आदित्यपुर में बदलता पर्यावरण और हम

आदित्यपुर में बदलता पर्यावरण और हम

झारखंड के सरायकेला खरसावां जिले के गम्हरिया प्रखंड में आदित्यपुर क्षेत्र आता है l बीसवीं सदी तक आदित्यपुर में गाँव का वजूद मौजूद था l पेड़-पौधे थे, हरियाली थी और साफ-सुथरे जल स्त्रोत मौजूद थेl वर्तमान समय में आधुनिकीकरण और औद्योगिकीकरण की अंधी दौड़ में यह सब कुछ धूमिल होता चला जा रहा है l गाँव बस्तियों में परिवर्तित होते चले जा रहे हैंl सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क निर्माण किया जा रहा हैl आदित्यपुर के प्रत्येक गाँव में बिजली पहुंचाई गई हैl खेत-खलियान अब कंपनी की शक्ल में परिवर्तित हो रहे हैंl पेड़-पौधे विकास की भेंट चढ़ रहे हैंl पहले जहाँ हर 1 किलोमीटर के दायरे में एक साफ़- स्वच्छ तालाब हुआ करता था, अब हर जगह ऊँची-ऊँची मंजिलें दिखाई पड़ती हैंl एक आध तालाब बचे भी हैं तो वह बस्ती की गंदगियों का सामना कर रहे हैं l कागजों में तो तालाब के जीर्णोद्धार पर प्रतिवर्ष हजारों रुपए खर्च हो रहे हैं, पर वास्तविकता में तालाब, नदी और अन्य जल स्त्रोत दूषित और केवल दूषित ही किए जा रहे हैंl बस्ती की परंपरा विकसित होने से अत्यधिक आबादी का ठहराव विभिन्न जल स्रोतों के आसपास हो रहा हैl बस्ती में न ही पर्याप्त साफ-सफाई की व्यवस्था रहती है और न ही पर्याप्त जीवन की आधारभूत सामग्रियों की उपलब्धताl इन बस्तियों का निर्माण सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करते हुए कुछ बाहुबलियों के द्वारा गरीब तबके लोगों को कम पैसे में रहने के लिए दे दिया जाता हैl जहाँ न शौचालय की व्यवस्था है, न पीने के स्वच्छ पानी का और न ही आवश्यक घरेलू कार्य हेतु पानी की उपलब्धता हैl हर मनुष्य भौतिक सुख-सुविधाओं के पीछे इस कदर दौड़ लगा रहा है कि उसे पता ही नहीं चल रहा है कि उसकी आने वाली पीढ़ी को स्वच्छ मिट्टी, पानी और वायु उपलब्ध हो पाना मुश्किल हो जाएगाl वह तो केवल अपनी भौतिक सुख-सुविधाओं के लिए पर्यावरण में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों जैसे जल, जंगल, जमीन का जितना हो सके, उतना दोहन किए जा रहा हैl


औद्योगिकीकरण और विकास के नाम पर अनगिनत पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की जा रही हैl पेड़ एक ओर जहाँ प्रकृति में संतुलन बनाए रखते हैं, वहीं स्वच्छ वातावरण, स्वच्छ वायु और तापमान को नियंत्रित करने का कार्य करते हैं, उन्हें बहुत ही बेरहमी से काटा जा रहा हैl बीसवीं सदी में आदित्यपुर के कई गांव में खेती की जाती थी, वहीं अब ऐसा लगता है मानो मानवों की खेती हो रही हैl जहाँ हरे-भरे पेड़ हुआ करते थे, वहाँ वाहनों और मनुष्यों की भीड़ नजर आती हैl निजी कब्जे वाले ज्यादातर तालाब अत्यधिक धन प्राप्ति के लिए बिल्डरों के हाथों बेच दी गई हैl वहाँ अब बहुमंजिली इमारत खड़ी हैंl कुछ किसान परिवार आज भी जल, जंगल और जमीन के सुरक्षा में लगे हुए हैंl आज भी वे पारंपरिक खाद के इस्तेमाल से खेती करते हैं जिससे जमीन को हानिकारक रासायनिक उर्वरक से बचाया जा सकेl तालाब का संरक्षण करते हैं, ताकि गर्मी के मौसम में उन्हें सब्जियाँ उगाने में पर्याप्त जल उपलब्ध हो सकेl खेतों के मेड़ पर और अपने बगीचे के आसपास बड़े-बड़े फलदार पेड़ लगाते हैं, जिससे गर्मी में खेतों में काम करते समय उन्हें और अन्य राहगीरों को छाँव मिलेl जो किसान केवल खेती में लगे हुए हैं, उनकी स्थिति बद से बदतर होती चली जा रही है क्योंकि शहरी क्षेत्र में खेती करना बहुत कठिन हो रहा हैl खेतों में काम करने के लिए कामगार नहीं मिल रहे हैंl पशुओं को चराने के लिए चरवाह की जमीन कम पड़ रही है, जिससे लोग अपने पालतू पशुओं को छोड़ देते हैं जो सीधे खेतों में उतर कर फसल को बर्बाद करते हैंl ग्रामीण संस्कृति में प्रत्येक परिवार एक दूसरे की फसल की सुरक्षा का जिम्मा उठाता था, पर अब बस्ती संस्कृति या शहरी संस्कृति में सब केवल अपनी और अपने पशुओं की चिंता करते हैं न कि किसान के फसल की बर्बादी कीl उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके पशु किसी अन्य किसान के फसल को सफाचट कर दें, उन्हें तो किसी भी हाल में अपने पशु का पेट भरना रहता हैl ग्रामीण संस्कृति में में जहाँ जल में गंदगी फैलाना पाप समझते थे वहीं अब बस्ती संस्कृति में लोग घरों की गंदगी को तालाब के पानी, नदी या खाली पड़े खेतों में फेंकते हैं । गरीब अकेला किसान मना करता है तो उसके साथ झगड़ते हैं। इस तरह से बस्ती संस्कृति के कारण जल और जमीन प्रदूषित हो रहे हैं।

पर्यावरण को बचाने के महत्वपूर्ण सुझाव
सर्वप्रथम गैर कानूनी तरीके से बनने वाली बस्तियों के विस्तार को रोकना होगाl प्रत्येक नागरिक की यह जिम्मेदारी होनी चाहिए, कि वह बिना सोचे समझे कहीं भी अंधाधुन बस्तियों का निर्माण नहीं होने दे।

छोटी-छोटी कंपनियों को अपने मजदूरों के लिए रहने, खाने-पीने, शिक्षा, चिकित्सा और साफ- सफाई की समुचित व्यवस्था करना होगा।भले ही कंपनियाँ वेतन कम दे पर आधारभूत सुविधाएँ अवश्य देनी होगी। ऐसा करने से बस्ती संस्कृति पर रोक लगेगी।

गाँवों के विकास के लिए जमीनी स्तर पर कार्य करना होगा न की कागजी कार्रवाई। गाँव में रहने वाले को गाँव में ही रोजगार उपलब्ध कराना होगा। इसके लिए कृषि से संबंधित लघु उद्योग और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना होगा। जैसे – गाँव में अनाज उपजता है, तो उसके भंडारण की व्यवस्था गांव में ही होनी चाहिए, साथी अनाज से बनने वाले विभिन्न खाद्य सामग्रियों का उत्पादन गांव में ही किए जाने की व्यवस्था करनी होगीl ऐसा करने से गाँव के लोग खेती छोड़कर शहर की ओर नौकरी के लिए नहीं दौड़ लगाएँगे ।

गाँव में सभी मूलभूत सुविधा जैसे – शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार उपलब्ध कराने होंगे ।केवल निशुल्क चावल वितरण करते हुए मानव संसाधनों के दुरूपयोग से बचना होगाl जो वस्तु मुफ़्त में उपलब्ध होती है, लोग उसका मोल नहीं जानते हैं और उसका दुरूपयोग ही करते हैंl प्रत्येक व्यक्ति से उसके सामर्थ्य के अनुसार काम लेकर यदि उन्हें रोजगार दिया जाए, तो देश के विकास में ग्रामीण गरीब जनता का भी महत्वपूर्ण योगदान होगाl आज के समय जैसा वो देश के लिए मात्र बोझ नहीं रहेंगेl गाँव में सभी सुविधाएँ उलब्ध रहने पर लोग गाँवों के स्वच्छ वातावरण में रहना अधिक पसंद करेंगे।

वर्तमान समय में सरकार की बहुत सी नीतियों में सुधार की आवश्यकता है, जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले को शहरी क्षेत्रों की तुलना में कम वेतन प्रदान करना, ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को काम उपलब्ध न करा पाना, ग्रामीण क्षेत्रों में समुचित चिकित्सा, बाजार, शिक्षा की व्यवस्था न होनाl हमारे देश भारत में ही पंजाब में लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हुए खेती करना नौकरी से ज्यादा बेहतर समझते हैं।पर यहाँ लोग खेती की तुलना में शहरों में रहकर नौकरी करना ज्यादा बेहतर समझते हैं, जिसके कारण शहरों के आसपास बस्ती संस्कृति का विकास होता चला जा रहा है।

बस्ती में रहने वाले लोगों में अशिक्षा के कारण वे साफ सफाई के प्रति जागरूक नहीं रहते हैं इसलिए अपने आसपास के क्षेत्रों में गंदगी फैलाते हैं। इसे रोकने के नगर पालिका को साफ सफाई की समुचित व्यवस्था करनी होगी । साथ ही आसपास के जल- जमीन को गंदा करने वाले लोगों पर उचित कार्यवाही करते हुए जुर्माना वसूला होगा, ताकि जल-जमीन को साफ- स्वच्छ किया जा सके।

सब को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना होगा कि पर्यावरण हमारे लिए हमारी माँ की तरह है, जो हमें हर सुख सुविधाएँ प्रदान करता है और बदले में हमसे कुछ नहीं लेता है । हमारा भी उसके प्रति दायित्व होना चाहिए कि हम उसके उसे साफ और स्वच्छ बनाए रखें और साथ ही पर्यावरण में संतुलन बनाए रखें।

डॉ मनीला कुमारी ‘ मानसी’
जमशेदपुर, झारखंड

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