पहली कविता
बचपन के भावाें को सहेज
अपने नन्हें हाथाें से लिखी
मैने
तितलियाें पर एक कविता ।
खुशी से
थिरकती ,उछलती पहुॅंची
पिता के पास
कहा-
पिता देखाे मैंने की है रचना
लिखी है मैने कविता ,
पिता ने हॅंसकर
माथा चूम लिया
कहा,मेरी लाड़ली
है यह मेरी
प्यारी सुन्दर कविता ।
यह सुन मैं मचलने लगी
आैर पूछ बैठी पिता से
पिता मेरे
क्या लिखी है तुमने
कभी ऐसी कविता ?
पिता ने हॅंसकर कहा-
लाड़ली ;
तू ही ताे रचना मेरी
तुझकाे गढ़ा मैंने
तू ही है मेरे जीवन का गीत
तू ही है कविता मेरी ।
मैंने भावनाआें मे बह
पिता काे चूम लिया
आैर यह कह थिरकने लगी
मैं हूॅं पिता की पहली कविता
मैं हूॅं पिता के जीवन का गीत ।
डाॅ आशा गु्प्ता “श्रेया”