श्रद्धांजलि
आदरणीय पापाजी,
सादर नमन”राधे-राधे”
अत्र कुशलम तत्रास्तु!के उपरांत आगे समाचार यह है कि मैं इस दुनिया में ठीक हूं और उम्मीद करती हूं आप भी तारों की दुनिया में कुशल से होंगे। पापा मन अक्सर अकेले में बैठकर आपसे बातें करता है,वह चाहता है आपसे खुल पर बातें करें लेकिन अब आप… एक टीस,एक दर्द अधर पर मौन मुस्कान की गहरी परत छोड़ कर चुप हो जाता है। कुछ सूझता ही नहीं था कि क्या करूं क्या नहीं। आज अचानक याद आया आप अक्सर कहा करते थे कोई भी समस्या जितनी बड़ी दिखती है उतनी होती नहीं है। जितनी भारी समस्या उतना ही सरल समाधान।मुझे बहुत विचित्र लगता था। लेकिन ये बिल्कुल सही है।पापा मैंने सोचा भी नहीं था मैं ऐसे आपको पत्र लिखूंगी वो भी तब जब आप का कोई पता और ठिकाना भी नहीं होगा। पापा मैंने आपको कभी पहले भी पत्र नहीं लिखा।वैसे तो पत्र लिखना होता ही नहीं था लेकिन अगर कभी लिखती भी थी आपको तो तो पता ही है तो छोटी बहन को लिखती थी उसी में सबकी बातें हो जाया करती थी।बस अंत में मम्मी पापा को नमस्ते कहना, छोटे भाई बहनों को प्यार।आदि -आदि।
अब आओ मतलब की बात पर।जो मैंने खोजा सोचा उसका तजुर्बा कहता है आपके घर की,रामराज्य की महिमा अलग ही थी।आपने सभी को अपना श्रम और समय दिया। आपकी अयोध्या में प्रेम और विश्वास था। आपने जिंदगी को खूबसूरती से जिया है या खोया है बस और कुछ नहीं लेकिन हमारी जिंदगी अलग है पापा ।ना तो हम आप जैसे और न ही हमें हम जैसे मिल पाएं आपकी शिक्षा और हिम्मत ने हमें टूटने तो नहीं दिया लेकिन हम खामोश बहुत जूझे है।इसे जूझना कहते है या संघर्ष ये तो राम ही जाने। जैनरेशन गेप है ना हममें और हमारी दुनिया में।
अरे!!!….ना ना पापा… मैं दुखी नहीं हूं ईश्वर का दिया और आपकी दुआओं से सब कुछ है पर वो सब नहीं है जो मैं चाहती थी। पर इसमें दुनिया की क्या गलती है कोई किसी को खुश थोड़े ही रख सकता है खुश रहना,दुखी रहना,ये तो हमारे मन की स्थिति होती है ना जो परिस्थितियों पर निर्भर करती है।
सच में पापा आज आपसे बातें करना बहुत अच्छा लगा रहा,मन हल्का सा हो गया ।अब ये मत कहना, ततर-ततर बोलती ही रहती है तो क्या करूं पापा प्रश्न है तो पूछूंगी ही ना?आप ही तो मेरे सबसे अच्छे,पक्के और सच्चे दोस्त हो ओह!थे।आपको खोकर मेंने भावात्मक कितने रिश्ते को को दिया ये तो मेरा मन ही जानता है।जब आप थे मैंने पूछा नहीं कि झट जवाब सामने होता था।देखो अब भी मुझे जवाब दे देना मैं जानती हूं आप जहां भी होंगे मेरा पत्र जरूर पढ़ेंगे और आभास में ज़वाब भी देंगे।सेवा तो आपके हनुमान ने (भाई) की।हम बेटियाँ बस दिल से मान पाती हैं।
कुछ शब्दों का अर्थ वक्त बीत जाने पर ही समझ आता है। जब आप बीमार थे एक दिन अपने मुझसे पूछा था पिच्यासी साल का हो गया अब मैं “क्यों जिंदा हूं”।साल नहीं बीता पापा ये ही प्रश्न अक्सर मुझे भी कुरेदता है कि “मैं क्यों जिंदा हूं”मैं तो अभी साठ की भी नहीं हुई। क्या इतनी तेज होती है वक्त की रफ्तार ।मुझे जवाब मिले तो मैं जानूं ,लेकिन मुझे उम्मीद है मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर जरूर मिलेगा। ओह…….शिट् पापा लाइट गयी मुझे देखना होगा कुछ दिन से फ्यूज जल्दी-जल्दी उड़ जाता है,किसी को बुलाना पड़ेगा।अभी और भी बहुत से प्रश्न है लेकिन “वन बाय वन”पापा अब ये सिलसिला चलता रहेगा मैं पूछती रहूंगी आप जवाब देते रहना उत्तर की प्रतिक्षा में ….
आपकी बेटी
संगीता
संगीता भारद्वाज पाठक
उत्तर प्रदेश, भारत