“पर्यावरण और त्योहार “
डरे सहमे से पेड़-पौधे
जा पहुंचे मानव के पास
दीपावली करीब आ गई तो
उनकी थीं शिकायतें खास..
पत्ते, शाखाएं, फूल और कलियाँ
सबके सब कुछ घबराए थे
नन्ही घास,बेलें, लताएँ, फल
मुँह बनाए और गुस्साए थे-..
“हर तरफ दीवाली की खुशियाँ हैं
पर हम सब सहमे से खड़े हैं
अजीब हुई मानव की फितरत
जलवायु दूषित करने में अड़े हैं..
हम सब मिलकर इतना सुख देते
पर तुम हमारा जरा न सोचते
खुद तो पटाखों से खुश हो लेते
दूषित वायु तो हम ही भोगते..
हर पल हम तुम्हें कुछ देते
कभी औषधि, कभी ऑक्सीजन
तुम हमारा कब सोचते हो?
नष्ट करने में लगे हो जीवन..
पत्थर और कुल्हाड़ी सहते
फिर भी हम छाया,फल देते
हमारे लिए तुम क्या करते हो?
हम तो तुम्हें सुनहरा कल देते..
कभी नहीं कुछ माँगा तुमसे
बस,मतलबी आचरण से बचाओ
कैसे रहें महफूज़ हम सब
तुम्हीं कोई उपाय सुझाओ..”
सुन शिकायतें पेड़-पौधों की
मानव जरा हो गए गम्भीर
बोले-“समाधान अवश्य ही होगा
मत हो मेरे दोस्त अधीर..
तुम्हारे लिए भला क्यों न सोंचे?
हमारा जीवन तो तुम्हीं से है
होली,दिवाली, ईद या क्रिसमस
हर त्योहार तो तुम्हीं से है..
वृक्ष बड़े हों या हों छोटे
तुलसी,पीपल,बरगद,घास
सबका है उपकार हम पर
सब पर्यावरण के लिए हैं खास..
वचन तुम्हें देते हैं हम सब
ऐसी दीपावली अब मनायेंगे
संयमित करेंगे धुआँ और ध्वनि
प्रदूषण पर अंकुश लगायेंगे..
अपने घर रंगोली बनाकर
जब आंगन और द्वार सजायेंगे
हटाकर कचरा बगीचे, सड़कों से
वातावरण भी चमकायेंगे..
पूजा-पाठ भी तभी फलेगा
जब स्वच्छ और स्वस्थ रहे हर जीव
अच्छी संस्कृति, संस्कार तभी जब
स्वस्थ पर्यावरण की पड़ेगी नींव..”
यह सुनकर पेड़-पौधे खुश हो गए
न रही घबराहट, न रहे गमगीन
चली बयार फिर खुशियों वाली
स्वस्थ पर्यावरण के लिए ‘आमीन’
अर्चना अनुप्रिया
दिल्ली