पिता

पिता

जो पीता है बच्चों के लिए
दुख और तकलीफ़
जो आकंठ डूबा होता है स्नेह से,
मगर मौन शांत रहकर
सींचता है अपने वृक्ष – बेलों को…

पिता
जो पी लेता है
हर विषम परिस्थितियों के विष को
मात्र अपनी संतान को
अमृत की जीवनदायिनी घूंट देने के लिए…

पिता
खुद लड़खड़ाता तो है पर
अपने वंश – बेलों को देखना चाहता है
दृढ़ और आत्मनिर्भर,
खुद से बेफिक्र मगर
पल -पल फिक्रमंद अपने
घरौंदे के लिए,
जिसे चुन- चुन सजाता है
उम्मीदों और अपने
खून पसीने की बूंदें से!!

पिता
कहता नहीं कुछ
मगर मौन
हर क्षण में जीता है
पिता सचमुच ईश्वर है जो
सिर्फ और सिर्फ अपनी संतान के लिए
हर हलाहल को चुपचाप पीता है!!

अर्चना रॉय
रामगढ़ (झारखंड)

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