तेरे जैसा दोस्त कहाँ

जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी!

सिर्फ
हमारे प्यार में ही नहीं
बल्कि
दुनिया के हर रिश्ते में
शामिल होना चाहिए
दोस्ती का एक अहम भाव
क्योंकि
सुना है
दोस्त तब भी जान लुटा सकते हैं
जब दोस्त की जान पर बन आए
फिर चाहे वो सही हो या गलत,
दोस्त अपनाते हैं दोस्त को
उसकी हर कमी और खूबी के साथ
दोस्ती में अपेक्षा कम और विश्वास अटूट होता है
दोस्ती करने के पहले परखने
और बाद में आजमाने की जरूरत नहीं होती
और सब से जरूरी बात
दोस्ती हमेशा आबाद रहती है, याद रहती है,
जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी,
दोस्त का कोई विकल्प नहीं होता कभी!
बस जिस दिन रिश्तों में यह भाव जगह ले लेगा
प्रेम में विश्वास कई गुना बढ़ जाएगा
रिश्ते में तूतू-मैंमैं तो होगी
पर रिश्ते के टूट जाने का डर किसीको नहीं होगा,
मैं
तुम्हें खो देने के डर से
निश्छल होकर कह देने वाली कड़वी बातों को
हमारी दूरियों, कलह, और अलगाव का कारण
कभी नहीं बनने देना चाहती,..!
सुनो!
मित्रता दिवस के इस साल में
क्या हमारे प्रेम में दोस्ती की मिलावट कर लें!
हाँ!
मैं रहना चाहती हूँ
हर हाल में तुम्हारे साथ
जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी!
बोलो दोगे मेरा साथ,…मेरे तुम?

प्रीति सुराना

वरिष्ठ साहित्यकार एवं संपादक

 

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आख़िरी खत

जानती हूँ दोस्त
बहुत नागवार लगेगा तुम्हें
मेरा यूँ अचानक चले जाना
पर जैसे खिंची चली जा रही हूँ मैं
किसी ओर लगातार धीरे-धीरे

कितनी लाचार लगती थीं तुम
हर बार भेजते हुए
डायलिसिस पर डबडबाई आँखों से
जब अपनों ने ही हाथ खड़े कर दिए
थाम लिया था तुमने कितनी आसानी से
जता दिया था जैसे
जिस्म भले ही दो हों
बहते लहू का रंग एक ही था

दोस्त ,मेरी असहनीय पीड़ा
तुम्हारे चेहरे पर साफ नज़र आती थी
मर मैं रही थी
मौत तुम्हारी आँखों में झलक रही थीl
तुम्हारा बस चलता तो
झपट्टा मार कर छीन लेतीं
मौत को तुम मुझसे

मुझे पता है दोस्त
मेरे जाने के बाद
तुम रोओगी नहीं
तुम्हारी आँख के आँसू
तो पहले ही सूख चुके हैं

मैं थामना चाहती थी जिंदगी को
पर वह फिसलती रही
रेत की तरह निरंतर
प्यारी दोस्त,मेरे जाने के बाद
न होना गमज़दा
खुश रहना सदा
जिंदगी चाहे जैसी भी हो
बस एक बार मिलती है
अलविदा दोस्त,अलविदा ।

 

आनन्द बाला शर्मा
वरिष्ठ साहित्यकार और सेवानिवृत्त शिक्षिका

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एक रिश्ता

दुनिया में एक रिश्ता है जो सबसे बड़ा है।
दोस्ती है नाम दोस्त का मुकाम
बड़ा है।।

हर हाल में जो साथ दे ,न मात दे कभी ,
पक्का है इरादों का, पहाड़ों सा
खड़ा है।

रहमोकरम ख़ुदा का, बुज़ुर्गों की
दुआ है,
जिसमें न पानी कम हो दोस्त ऐसा घड़ा है।

मन में वियोग- छोभ हो,चंचल हो चित्त कभी,
खुशियों के लिए मेरी वो तो सबसे लड़ा है।

एक दोस्त दोस्ती का फर्ज़ ऐसे निभाये
रेखा की तरह बढ़ते दोनों साथ
अड़ा है।

सोनी सुगन्धा
कवित्रयी

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श्रेष्ठ मित्र

मैं तो हूं आदमी ठेठ विचित्र,
फिर भी मुझे आप मानते मित्र,
मैं तो रह गया वैसे का वैसा,
श्रेष्ठ तो आप थे, आप रहे मित्र।

मुझे कहां आता है याराना,
आपने फिर भी यार माना,
मैं जानूं सिर्फ साथ निभाना,
मित्रता आप निभाते जाना।

खुशकिस्मत हूं जो आप मिले,
जब-जब हम मिले, दिल खिले,
यारी, वफादारी हमसे हो शुरू,
परिभाषा नई हम लिख चले।

राजेश मंझवेकर,
पत्रकार,
नवादा, बिहार

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तेरे जैसा दोस्त कहाँँ

सच दोस्तों !!
तेरे जैसा दोस्त कहां,
और !!
मेरी जैसी यारी कहां,
क्या पल थे दोस्ती के?
एक सच्ची दोस्ती थी,
दोस्तों से गहरा रिश्ता था,
मानों !!
सब एक दूसरे के लिए फरिश्ता था,
क्या जमाना था??
दोस्तों के बीच,
बस!
चुटकियों में हर समस्या का समाधान,
किसी काम में कभी न कोई व्यवधान,
हर संकट में रखना सबका ध्यान,
कभी न होना अज्ञान,
कोई कम था ये काम ??
गुजरे कल की यादें,
उनके संग गुजरे पल,
वह स्वछंद खिलखिलाना,
स्वर्णिम पलों में गुनगुनाना,
दोस्तों द्वारा कहकहे लगाना,
वो !!
मस्तियों का अमिट सफर,
एकजुट हो पढ़ने का जिगर,
कभी न खत्म होने वाला यादों का डगर,
हौसले व हासिल करने का समर,
याद रहेगा हर जन्म,
आखिर!!!
तेरे जैसा दोस्त कहां…………

पद्मा प्रसाद
कवित्रयी

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तेरे जैसा दोस्त कहां

ढूंढ ढूंढ हारे दुनिया में,
तेरे जैसा दोस्त कहां ?
मन्दिर मस्जिद में घूमे,
सारे ही तीर्थ घूम लिए।
हर संगम स्नान किया,
गंगासागर भी हो आये।
तेरे जैसा दिल ना पाया,
कितने दिल को परखा।
तेरी निश्छलता ना पायी,
जाने कितनों को परखा।
जीवन की मरुभूमि में ,
हरियाली ही ना आयी ।
दोस्त तेरे जैसा मुझको,
कोई भी ना दोस्त मिला।
बारबार मन ये तलाशे,
तेरे जैसा दोस्त कहां ?
बिन बोले बातें समझे,
रोते दिल को पहचाने।
मेरी पीड़ा में जो तड़पे,
ऐसा वो मनमीत कहां?
दिल की जो भाषा जाने,
नयनों की बातें वो माने।
कंटकपथ पर साथ चले,
मेरी हर पीड़ा को पहचाने।
नहीं मिला ऐसा कोई भी,
जो हो बिल्कुल तेरे जैसा।
दिल मेरा है यही पुकारे
तेरे जैसा दोस्त कहां ?

डॉ सरला सिंह

वरिष्ठ साहित्यकार
दिल्ली

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तेरे जैसा दोस्त कहाँ “

मित्र सखी दिल से दिल की लगी
रहे जो दूर पर अहसासों मे बसी
वो एक दुसरे को लख सुनहरी हँसी
बिना कुछ कहे ही सब कह गई
वो बचपन की भोली यादें कश्तियाँ
नटखट संग करती कई मस्तियाँ
बाँटतें वो हर छोटी बड़ी बतियाँ
वो छुपा छुपी वो पेड़ों पे चढ़ना
झुले में झुलना वो फिर दौड़ना
शिक्षा संग प्रतियोगिता में बैठना
पीर या जीत की खुशी जो कहें
यादें वो अमृतमयी संग हैं रहें
रोते हंसते खिलते ये जीवन पथ
दिल से दिल की बातों का वो पल
जिंदगी के सुख दुखों को बाँटती
उम्र संग बढ़ती संवरती दोस्ती
जो बढ़ाती रही गरिमा हृदय सौंदर्य
विश्वास स्नेह से ओत प्रोत मन
सखी मेरी देख पुलकित नयन
तुम मैं कभी कृष्णा और सुदामा बने
पूंजी बने जो एक दूजे के लिए
सोचती हूं गुनती हूं कहती हूं मैं
आज वो तेरे जैसा दोस्त कहाँ !!

 

आशा गुप्ता श्रेया 

स्त्री रोग विशेषज्ञ और साहित्यकार

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