दो अक्टूबर के कुछ अनछुए पहलू

दो अक्टूबर के कुछ अनछुए पहलू

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का नाम सिर्फ साबरमती आश्रम से ही नहीं जुड़ा है ।यह बात शायद काफी लोगों की जानकारी से अछूती हो सकती है। बात कुछ यूं निकली और जब मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में बुजुर्गों के बीच सिमट कर रह गई। बापू का लगाव और जुड़ाव इस शहर से काफी रहा ।

आंदोलन के वक़्त व्यौहार राजेन्द्र सिन्हा जी ( जिनके जन्मदिन को हम हिंदी दिवस के रूप में मनाते है) जो गांधी जी के काफी करीब रहे।जब भी हमको जबलपुर मेरी छोटी बुआ के घर जाना होता ,जिनके ससुर ब्यौहार राजेन्द्र सिन्हा जी थे ,उनको सब कक्का जी भी बुलाते थे। उस वक़्त मेरे भाई डॉ अनुपम सिन्हा के मुख से गांधी जी के उस कमरे और चरखे की चर्चा सुना करते थे। जिसको गांधी जी आकर उनकी बैठक में ” सूत काता ” करते थे। हमे जिज्ञासा होती थी कि काश एक चरखा हमको भी मिले।

कटनी के रास्ते NH- 7 पर “गांधी ग्राम ” नाम का एक गांव आज भी प्रचलित है ,जो उड़ागर के नाम से जाना जाता था। कहानी यहां से शुरू होती है जब 1928 में ” छुआ छूत” और दलित आंदोलन के उत्थान में आंदोलन किया जा रहा था। उस वक़्त यही “व्यौहार निवास पैलेस” में इसकी कई बार सभा रखी जाती थी। इसी पैलेस के परिसर में एक प्राचीन मंदिर है , सहस्त्रवी शताब्दी में यह निजी मंदिर सभी वर्ग के दर्शन लिए खोल दिया गया था ।यह अपने आप में पहला मंदिर था जिसने अस्पृश्ता का उदाहरण दिया था। घनश्याम दास बिरला, जमुनालाल बजाज जी मुंबई से आकर इसके साक्षी बने थे।गांधी जी तक यह बात बाद में पहुंची।उनके यहां पहुंचने पर ही हरिजन यात्रा की रूपरेखा बनाने में जबलपुर के इसी स्थान में बैठक नियत करी गई थी।

 

दो दिसंबर को गांधी जी के स्वागत में व्यौहार जी की पत्नी श्रीमती राजरानी देवी जी ने स्वयं अपने हाथों से खादी का “स्वागत मान पत्र ” ,जिसकी कताई,बुनाई और कढ़ाई स्वयं करी थी।1932 में बापू ने साबरमती आश्रम हमेशा के लिए छोड़ दिया था, तभी व्यौहार राजेन्द्र सिन्हा जी ने अपनी जबलपुर के बुढागर के इस सम्पदा को ” गांधी ग्राम ” के नाम से नाम दिया। उस वक़्त डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी भी शामिल हुए हुए थे। चूंकि गांधी जी को स्थान पसंद आया उनकी शख्सियत का बोलबाला था तो अक्सर पंडित जवाहरलाल जी ,सरोजनी नायडू आदि का आना जाना स्वाभाविक था।

अखिल भारतीय कांग्रेस का अधिवेशन जबलपुर के इसी पैलेस में हुआ।व्यौहार जी के पिता श्री रघुवीर सिन्हा जी उन दिनों जिला परिषद के सभापति भी थे अतः गांधी जी के द्वारा ध्वजारोहण भी अपने व्यौहार निवास पैलेस में कराया गया। यह बात अंग्रेज़ी अधिकारियों को आग बबूला करने वाली थी परन्तु कुछ कर ना सके।इसके बाद उनको दिल्ली के लिए प्रस्थान करना था।गांधी जी को जो ” स्मृति प्रतीक” भेंट करा गया वह भी श्री मती राजरानी के हाथों द्वारा सजाया गया था। यह बात उजागर करने वाली है कि वर्षो पूर्व भी स्त्री का स्थान उच्च होता था और पति के साथ पूर्ण सहयोग देने में सक्षम थी।

गांधी जी के द्वारा चलता गया चरखा, उनकी दैनिक वस्तुएं जो वो छोड़ गए थे, जिस कमरे में रुके थे आज भी वह कमरा आज भी बहुत सादगी से व्यौहार राजेन्द्र सिन्हा जी के पौत्र डॉक्टर अनुपम और बहू के संरक्षण में संजो कर रखी हुई है।पांच “गांधी ग्राम” में यहां का नाम मशहूर है , 1956 से सबके प्रयासों से गांधी ग्राम नाम जबलपुर में अंगीकृत हो गया।

आप सभी को गांधी जयंती और शास्त्री जयंती की हार्दिक बधाई।

विनी भटनागर
नई दिल्ली

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