एक पेड़ गुलमोहर का
लगाया था एक पेड़
लाल गुलमोहर का
घर के आँगन में
अपने ही हाथों से
आपकी याद में पिताजी
खड़ा है मेरे साथ आज भी
जैसे आप खड़े रहते थे
अपनत्व की छाँह लिए
अपलक निहारते थे आप जिस तरह
निहारती हूँ हरदम मैं लाल गुलमोहर
झड़ते हैं लाल लाल फूल वैसे ही
झड़ते थे आशीर्वचन मुख से आपके
सिखाया आपने वह बताता गुलमोहर
तपती गर्मी में तप निखरता गुलमोहर
मौसम है पतझड़ का,मुश्किलें बड़ी हैं
आशाओं की कोंपलें आज भी हरी हैं।
आनन्द बाला शर्मा