पिता
देखा है बचपन से
कैसे अपनी हर ख्वाहिश
को छिपा कर हम भाई बहन
को दी हर सुख की छांव
कभी न रुके न थके
कभी न कहीं गए
कभी न कोई छुट्टी
बस काम और बस काम
अच्छी से अच्छी शिक्षा
खान पान ,पहनावा रखा
हम भाई बहन का
कर खुद के लिए कटौती
पूरा रखा ध्यान सदा हमारा
कड़ी मेहनत
छोटे थे जब हम भाई बहन लगाते थे फेरी साईकिल पर
न देखी गर्मी की तपती धूप
न देखी ठिठुरती सर्दी
न देखी बारिश न आंधी
न तूफान बस पढ़ाने को
अच्छे स्कूल में करते रहे कड़ी मेहनत।
हम दोनों के बड़े होते होते
ले ली अपनी दुकान
बन गया दो मंजिला मकान
पर फिर भी न छूटी उनकी
कड़ी मेहनत
पर हार माननी ही पड़ी
स्वास्थ्य के चलते जब पहली बार पड़ा दिल का दौरा
इसके बाद धीरे धीरे गिरने
लगा स्वास्थ्य उनका
फिर भी मन में इच्छा रहती
दुकान पर जाने की
हम और भाई दोनों अच्छी
नौकरी पर लग चुके थे
फिर भी उन्हें आराम कहाँ
दोनों की शादियाँ हो गईं
तब उनकी बाईपास सर्जरी हुई जिसके बाद बस घर पर
ही रहना पड़ा
हालांकि हम बचपन से आज तलक अपने पिता से बहुत ही कम बात करते हैं जो भी कहना होता या है वो माँ के ज़रिए ही होता क्योंकि न जाने क्यों एक अनजाना सा
मन मे भय रहा है पर सच
पूछिए तो दिल हमेशा से
नतमस्तक होता रहा है उनकी
हिम्मत और मेहनत को देख
हम बच्चों के लिये
पाकिस्तान के विभाजन के बाद छोटी सी ही उम्र में
कुछ भी पास न होने से
न माँ बाप का साया न भाइयों का साथ खुद ही अपनी तकदीर लिखी , बनाई , संवारी साथ ही खुद की
संपन्न दुनिया भी बसाई ।।
मीनाक्षी सुकुमारन