कस्तूरबा गाँधी से एक काल्पनिक मुलाकात

कस्तूरबा गाँधी से एक काल्पनिक मुलाकात

खट्दर की साड़ी, ढँका हुआ सिर, माथे पर गोल बिंदी, कलाई में सादी चूडियाँ – इस छोटी दुबली — पतली महिला को देखकर विश्वास ही नहीं हुआ कि उसमें कितनी शक्ति समाहित है। उसकी उपस्थिति से ही कमरा जैसे जीवंत हो गया।

कमरा खचाखच भरा हुआ है। सबके मन में जिज्ञासा और उत्सुकता। कहीं बहुत प्रश्न भी | संचालिका ने माइक सँम्हाल लिया था और विशिष्ट व्यक्ति विशेष का परिचय दे रही थी। कस्तूरबा गाँधी। उनसे प्रश्न पूछे जा सकते हैं और वो संभवत्तः प्रश्नों के उत्तर देंगी। कुछ चुलबुली लड़कियाँ कोने में खुसुर-फुसुर कर रही थीं। अचानक कमरे में शांति छा गई। कस्तुरबा गाँधी ने सबसे शांत होकर एक छोटी प्रार्थना गाने को कहा। आश्रम में, जेल में, घर में, बाहर जहाँ भी रही हूँ, प्रार्थाा से ही सभा आरंभ की है। उनके मुखड़े की सौम्यता देखकर ही रोमांच हो आया। प्रार्थना में बडी शक्ति है। वो संयम भी देता है और शक्ति भी। वातावरण शांत गंभीर हो गया। इतनी उम्र में भी भीड़ को सँम्हालने की शक्ति है। यह कला उन्होंने बापू से सीखी होंगी। बापू भी तो कितना सादा बोलते थे और सब को वश में कर लेते थे।

प्रश्नोत्तर का सिलसिला शुरु हो गया था। उन चुलबुली लड़कियों में से एक ने पूछा – “बा, जब बापू ने आपकी सभी अच्छी साड़ियाँ रखने को कहा और फिर केवल खादी पहनने को, तो आपको कैसा लगा था? बा बिना रूके बोल पड़ी — खादी तो हमारा हथियार था, अहिंसा का हथियार। अंग्रेजी ताकत को झुकाने के लिए, उनके कमर पर प्रहार के लिए, चरखा और खादी ही तो थे। तो फिर दु:ख कैसा? अपनी इच्छा से ही छोड़ा। “बा, आपकी शादी, बहुत छोटी उम्र में हो गई थी? आपको कैसा लगा था? बा हँस पड़ी – तब नहीं समझ में आया, गुड़े-गुडियों का खेल था। सुंदर कपड़े, मिठाईयाँ। हाँ, शादी तभी करनी चाहिए, जब समझ आ जाए। कम उम्र में बच्चे की जवाबदारी बड़ी मुश्किल है। ‘बा, आप पर गाँधी जी काफी दबाव डालते थे, मनमानी करते थे। ये क्या स्त्री विरोधी नहीं है? बा थोड़ी रूकी, शायद सोच रही थी। पुरूष प्रधान देश में औरतों को अपने सोचने की आजादी कहाँ थी? फिर निरक्षर होने का गम अलग खलता रहता था। धीरे से मुस्कुराई और बोली – पति अपना अधिकार जमाता है, तभी समस्या आती है। अगर सामंजस्य से, समझकर, बातचीत की जाए तो फिर तकरार नहीं होते। गाँधी जी की एक आदत थी, अचानक से निर्णय ले लेते थे। उससे वह टस से मस नहीं होते थे। फिर उनको समझाना मुश्किल होता था। बा फिर रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराईं और कहा एक पत्नी को अपनी बात मनवानी आती है। कभी जिद्द से, कभी चुप होकर। बा की बात से सभी हँस पडे। अगला सवाल उनके चम्पारण प्रवास पर था। बा, आप पहली बार भारत भ्रमण के बाद चम्पारण गई थीं। गाँवों में रहकर आपने क्‍या देखा? बा थोडी देर चुप रहीं। जैसे याद कर रही हों नील की खेती करने वालों की दुर्दशा और वो भयानक गरीबी। धीरे से कहा – गंदगी, गरीबी, बदहाली से लिपटे लोगों ने मुझे बहुत प्यार से अपनाया। घर-घर जाकर लोगों को साफ सफाई का पाठ बताया। मुझे उनका साथ बहुत अच्छा लगा। बा को अभी चले स्वच्छता आंदोलन के बारे में पता चलेगा तो बहुत खुश होंगी। अचानक कोने से एक प्रश्न उठा – ‘बा, कहते हैं आप बहुत जिद्दी हैं? मुस्कुराती हुई उन्होंने कहा – तभी तो बापू का साथ निभा सकी। विनम्र जिद्द ही तो सत्याग्रह है। पूरा हॉल ठहाकों से गूँज उठा।

अगले प्रश्न का इंतजार नहीं करना पड़ा। एक भारी-भरकम महिला ने पूछा — ‘बा, आप और बापू दोनों व्रत बहुत रखते हैं। बापू ने तो आमरण अनशन करके अंग्रेजी सरकार के नाक में दम कर दिया था। बा गंभीर हो गई ज्यादातर गुजराती, थोड़ी अंग्रेजी और टूटी-फूटी हिन्दुस्तानी जानने वाली इस जुझारू महिला ने हमेशा अंर्तशक्ति पर विश्वास किया है। धीरे से बोलीं । व्रत और प्रार्थना, हिन्दू धर्म के दो अभिन्‍न अंग है। उपवास से मन और तन दानों पवित्र होते हैं। बापू का तो वो हथियार ही था। उनके साथ मैं भी फल, दलिया-पानी खा-पीकर या एक समय का खाना त्याग देती थी। फिर उन्होंने बताया कि बापू ने ‘गाय का दूध नहीं पीना है” की कसम खा ली थी। इसीलिए बकरी का दूध लाया गया। वातावरण भी हल्का हो चला।

“बा, आपको किस बात से दुःख हुआ।’ बा थोड़ा रूकीं और बोलने लगी कि जब किसी बात से दुःख हो तो उस बात को भूलना ही श्रेष्ठ है। मैं निडर थी, अपनी बात कह देती थी। बच्चों को स्कूल ना जाने देने के निर्णय पर दुःख हुआ। हरिलाल और बापू के संबंध टूटने पर दुःख हुआ। बा का गला रूआंसा हो गया। बापू के बड़े बेटे से बनते – बिगड़ते रिश्ते तो न जाने कितनी फिल्मों, नाटकों, कहानियों के विषय बन गए हैं। बेटे हरिलाल ने शायद माँ का दिल बहुत दुखाया। आम औरतों और एक माँ की तरह बा भी अपने चारों बेटों से बहुत प्यार करती थीं। रिश्तों में दरार को देखकर अनदेखा करने का दुःख तो हुआ ही होगा।

अच्छा, बा ये बताइए कि कब आपको पता चला कि गाँधी जी अब ‘महात्मा गाँधी’ हो गए हैं। ‘बा मुस्कुराई और लगा कि वो इस प्रश्न की आदी हैं। बोलने लगी कि यह सफर इतना छोटा और आसान नहीं था। इसको नापने में 15-18 वर्षों का वक्‍त लगा। पहले उन्हें भी विदेशी पोशाक, रहन-सहन आकर्षित करती थी। लेकिन धीरे-धीरे उनको लगा कि अगर कुछ करना है तो विचारों में, रहन-सहन में परिवर्तन लाना होगा। फिर धीरे-धीरे सब छोड़ते गए। पहले कपड़े कम किए, फिर फार्म पर रहने लगे, अपनी जरूरतें कम की। फिर आश्रम बनाया। सब तरह के लोगों के साथ रहने की आदत डाल दी। गाँधी आम आदमी होते चले गए और फिर महात्मा ही बन गए। बा शांत हो गईं। शायद बीस वर्षों का संघर्ष याद आ गया। कम उम्र में अपनी जरूरतों को कम करना, सब कुछ मिल बॉट लेना- संघर्षमय तो रहा होगा। बा चुप थीं। फिर अचानक बोलने लगी, बापू हर बात सोच समझकर करते थे। नमक सत्याग्रह में मुझे लगा था कि एक चुटकी नमक से क्‍या होगा। लेकिन उसने अंग्रेजी सरकार की नींव हिला दी। इन्हीं सब बातों से मुझे लगता था कि उनकी सोच सही है। बा की आवाज में एक गर्व का पुट था। आधे अधूरे कपड़ों में एक अधनंगे फकीर ने इतनी बड़ी ताकत को ललकारा था। एक सवाल था जो बहुत लोगों की जुबान पर फिसल रहा था। वो तो बापू के महिला मित्र और साथी हैं। क्या बा को कभी डर नहीं लगता था? क्या बा ने सबको सहमति दे रखी थी? क्‍या बा को अपनी बौद्धिक क्षमता की कमजोरी महसूस हुई? बा हमारी असमंजस समझ रही थीं। धीरे-धीरे बोलना शुरु किया। झूठ बोलूँ कि सच? हम सब तो सच ही सुनना चाहते थे। कभी बुरा लगता था। बापू की सोच से, बापू के लेख से बहुत लोग प्रभावित हो जाते थे और उनसे मिलने, उनसे बातें करने आते थे। मैंने उन सबको अपना समझा, सबका सत्कार किया। किसी तरह का बैर या दुर्भाव नहीं रखा | शायद इसीलिए मुझे कोई रोष नहीं हुआ। संयम और निडरता ही मेरी मजबूती रही है।

चलते-चलते कार्यक्रम की संचालिका ने कस्तूरबा गाँधी से पूछा कि आज की महिलाओं के लिए आपका क्‍या संदेश है। बा की पोपली मुस्कुराहट वापस आ गई थी। आजकल की औरतें अपना अच्छा बुरा समझती हैं। पढ़ी लिखी हैं लेकिन दबाव में आ जाती हैं। जरूरी है कि अपने मन की सुनो। स्त्रियों को उनका स्वयम्‌ ही रोकता है। कभी भी अपनी बात को

दूसरों के सामने रखने से मत हिचको | शक्ति, संगठित होकर रहने में है। अगर सभी महिलाएँ एकजुट होकर अपनी बात रखें तो शायद अपनी दशा बदलने में सक्षम रहेंगी। हर दिन आप एक नई चीज सीखें। खुशी तभी मिलेगी जब आपकी सोच, कथन और करनी एक जैसे हों। गुस्से को मन पर हावी मत होने दो। अपने जीवन की गति को महिलाएँ समझें और अपना पथ निर्धारित करें।

जिसका जीवन ही संदेश हो, ऐसी मुलाकात को मन में संजोए हम सब बाहर निकल रहे थे। सच में, जिंदगी जीने के लिए कटुता नहीं, मधुरता चाहिए।

-डॉ. अमिता प्रसाद

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