दुःख के बादल
कोरोना काल चल रहा था।रीमा भी लॉकडाउन का बहुत अच्छी तरह से पालन कर रही थी। लॉकडाउन को चलते दो महीने हो चुके थे।रीमा ने बिल्कुल भी हार नहीं मानी थी।शुरु-शुरु में विचलित जरूर हुई थी,जब टेलीविजन मर मरने वालों को संख्या देखती थी। लॉकडाउन में रीमा ने वो सब काम किए जो उसका मन हमेशा से करने को करता था,किन्तु वक़्त की कमी के कारण कभी कर ही नहीं पाती थी।
बहुत सारी अधूरी पड़ी पेंटिग्स को पूरा कर डाला,ऊबड़-खाबड़ हुए अपने लॉन को न सिर्फ व्यवस्थित ही किया बल्कि उनमें नये पौधे भी लगा डाले।कुछ पौधे ऐसे भी हैं जो उससे रोज बात करते हैं। रीमा को शुरु से ही पौधों से बातचीत करना बहुत पसंद है। फूल हैं जो अपनी खुशबू बिखेरकर उसका धन्यवाद करते हैं,अपनी खिली-खिली मुस्कान से उसके चेहरे को कभी मुरझाने नहीं देते।रीमा की जान बसती है इन पौधों में।इतना ही नहीं जाने कितनी अधूरी पड़ी कहाँनियों,नज़्मों,गज़लों को उनके मुकाम तक पहुँचाया था रीमा ने।जो ना जाने कब से अपने अन्तिम चरण में पहुँचने के लिए प्रतिक्षारत थीं।
रीमा की व्यस्तता पहले से भी ज्यादा बढ़ गई थी।आठ से पाँच बजे तक ऑफिस का काम और बाकी समय में ये सब चीजें।रीमा का दिल बहुत कोमल था किसी दुख दर्द उससे नहीं देखा जाता था,हर समय दूसरों की मदद के लिए तैयार रहती थी।इस मुसीबत के समय में भी उसने जरूरतमंदों का बहुत साथ दिया था।उसने एक संस्था बनाई मानसिक रूप से टूट रहे लोगों की मदद के लिए।जिसमें कोई भी व्यक्ति कभी भी फोन करके अपनी परेशानी रीमा से शेयर कर सकता था।
सब कुछ बस ऐसे ही चल रहा था। वक़्त बीतता जा रहा था।कोरोना नाम का राक्षस कब जायेगा किसी को कुछ पता नहीं था।रीमा ने भी मन में सोच ही लिया था कि पाँच महीने लगें या छह महीने वो तो उदास और हताश होने वाली नहीं है,बहुत काम जो हैं उसके पास।पर कभी -कभी हम जैसा सोचते हैं वैसा होता कहाँ है।
आज रीमा रातभर सो नहीं पाई।उसका दिल और दिमाग दोनों ही सुन्न पड़ गए थे।किसी काम में भी मन नहीं लग रहा था।फूल अपनी खुशबू बिखेर कर उसको अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे, पर उसका ध्यान तो कहीं ओर ही था।क्या ये मन का उचाटपन उसके पति के साथ हुए झगड़े का परिणाम था।ऐसी कौन सी बात थी जो उसके मन में शूल सी चुभ गई थी।उसका सुख-चैन सब छिन गया था।रीमा को अपना अस्तित्व बिखरता हुआ दिख रहा था।उसका मन बार-बार हो रहा था कि वह सब कुछ छोड़-छाड़कर कहीं दूर चली जाए, जहाँ कोई उसे ढूँढ़ भी ना पाए।तभी फोन की घण्टी बज उठी।रीमा ने जैसे ही फोन उठाया दूसरी तरफ से सिसकियों की आवाज़ आ रही थी।काफी समय बाद सिसकियों का आना जब शांत हुआ रीमा ने फोन करने वाले का नाम और परेशानी पूछी उधर से जवाब आया-“मेरा नाम सुमन है।मैं और मेरे पति कुछ समय के लिए अमेरिका से मुम्बई घूमने के लिए आए थे।हमारे बच्चे अमेरिका में हैं।अभी हम कोरोना के चलते अमेरिका वापस नहीं जा पाए हैं।मेरे पति कुछ दिन से बीमार चल रहे थे।जब टेस्ट किया गया तो उनको कोरोना के लक्षण पाए गए।काफी इलाज़ के बाद भी डॉ०उनको बचा नहीं पाए।मेरी तो जैसे दुनिया ही उजड़ गई है।मुझे कुछ सूझ नहीं रहा है।मेरा मन कर रहा मैं कहीं ऐसी जगह चली जाऊँ जहाँ कोई मुझे कभी ढूँढ ही ना पाए।”
ये सब सुनकर रीमा स्तब्ध रह गई,और सोचने लगी कि उसे अपना दुख कितना बड़ा लग रहा था।पति से अनबन ने उसे रातभर सोने नहीं दिया,पर सुमन का क्या उसने कभी सोचा भी नहीं होगा कि उसके साथ ऐसा कुछ भी हो जाएगा।
उसने खुद को सम्भाला और सुमन को आश्वाश्न देते हुए समझाने लगी-“सुमन जी मैं मानती हूँ आपका दुख असहनीय है,फिर भी आपको हिम्मत रखनी होगी अपने बच्चों के लिए।आप सोचिए कि आपके बच्चे जो आप दोनों के अमेरिका लौट आने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहें हैं, उनके लिए कितना पहाड़ टूटेगा जब उनको पिता को खो देना का पता चलेगा और ऐसे में अगर आप भी कहीं चली गईं या आपने खुद को कुछ कर लिया तो उन बच्चों की तो दुनिया ही उज़ड़ जायेगी।सुमन जी आपको जीना होगा उन बच्चों के लिए।उनको पिता का प्यार भी आपको ही देना है।अपने बच्चों में आपको अपने पति की छाया दिखेगी सुमन जी।क्या आप उस छाया को देखना नहीं चाहेंगी।?”
सुमन की कपँकपाई आवाज़ आई-“जी देखना चाहूँगी…..मैं जीऊँगी….. अपने बच्चों के लिए मैं जीऊँगी….।”
रीमा ने आगे कहा-“कल ही एक स्पेशल फ्लाईट अमेरिका के लिए जाएगी, मैं आपको उसमें भिजवाने का इंतज़ाम करती हूँ।सुमन जी आप अपनी अमेरिका लौटने की तैयारी कर लीजिए।”सुमन ने रीमा को बहुत सारे आशीर्वाद दे डाले।
रीमा के मन पर छाए काले बादल अब पूरी तरह छंट चुके थे। पति-पत्नी में छोटी- मोटी नोक- झोंक तो हो ही जाती है।शायद उसने ही कुछ दिल पर ले लिया।उसका दुख कुछ क्या था,ना जाने कितने बड़े-बड़े दुख इस दुनिया में हैं।वह अपनी इन्हीं सोचों में डूबी हुई थी कि तभी नन्हीं-नन्हीं बूदों ने उसके चेहरे को भिगा दिया।उसने देखा की हल्की-हल्की वर्षा ने हवा को भी अपने संग ले लिया है।जिससे किसी मधुर से संगीत की धुन निकल रही थी।मंद-मंद हवा ने उसको खूशबु से भर दिया है उसने गर्दन उठाकर देखा लाल सुर्ख गुलाब जो आज ही खिला था। उसकी तरफ देखकर मंद-मंद मुस्करा रहा था।उसने आगे बढ़के उसको हौले से छुआ और रसोईघर की तरफ बढ़ गई।रीमा को एक कड़क चाय की इच्छा बहुत जोरों से हो रही थी।
डॉ भावना कुँअर
साहित्यकार
सिडनी,आस्ट्रेलिया