स्वच्छता तन-मन और उपवन की

स्वच्छता तन-मन और उपवन की

उठो चलो आगे बढ़ो,
कि विश्व तुझको देखता ।
वक्त की है पुकार ये,
फिर कौन तुझको रोकता?
स्वच्छ बना इस धरा को,
करके योगदान तुम ।
बन जा प्रहरी इस उपवन का,
खड़े जिस दिशा में तुम।
स्वच्छता से स्वस्थता आएगी,
हमारे भारत देश में।
बढ़ेगा हर कदम फिर,
‘फिट इंडिया मूवमेंट’ में ।
स्वच्छता का अर्थ न लो,
सिर्फ़ बाहरी दिखावटी।
हृदय व मन की शुध्दता भी,
है स्वच्छता की कसौटी।
जब तक मन में दोष है,
पाप, घृणा, कुविचार भरा।
भारत स्वर्ग बन नहीं सकता,
लाख कर ले स्वच्छ धरा।
बाहर – बाहर तन संवर चुका,
मन अभी संवरना बाकी है।
लाख बन चुके हम
डॉक्टर, इंजीनियर,
मानव बनना बाकी है।
क्या करोगे उसका तुम,
जो दिखा देते प्रवृत्ति राक्षसी।
बहिष्कार करो तुम!
जो बन गई है इसकी जात सी।
क्या यह प्रश्न तुझको हर घड़ी
नहीं झकझोरती?
मासूमों से दरिंदगी,
क्या तुम्हें नहीं कचोटती?
फिर क्यों पड़े हो,
इससे अनदेखे-अनजान से।
मिटा दो उसकी हस्ती आज,
हटा दो उसकी पहचान से।
स्वच्छता तो ठीक है,
पर मन में है विकार घना।
स्वस्थ रहने के लिए,
मन- व-चित्त भी देखना।
दूर होगा विकार,
साधन है –
प्रणायाम, ध्यान, योग, साधना।
अगर न हो विश्वास तो,
इतिहास हमारा देखना।
स्वस्थ रहेगा तन तेरा,
जब रहेगी मन में शांति।
चारों तरफ़ लगी हो आग तो,
कहां पाओगे शांति?
हृदय में आग धधक रही जो,
उसे थोड़ी और हवा दो।
भ्रष्टाचार, व्यभिचार, अत्याचार,
जहाँ देखो प्रहार करो।
सत्य – अहिंसा पर आधारित,
स्वच्छ भारत हो अपना।
तन-मन और अध्यात्म सुंदर हो,
था गांधी जी का सपना।
उठो! चलो आगे बढ़ो,
गांधी जी के सपनों को
साकार करो।
आएगा फिर इक युग नया,
फिर उसका सत्कार करो।

पुनीता गिरि,
शिक्षिका, जमशेदपुर

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