बिन पिता के

बिन पिता के

स्वाभिमान, सुरक्षा, स्नेह, समर्पण
वटवृक्ष सी छाया जिसने की अर्पण

चरणों में जिसके सब कर्म धर्म
समझाया जिसने जीवन का मर्म

माँ के जीवन के, जो थे परिभाषा
मिली उन्हीं से अदम्य जिजीविषा

निष्ठा, कर्त्तव्य, पोषण, अनुशासन
मूल मंत्र सा जिसने, फूंका अंतर्मन

बिन तुम्हारे अधूरा हर संकल्प
तुम बिन दूजा न कोई विकल्प

बिन तुम्हारे ये जीवन लगे अधूरा
ये रिक्त स्थान हो कैसे पूरा ?

चरणों में तुम्हारे करूँ मैं नमन
जीवन के तुम्हीं हो आधार स्तम्भ।

नीरजा मेहता ‘कमलिनी’

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