गात्री
दूर-दूर तक हरियाली से भरी तराई और ऊँचे-ऊँचे नियमराजा के बोलनेवाले पर्वत! नियमराजा ही उन्हें जीने के नियम देता है। गात्री आम की घनी छाँह में खड़ी पर्वतों को निहार रही है। उम्र कोई पंद्रह-सोलह। बड़ी-बड़ी आँखें उदास, सवाल करतीं सी, साँवली चमक से भरा पानीदार चेहरा,घने बाल और सीधी माँग जैसे घने जंगल के बीच बनाई पक्की पगडंडी हो। बालों में रंग-बिरंगे क्लिप, नाक में बाली की तरह लटकती तीन-तीन नथनियाँ, कानों में भी चंद सजे हुए, लाल साड़ी , गले में लाल और पीले धागों में पिरोयी चंद मोतियाँ, धागा अधिक मोती कम। नेशनल जियोग्राफ़िक का फ़ोटोग्राफ़र होता तो हज़ार तस्वीरें खींच लेता।
वह जानना चाहती है कि नियमराजा ने सरकारों के लिये भी कोई नियम क्यों नहीं बनाए? वैसे ये सरकार होते कौन हैं जो आज्ञा दे देते हैं कि नियमगिरी की छाती को खोदकर उसे तहस-बहस किया जाय! आठ हज़ार डोंगरिया गोंडों, देसी, कुटिया सभी के सभी पर्वतवासी, गाँव के गाँव काँप रहे हैं सोचकर कि मांझिगढ की ऐल्यूमिनीयम फ़ैक्ट्री केलिये इन पहाड़ों से धातु खोदे जाएँगे बड़ी-बड़ी मशीनों से! विदेशी कंपनी आयेगी। वह क्या जाने कि ये पर्वत उनके नियमराजा का शरीर है। उसे नष्ट किया तो हम खाएँगे क्या? नियमराजा पेनु(भगवान) का जन्मस्थान चोटी पर स्थित नियम डोंगर है जिसके पास ही खदान खुदेंगे! कितना बड़ा अपमान! उसके पेड़ों से आम, कठल और तरह-तरह के फल, शहद, काँदे, कुकुरमुत्ता, झाड़-लकड़ियाँ वगैरह मिलती हैं तो खाया जाता है, बेचा जाता है, उनके घरों की बुनियादें बनती है। उसकी ढलानों में फैली ज़मीनों में खेती होती है, तरह-तरह के छोटे या मोटे अनाजों की फसल होती है। हर साल ज़मीन परती पर न छोड़ो तो नियमराजा का दोष लगेगा। कोदो,बाजरी,नाचनी,कांगनी,कोरदे वगैरह अब वे कहाँ उगाएँगे? अब तो पिछले कुछ सालों से चावल उगाने लगे हैं। उसे तो चावल पसंद भी नहीं है। अम्मा तो थूक देती हैं पर करें क्या बाज़ार में इसीकी बिक्री है और इसीसे झंझट भी! वैसे बाज़ार से नमक, कपड़े, किरासन तेल और सूखी मच्छी आती है बस! बाक़ी सब तो नियमराजा के पहाड़ों से उन्हें मिल ही जाता है। पैसों का क्या करेंगे वे?
पिछले कई महीनों से गाँव में उथल-पुथल हो रहा है। भीड़ इकट्ठे होकर चर्चा करती है, जनसेवी संस्था से मिलकर योजना बनती है। इस समस्या से निपटने की तैयारी हो रही है। किसीका मन मानता नहीं, किसीको खाने की फुर्सत नहीं।
तभी उसने देखा सामने से कोई आ रहा था। अरे! ये तो जानी जी हैं । जानी जी इस बखत यहाँ क्या कर रहे हैं? उनका सहायक लाडो भी साथ था । दोनों ने कुछ पत्थर लगाए, हल्दी, फूल और कुछ मांस चढ़ाया। जानी भारी स्वर से बोल रहा था—नियम राजा पेनु, सम्भालो हमें, हमारे घर सम्भालते हो, बच्चे सम्भालते हो, फसल सम्भालते हो, अब खुद की भी रक्षा करो। हम तुम्हारे पैरों तले सारा जीवन बिताना चाहते हैं। हमें नहीं चाहिए, खदानों की कुलीकमरी, नौकरी और पैसे। तुम्हें कुछ हुआ तो हम कहाँ जाएँगे? गाँव, कुटुंबा, मठा के लोग सरकार से नहीं लड़ सकेंगे।
पुजारी पहली बार जानी को रोते देख रहा था। उसने भी चिंतापूर्वक सर झुका दिया। तभी ज़ोर की बिजली कड़की। आसमान का नीलापन कहीं से आए बादलों से काला हो रहा था। जानी घोषणा करते हुए उठ खड़ा हुआ—-रक्षा करो नियम राजा पेनु! गामापेनु(सूरज भगवान) , धरनी पेनु रक्षा करो! हम कहाँ जाएँगे, वंसधरा नदी के जल की क़सम, यही प्राण दे देंगे। गात्री भी नीचे माथा टेक कर रोने लगी। उसे मालूम तभी उसकी नज़र मुड़ी। उत्तर दिशा में धूल उड़ रही थी। लगा जैसे सारे गाँव क कुड़े(वंश समूह) मिलकर उनकी ओर आ रहे हैं। सबसे आगे बोली, कुंती माँझी, कादो, बारी, सीरी, कृष्णा क़ुदरक, पीछे -पीछे बड़े-बूढ़े टोकरियों में फल-फूल सजाए। ओह! सब जानी के कहने पर जा रहे हैं नियमराजा को भेंट चढ़ाने। गात्री भागी घरवालों की ओर।
जानी बोला – देख पुजारी, सबके सब आज चोटी पर चढ़ने निकले हैं नियमराजा के। अब वह आसमान में भीमा पेनु को हमारा संदेश ज़रूर भिजवाएगा।
सबसे आगे लटकन था । आकर बोला चलो जानीजी, नयु कुटुम्बा( सामाजिक व्यवस्था की समिति) के लोग भी हैं। मैं नियमगिरी की चोटी पर आज ही दसरा मनाऊँगा।
कई दिनों से ग्राम मंडलों, संस्थाओं और कचहरी का चक्कर लगाते-लगाते चेहरे सूख गए थे। उन्हें तो शहर जाना ही झंझट लगता था। पानी भी पीना हो तो पैसे चाहिए!
‘क्या? दसरा अभी?’ जानी के पल्ले कुछ न पड़ रहा था।
“आपने सुना नहीं… बारह ग्राम मंडलों ने सुनवाई दे दी है हमारे पक्ष में। नियमराजा को कोई हाथ नहीं लगाएगा। यहां सरकार फ़ैक्ट्री नहीं खोलेगी! हमारी लड़ाई जीत गई।”
जानी अवाक् रह गया।फिर बोला- तभी तो बिजली कड़क रही थी! नियम राजा ने सब सम्भाल लिया है।
सूखे चेहरों में अब चमक थी। अपनी तक़दीर के मालिक अब वे खुद थे।
सत्य और शिव के लिये किया गया यह अमूल्य सामूहिक प्रयास मनुष्य और भगवान दोनों के लिये जीत थी।
गात्री को पूरा विश्वास है अपने गाँववालों पर और नियमराजा पर भी! आगे वह मंडल का सदस्य जरूर बनेगी।
(सत्य पर आधारित काल्पनिक कथा)
राधा जनार्धन
केरल