कन्यादान एक विवशता

कन्यादान एक विवशता

सामान्यतः मध्यमवर्गीय परिवारों मे लड़कियों के विवाह के लिए आदर्श उम्र स्नातक के बाद से ही मानी जाती है ।ज्यादातर मामलों मे उच्च शिक्षा और भविष्य संबंधी सभी निर्णय लड़की के भाग्य और ससुराल पक्ष के मिजाज पर निर्भर करता है!हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, बात उन दिनों की है, जब मैं स्नातक के अंतिम वर्ष की परीक्षा देकर छात्रावास से घर
वापस आयी भविष्य को लेकर बहुत सारे नियोजन थे मेरे भी, हर आम लड़की की तरह, आँखो मे ढेर सारे खूबसूरत सपनें, चाटर्ड एकाउण्टेंट बनेंगे ऐसे करेंगें, वैसे करेंगे वगैरह वगैरह….
लेकिन बाबू जी मेरे ब्याह को लेकर बहुत चिंतित थे वह हर दूसरे दिन
याचक की भांति एक वर पक्ष के दरवाजे पर याचन करने पहुंच जाते,
और याचक भी ऐसा जो अपने सेवानिवृत्त पर प्राप्त समपूर्ण भविष्य निधि, घर परिवार चलाते हुए और एक जोड़ी कपड़े मे बिना चप्पल जूते के जो बचा पाए वह सब जमा पूजीं निछावर करने को तैयार। फिर भी बात कहीं जमती नहीं थी कहीं दहेज का बखेड़ा तो कहीं रूप का
एकबार बाबूजी किसी आयकर विभाग के वर के लिए रिश्ता लेकर गए
बाबू जी ने मेरा वर्णन प्रारंभ किया
“मेरी बेटी ग्रेजुएट विथ डिसटिंगसन है, सुशील है, संस्कारी है,देखने मे भी सुंदर है” तभी लड़के के पिताजी ने बाबूजी की बात काटते हुए कहा
“देखिए देखने सुनने का तो कुछ नहीं कुत्ते बिल्लियों को भी
अपने बच्चे अच्छे लगते हैं,मुझे फलाँ गाँव के फलाँ बाबू इतना कैश दे रहे हैं
आप सक्षम हैं तो बताईए अन्यथा जाईए।
उनकी मांग एक सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक के भविष्य निधि और जमा पूजीं पर भारी था बाबूजी पुनः निराश होकर आ गए।हलांकि उन्होंने हिम्मत नहीं हारी थी ऐसा तो पन्द्रह सोलह बार हो चुका था
वो माँ को व्यथा कथा बताते तो बात मुझ तक भी पहुंच हीं जाती भाभी के मार्फत,अब मुझे विवाह शब्द से नफरत होने लगी थी
अगले सुबह बाबूजी एक बैंक वाले लड़के के प्रति मेरा रिश्ता लेकर गए
फिर वही रटा रटाया डायलॉग मेरे बाबूजी का
“मेरी बेटी सुंदर है सुशील है ग्रेजुएट विथ डिंसटिंगसन है”
तभी लड़के की माँ ने कहा”डिसटिंगसन फिसटिंगसन से क्या होता है दबाना तो जिंदगी भर उसको मेरा पाँव ही है..”
इस बार मेरी बाबूजी को यह बात अच्छी नहीं लगीं और वह वो रिश्ता छोड़कर आ गए और माँ से बोले “देखो जी स्नेह सम्मान से सासू की सेवा करने और जिन्दगी भर पाँव दबाने मे फर्क होता है हम बेटी को इस
भविष्य के लिए इतना दुःख काटकर नहीं पढ़ाए लिखाए हैं,उसको बोलिए पढ़ाई जारी रखने”
माँ बोली “उ तो सी ए करना चाहती है
दिल्ली या कलकत्ता भेजना पड़ेगा!”
बाबूजी ने थोड़ा रूक कर कुछ सोचते हुए कहा
“नहीं !!दिल्ली कलकत्ता नहीं हो पाएगा समाज मे सब सौ तरह की बातें करेंगे बोलिए अपने ही विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर कर ले
जब कोई ढंग का लड़का मिलेगा जो उसकी पढ़ाई ना रोके तो देखा जाएगा”
माँ ने स्वस्ति मे बस इतना कहा”ठीक है तजहु आस निज निज गृह जाहु लिखा ना विधि वैदेही विवाहु”
आज जब पीछे पलटकर देखती हूँ, सोचती हूँ, तो बस इतना ही समझ पाती हूँ कि कोई पिता नहीं चाहता उसकी बेटी चूल्हा चौका के धुएँ मे होम हो जाए ,कन्यादान पिता की सामाजिक विवशता है।

“कुमुद “अनुन्जया”

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