एक पेड़ लगाएं

एक पेड़ लगाएं

जीवन निर्भर जिस प्रकृति पर उसका ही किया अपमान
देखो मानव तुमने कैसा किया अपना ही नुकसान
विपदा का कारण तुम हो,तुम ही हो वह मनुष्य महान
प्रकृति से किया छेड़छाड़ अब क्यों दे वो तुम्हें मान
अब तो समझो प्रकृति का संदेश तुमने किया गलत है काम
मानव अब तो बदलो अपना यह वेष, प्रकृति देती तुमको संदेश
विपदा जो आज आई है तेरी ही तो भरपाई है
खेत खलिहान भी चीख रहे हैं सिसक रहे हैं
पर्यावरण भी अपना रुख इसलिए बदल रहे हैं
मानव तुम ही दोषी हो कुदरत के इस चित्कार का
पेड़ सभी तुम काट रहे हो किसके भरोसे आस रहे हो
पेड़ लगाओ धरती को फिर हरा-भरा बनाओ
पर्यावरण की कीमत समझो हवा को शुद्ध बनाओ
पेड़ों से जीवन है पेड़ों से कुदरत का नाता
पर्यावरण का रखो ख्याल प्रकृति देखेगी फिर आपका हाल
अपनी नादानी भूल जाओ तुम अब भी वक्त है संभल जाओ तुम
पर्यावरण से प्यार करो कुदरत को गले लगाओ तुम
हां एक पेड़ जरूर आज लगाओ तुम

निक्की शर्मा रश्मि
साहित्यकार
मुंबई,भारत

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