डॉ विनीता कुमारी की कविताएं
1.भारत की नारी
कवि नहीं, कवयित्री नहीं,
भारत की नारी मैं
हृदय की बात सुनाती हूं।
वैदिक जीवन – दर्शन का,
भारत के वीर शहीदों का,
वतन के राष्ट्रगीतों का,
मैं वंदनगान करती हूं।
भारत की नारी मैं,
हृदय की बात सुनाती हूं।
गोरे घर छोड़ गए,
लोगों को तोड़ गए,
उनकी नीति तोड़ो तुम,
यही मैं बात बताती हूं,
भारत की नारी मैं,
हृदय की बात सुनाती हूं।
न जीवन -मूल्य भूलो,
न किसी के अस्मत से खेलो,
भारत की सभ्यता की मैं,
तुझे फिर याद दिलाती हूं।
भारत की नारी मैं,
हृदय की बात सुनाती हूं।
देश की लोक – सेवा में,
किसी वामा की रक्षा में,
यदि मरना पड़े तो,
मैं मरूंगी ,सरेआम कहती हूं।
भारत की नारी मैं,
हृदय की बात सुनाती हूं।
2.बात ईश्वर से होती है।
बात ईश्वर से होती है।
सब कहते हैं ईश्वर बहुत दूर है।
पर मैं कहती हूं वो सबसे पास है।
बात होती है रोज उससे
वो सबसे खास है।
वो सब सुनता है, गिला-शिकवा,
दुःख-दर्द,बनता है सबका हमदर्द।
कभी चूं नहीं करता,
कभी चिल्लाता भी नहीं।
वो मां है, वो पिता है,
वो भाई है,वो सखा है।
जिस रूप में चाहो उसे
हर रूप में वो बसा है।
इसलिए जब घोर पीड़ा होती है,
हम उसे बुलाते हैं।
अपने तन-मन की
सारी व्यथा सुनाते हैं।
वो आता है अमूर्त रूप में,
दे जाता है सुकून व्यथा लेकर।
शमन हो जाता है तापों का,
उसका चिर आशीष लेकर।
बड़े धैर्य से सुनता है सबकुछ
उतावला नहीं होता मानव की तरह,
पूरा करता है सभी अरमानों को
अपनी जरूरतों की तरह।
लोग भले ही उस शक्ति का
एहसास न करें,
पर कोई तो असीम शक्ति है
सारी शक्तियों से परे।
पर मुझे अटूट विश्वास है,
मेरे लिए वो सबसे खास है।
जब तक मेरा अस्तित्व है,
तब तक वो भी साथ-साथ है।
डॉ विनीता कुमारी
पटना, भारत