हर उड़ान भरने को तैयार

हर उड़ान भरने को तैयार

” पापा मुझे कम्प्यूटर कोर्स करना है “, ग्रेज्यूएशन का रिजल्ट आते ही मैने पापा से कहा ।
” ज़रूर करो “, पापा के इन दो शब्दों ने
मेरी उड़ान को मानो पँख लगा दिये ।
घर में पापा, मम्मी , भैया व छोटी बहन मेरे प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने पर बहुत खुश थे । मेरी खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था । एक तो अच्छा रिजल्ट और दूसरा कम्प्यूटर-कोर्स करने की इच्छा भी पूरी ।
अभी हम सब बैठे कम्प्यूटर कोर्स के विषय पर विचार-विमर्श ही कर रहे थे कि पापा के एक मित्र मेरे रिजल्ट की बधाई देने के लिए आए।
उन्होंने जब मुझसे पूछा ,”आगे क्या करना है बेटा ? ” तो पापा ने बड़े गर्व से कहा ,” कम्प्यूटर कोर्स करना है मेरी बेटी को । ”
“लेकिन वो कॉलेज तो बहुत दूर है । कैसे जाएगी ? लड़की है और वहाँ के लड़के तो एकदम गुण्डा टाइप के है। उस कॉलेज में लड़के रोज़ झगड़ा करते रहते हैं । कोई और कोर्स नहीं है क्या ? ”
उनकी बात सुनते ही मेरी खुशी को तो जैसे लकवा मार गया था ।
लेकिन पापा बोले ,”दूर है तो क्या हुआ ? और लड़की है तो क्या डर कर बैठ जाएगी ?”
मेरी आँखों में आत्मविश्वास की चमक थी और मेरे चेहरे पर पापा की परी होने का गर्व साफ झलक था ।
उस समय मेरे पापा का यह निर्णय सचमुच एक चुनौती जैसा था उनके लिए भी और मेरे लिए भी । क्यूँकि कम्प्यूटर जैसे कोर्स तब दिल्ली , मुम्बई जैसे बड़े शहरों में ही थे । हमारे बैच में 65 लड़के थे और केवल 6 लड़कियाँ।
लेकिन मैंने भी ठान लिया था कि पापा के विश्वास और स्वाभिमान को कभी ठेस नहीं पहुँचने दूँगी ।

यह सच है कि हम जिस पितृसत्तात्मक समाज में रहते हैं , वहाँ यदि पिता न चाहें तो उनकी सन्तान को जीवन में कुछ भी हासिल करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता हैै , ख़ास तौर पर अगर वह सन्तान एक लड़की हो तो । शिक्षा की बात हो या विवाह सम्बन्धी फैसले, जैसा पिता चाहते हैं , वही अन्तिम निर्णय माना जाता है।

लेकिन मेरे पापा उन पिताओं से बिल्कुल अलग सोच रखते थे । ईमानदारी, अपने काम के प्रति निष्ठा, दूसरों की यथासंभव सहायता , नारी के प्रति सम्मान आदि कुछ ऐसे गुण थे पापा में , जो मैं चाहती हूं कि हमारे समाज के हर पुरुष में ये गुण हों और हर बेटी अपने पिता से खुल कर हर विषय पर अपने मन की बात कर सके, गर्व सके अपने पिता पर ।

आज पापा हमारे बीच नहीं हैं पर जब भी मैं खुद को किसी दुविधा में पाती हूँ मेरे पापा चीयर लीडर के रूप में मुझे ऊंचाइयों को छूने , हौसला देने के लिए मेरे साथ खड़े होते हैं।
उनका यह कहना कि, ” बेटा चिन्ता किस बात की ? , मैं हूँ ना । इच्छा को मन में ना रखो ” , मुझे एहसास दिलाता है कि …

अपने पापा की परी हूँ मैं ,
मुश्किलों से नहीं डरी हूँ मैं ।
उड़ान भरने को हूँ तैयार,
पापा तुमको ढेरों प्यार ।

समिधा नवीन वर्मा
यूपी,भारत

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