिए थी।

              उस काल में जहांगीर सम्राट था। न तो वह महत्वाकांक्षी था और न ही दूरदर्शी। उसे शराब की लत थी और अय्याशी में वक्त बर्बाद करता था।जेम्स ने अपने सभासद सर थॉमस रो को अपना  संदेशवाहक बना कर उसके पास भेजा। सं १६१४ में यह मुग़ल दरबार में पहुंचा। चार वर्ष यह  मित्र बनकर  उसके संग आगरा में था। यह बहुत पढ़ा लिखा और मँझा हुआ नीतिज्ञ था।अंत में यह अपने उद्देश्य में सफल रहा। और सूरत की फैक्ट्री के संरक्षण और अबाध व्यापार के लिए इसने संधिपत्र  हासिल कर लिया।  

 

जहांगीर के पत्र का अनुवाद :—-

                                           ”  हुजूरे – आला ,आपके प्यारभरे  आश्वासन पर मैंने अपने राज्य की सभी राजधानियों और बंदरगाहों को राजाज्ञा दे दी है कि वह आपके देश ,इंग्लैंड से आये सभी व्यापारियों को  मेरे परम मित्र की प्रजा जानकार स्वागत करें।  वह  चाहे जहां रहना चाहें उन्हें बसने दें।उन्हें पूरी स्वतंत्रता है और कोई बंधन नहीं है। वह चाहे जिस बंदरगाह पर उतरें। कोई पुर्तगाली या कोई और उनकी शांति में बाधा न डालें। वह चाहे जिस शहर में रहना चाहें रहें।मैंने अपने सभी नवाबों को और जहाजी कप्तानों को हुकुम दे दिया है कि कोई उनके स्वतन्त्र व्यापार में दखल ना दे।वह अपनी मर्जी से खरीदने ,बेचने एवं माल घर भेजने के लिए स्वतन्त्र हैं।   

                                           ” हमारी मित्रता पर आपसी प्रेम की मुहर लगाने के लिए मैंने हुजूर के कारिंदों से कह दिया है कि वे अपने जहाजों में तरह तरह की खूबसूरत वस्तुएं मेरे महल को सजाने के लिए भेंट स्वरूप लाएं। मैं उम्मीद करता हूँ कि हुजूर मुझे बराबर पत्र भेजते रहेंगे ताकि मैं आपकी सेहत और तरक्की के लिए दुआ करता रहूँ। हमारी दोस्ती सदा सुदृढ़ और अमर रहे।  ”  

                                                                                                                             नूरुद्दीन सलीम जहांगीर ——–  जेम्स प्रथम के नाम पत्र 

  

            सर थॉमस रो के आने से   कुछ महीने पहले ही सं १६१३ में  अरब की खाड़ी  में पुर्तगालियों ने मुग़ल जहाज को लूटकर अपने कब्जे में कर लिया था जिसमे जहांगीर की माता स्वयं रानी जोधाबाई मक्का की यात्रा करके लौट रही थीं।इसमें अकूत दौलत भरी थी।  तिसपर भी जहांगीर ने विदेशी लुटेरों की मंशा को नहीं पहचाना।सर थॉमस रो के इस सफल प्रयास के बाद से मुग़लिया बुलंद सितारा सदा के लिए  विदा हो गया। अंग्रेज भारत में चौड़े होकर  फूट  फ़ैलाने लगे और हर मौके पर व्यापार की आड़ में बेशकीमती वस्तुएं चुराते रहे। यही नहीं ,नाशुक्रों ने समुंद्री  जहाजों को लूटना बंद नहीं किया। उधर मुग़ल धर्म के नाम पर जिहाद में तल्लीन रहे।क्या जहांगीर ,क्या  शाहजहाँ ,क्या  औरंग़ज़ेब?  

            १६३७ ई ०  में शाहजहां के राजयकाल में ईस्ट इंडिया  कंपनी के सूरत फैक्ट्री के प्रेजिडेंट और उसके कारिंदों को जेल में डलवा दिया गया क्योंकि उन्होंने फिर से मुग़ल जहाज़ों पर डाका डाला था। इंग्लैंड  में धार्मिक क्रांति मची हुई थी। जेम्स प्रथम मर चुका था। चार्ल्स प्रथम राजा बन गया था।  इंग्लैंड की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर थी। ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापार रसातल में था।  ऊपर से यह सीना जोरी। शाहजहां ने उनका फरमान वापिस ले लिया इसलिए इंग्लैंड के राजा ने मुग़लों को एक मोटी  रकम नज़र की और वादा किया कि अब ऐसा नहीं होगा।  

            १६६० ई ० में चार्ल्स द्वितीय इंग्लैंड की गद्दी पर आया। उसकी शादी पुर्तगाल की राजकुमारी कैथरीन ऑफ़ ब्रगांजा से हो गयी। दहेज़ में पुर्तगालियों ने उसे बम्बई शहर दे दिया। चार्ल्स के लिए यह किस   काम का अतः उसने इसे कंपनी को दे दिया।  सूरत तो मुग़ल राज्य में था। बंबई अंग्रेजों का अपना। उन्होंने खूब राज किया यहां तक कि अपने सिक्के तक गढ़वा डाले।  

            मगर १६८८ ई ० में सूरत के बंदरगाह पर डाके डाले। औरंगज़ेब सम्राट था और बेहद कट्टर।  उसने इनकी कसकर मरम्मत की।  सब अंग्रेजों को मार डालने का हुक्म दे दिया। बहुत हर्जाना भरकर अंग्रेज  फिर भी डटे  रहे।   

 उधर इंग्लैंड में समुद्री डाकुओं ने अपना काम बरकरार रखा।  रानी एलिज़ाबेथ ने उनको खुली छूट दे रखी थी और आधा लूट का माल राजसी कोष में जमा होता था।  १६०३ में उसके मरने के बाद भी डकैती में कोई  शिथिलता नहीं आई।  इंग्लैंड के पडोसी राष्ट्र पुर्तगाल और स्पेन भी अरब सागर और हिन्द महासागर में लूटपाट करते थे। व्यापार में भी वह अंग्रेजों से सौ वर्ष आगे थे। अंग्रेजी डाकुओं को जब पता लगता की उनका कोई जहाज भारत से माल ला रहा है तो वे उसको पास आते ही लूट लेते।  ऐसे ही एक विशाल पोत को पुर्तगाल लूटकर अपने देश ले गया।  जब वह इंग्लिश चैनल में पहुंचा तो अंग्रेजी डाकुओं ने उसको पकड़ लिया। नाविकों को मारकर उसे साउथैम्प्टन  के बंदरगाह पर ले आये। जब उसका सामान खुला तो देखनेवालों की आँखें चुंधिया गईं। उस समय का एक नाविक डाकू हेनरी एवरी बेहद खूंख्वार था।  उसने ” फैंसी ”  नामक जहाज को तैयार किया और भारत की ओर चल पड़ा। 

            सं १६९६ यह यमन की खाड़ी में पहुंचा।  यहां उसको मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब के विशाल बेड़े के बारे में पता चला जो मक्का मदीना की हज करवाके लौट रहा था।  इसपर औरंगज़ेब के परिवार की इज़्ज़तदार औरतें सवारी कर रही थीं।  अनुमान से कहा जाता है कि उसमे औरंगज़ेब की सास ,एक बेटी और उसकी कुमारी नातिन आदि थीं। ज़नाना हरम के संग ज़नाना हथियारबंद फ़ौज थी व अनेक दास दासियाँ।  राजसी  क़ाफ़िला अपने संग बेशकीमती ज़ेवर और सामान लेकर यात्रा कर रहा था।  इनके जहाज का नाम था ” गंज-इ -सवाई ”.| 

            गंजे –  सवाई पर करीब छहसौ नाविक थे।  यह १६०० टन का पोत था और अस्सी तोपों से लैस था।  इसका रक्षक पोत फ़तेह मुहम्मद इसके पीछे चल रहा था जो खुद  ६०० टन का जहाज था।  इसके अलावा पच्चीस नावें काफ़िले को घेरकर चल रहीं थीं।  एवरी ने आस पास के समुद्री डाकुओं को अपने संग मिला लिया।  कुल जमा पांच ब्रिटिश जहाज ,जिनमे सब मिलकर ४४० खूंख्वार डाकू सवार थे ,आगे बढे।   एवरी की चालीस बंदूकों ने फ़तेह मुहम्मद को एक ही दांव में हरा दिया।  उसके कप्तान ने ५० ००० पौंड की नकद रकम चुकाकर अपनी जान बचाई।  यह धन एवरी ने अपने सहायकों में बाँट दिया।  दो नावें पुरानी  थीं और उनके डाकू इसी में खुश हो गए।  इस धन से एवरी की नाव ”फैंसी ” को छै बार खरीदा जा सकता था।अतः वह लोग आगे जाने से मुकर गए। 

           परन्तु एवरी का मन नहीं भरा था। वह बाकी तीन जहाज़ों के संग गंज -इ -सवाई की तरफ बढ़ लिया।  गंज-इ- सवाई पर ४०० अस्त्र शस्त्र से लैस सिपाही थे ६०० सवारियां थीं और अस्सी तोपें थीं मगर  किस्मत एवरी के साथ थी। इसका कप्तान मुहम्मद इब्राहीम कायर निकला। डाकुओं की फुर्तीली चाल ने पहले ही वार में जहाज का मस्तूल तोड़ दिया। जब डाकू गंजे सवाई में घुसे तो मुग़ल  सिपाहियों ने भी हमला किया मगर तभी एक तोप फट गयी और आग लग गयी।  आग बुझाने की हड़बड़ी में मुग़ल सेना में अफरा तफरी मच गयी।  कई सिपाही जान बचाकर पानी में कूद पड़े।  उधर से तीनो ब्रिटिश जहाजों  के डाकू गंजे सवाई में घुस गए और घमासान युद्ध हुआ दो घंटे तक। मुग़ल कप्तान निचले तल में भाग गया और ज़नानी सेना को  लड़ने ऊपर भेज दिया।   


           इतिहासकार हाशिम खान ,जो उस ज़माने में सूरत में था , लिखता है कि अगर वह पीठ न दिखाता और जम के लड़ता तो शर्तिया जीत जाता क्योंकि बांदियाँ तलवार से युद्ध करती थीं और अंग्रेजों को  तलवार चलाना नहीं आता था।  इतिहासकार काफी खान ने भी साफ़ लिखा है कि मुहम्मद इब्राहीम की कायरता से मुग़ल सेना हार गयी।  

            इसके बाद डाकुओं ने बचे खुचे सैनिकों को पकड़ कर उनपर कहर ढाया। और उन्हें मजबूर किया की वह खजाने का  पता बताएं जो उसी जहाज में छुपाया गया था।  उनके अमानवीय अत्याचार से त्रस्त  सैनिकों ने बता दिया।  एवेरी ने इनाम में उनकी जान बख्श दी।  अब वह जहाज के निचले तल में घुस पड़ा और औरतों को निशाना बनाया।  अपनी इज़्ज़त बचाने के मारे कईयों ने आत्महत्या कर ली।  जो बचीं उनको घसीटकर ” फैंसी ” में ले जाया गया और उनके संग दुष्कर्म किये।बूढी बेग़म को भी नहीं छोड़ा।   

           इन जुल्मों का इक़बाल खुद डाकुओं ने किया जब इंग्लैंड में उन पर मुक़दमा चलाया गया। भारत और ब्रिटेन के इतिहासकारों ने इनको झूठ ,कपोलकल्पित या अतिरंजित साबित करने की कोशिश की  है खासकर मुग़लों ने ताकि औरतों की इज़्ज़त न उछले। मगर कई डाकू मरते वक्त अपने धार्मिक ”कॉन्फेशन ” में  सच बोलकर मरे।  मुग़लों ने अपनी स्त्रियों के नाम या रिश्ते भी नहीं बताये हैं इसीलिए।  सब से बड़ा प्रमाण है बंबई के तत्कालीन गवर्नर जॉन गेयर का जिसने इंग्लैंड के राजा को लिखा की उस जहाज पर एक वृद्धा ‘ उमराव बीबी ‘ थी जो बहुत बूढी थी,और मक्का शरीफ की यात्रा से लौटी थी ,उसको भी  बेइज़्ज़त किया हैवानों ने। वह औरंगज़ेब की रिश्तेदार थी।  

            हेनरी एवरी ने खुद अपनी डायरी में लिखा है कि उसको जवाहरातों से भी ज्यादा लुभावनी एक चीज़ मिली। कहा जाता है ( उसी के सहयोगियों द्वारा ) कि यह  ‘ चीज़ ‘ कुछ और नहीं ,खुद औरंगज़ेब  की  नातिन थी।  मगर मुग़ल इतिहासकारों के विवरण में ऐसा कुछ नहीं मिलता। शायद अपनी झेंप छुपाने के मारे।   

           कुल लूट की कीमत उस  काल में ६०० ००० पाउंड की गिनी गयी है जिसमे ५० ००० सोने के सिक्के थे।  आज हम इसको आसानी से  सवा  सौ गुना कर सकते हैं।  कहा जाता है कि अब तक कि सभी समुद्री  डकैतियों में यह सबसे बड़ी थी।  घर आकर एवेरी ने अपने साथियों को बराबर से १००० पौंड प्रति व्यक्ति दिया जो उनके लिए बहुत था। आज इसकी कीमत १२८ ००० पौंड  मानी  जाती है। स्वयं वह बाकी रकम और जवाहरात लेकर गायब हो गया। अनुमान लगाया जाता है कि वह किसी गरम देश में जाकर बस गया और सारा धन खा पी गया।  उसको पकड़ने की तमाम कोशिशें बेकार रहीं। हालाँकि यह पुलिस  के इतिहास में सबसे पहली , सर्वाधिक मंहगी और लम्बी अपराधी को ढूंढने की घटना है। उस काल में एवरी के सिरपर १००० पाउंड का ईनाम रखा गया था। बाद में इसको ईस्ट इंडिया कंपनी ने दुगुना कर दिया था।    

             मुग़ल शासक औरंगज़ेब के क्रोध का पारावार नहीं रहा।  उसने सिद्दी याकूब और नवाब दाऊद खान को हुक्म दिया कि ईस्ट इंडिया कम्पनी की चारों फैक्ट्रियां ,जो भारत के चार बड़े बंदरगाहों पर थीं ,जब्त  कर ली जाएँ  और उनके अफसरों को बंदी बना लिया जाये। सूरत में उनकी कोठियां जला डाली  और जहां अंग्रेज दिखे वहीँ उसे तलवार के घाट उतरने का आदेश दे दिया। हालांकि उन अंग्रेजों का कोई कसूर नहीं था मगर औरंगज़ेब ने उन्हीं से अपना बदला लिया।  उनका सारा व्यापार बंद करने की धमकी भी दे डाली।  

           भारत में अपनी जड़ें जमाती ईस्ट इंडिया कंपनी को इस घटना ने  समूल हिला दिया। अनेक अपनी जान बचाने के लिए छुप गए। उधर इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय ने शर्मिंदा होकर ईस्ट इंडिया कंपनी  को हुकुम दिया कि वह मुग़लों के नुकसान का पूरा मुआवज़ा दें।  ब्रिटिश संसद ने इस कृत्य को राक्षसी बताया और डाकुओं को ” इंसानियत के दुश्मन ” बताया।  औरंगज़ेब फिर भी न पिघला। व्यापार ठप हो गया ,जहाज़ों के आवागमन पर प्रतिबंध लग गया। स्थिति डावांडोल होने लगी। तब इंग्लैंड के राजा ने विलियम नौरिस  नाम के एक कूटनीतिज्ञ को अपना राजदूत बना कर भारत भेजा।यह सं १६९९ में सूरत पहुंचा।  औरंगज़ेब दक्षिण में खेमा जमाये बैठा था। कुछ राजा की ओर से और कुछ ईस्ट इंडिया कंपनी के अवदान से नौरिस एक विशाल जुलूस सजाकर मुग़ल सम्राट से मिलने  चला. उसके पास अस्सी बैलगाड़ियों में  तोहफे भरे थे और एक सोने की नक्काशीदार पिटारी में २५० मुग़लिया स्वर्ण मुद्राएँ थीं औरंगज़ेब को नज़र करने के लिए।  

           कहा जाता है सम्राट ने उसको पगड़ी पहनकर पेश होने का हुक्म दिया। अतः वह अपनी हैट के ऊपर पगड़ी धारण करके और लंबा सभासदों वाला चोला पहनकर उपस्थित हुआ।  सम्राट ने अपनी नज़र स्वीकार कर ली।  मगर व्यापार की अनुमति देने के पहले नौरिस से लिखित आश्वासन माँगा कि कभी कोई समुद्री डाकू भारतीय जहाज पर हमला नहीं करेगा। नौरिस ऐसी कोई शर्त मानने को तैयार नहीं था। ना ही इंग्लैंड के राजा ने डाकुओं को दिए अधिकारों को कभी कैंसिल किया था।  असल में वह ५० प्रतिशत खुद राज कोष के लिए वसूल करता  था । अतः नौरिस को खाली हाथ वापिस जाना पड़ा।  वापसी के सफर में वह  मर गया और जल में ही उसका संस्कार कर दिया गया।  १०० ००० पाउंड का उसका फेरा बेकार  रहा।  ईस्ट इंडिया कंपनी के पास वास्तविक रूप से भारत में व्यापार करने के कोई अधिकार नहीं थे। 

           मगर औरंगज़ेब के ही एक नवाब शुजाउद्दौला  ने उनको बंगाल में हुगली नदी के तट पर कोठी लगाने की अनुमति दे दी थी इस घटना के दस वर्ष पहले।  अगस्त २४ ,सं १६८६ में  कलकत्ता की नींव पड़   चुकी थी और यहीं से अंग्रेज उठते चले गए और मुग़ल गिरते चले गए। इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के अफसर स्वयं डाकू बन गए और आज ब्रिटेन विश्व का सबसे धनी राष्ट्र है। छुरी पे मुक्की ये खुल्लम खुल्ला हमारी बहुमूल्य वस्तुओं का किराया दर्शकों से खाते हैं जिसकी महीने की आय १० ००० करोड़ आंकी  जाती है। 

दुःख यह है कि हमारे देश के नागरिक दिन बा दिन अपना धन संपत्ति इंग्लैंड एवं अन्य देशों में निवेश कर रहे हैं और ये मुफ्त की खा रहे हैं।  करोड़ों का धन शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय खर्च कर रहे हैं जिससे इनकी शिक्षण संस्थाएं चल रही हैं। और हमारा देश अंग्रेजी की टांग तोड़कर खुश है।  इससे भारत सदा के लिए दोयम दर्जे का रहेगा।  

कादम्बरी मेहरा  
यू के
                     

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