अयोध्या केस

अयोध्या केस

(1528 विवादित ढांचा के निर्माण से लेकर 2024 भव्य राम मंदिर तक…)

अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं। 22 जनवरी को भव्य राम मंदिर में रामलला को विराजमान कराया जाएगा। इस कार्यक्रम के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देश के कई दिग्गज नेता, अभिनेता, कलाकार व उद्योगपतियों को शामिल होने के लिए न्योता भेजा गया है।

त्रेतायुगीन वैभव के अनुरूप रामनगरी में होने वाले इस कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया जा रहा है।

आज हम आपको बताएंगे अयोध्या केस में कब-कब और क्या-क्या हुआ, कहां से शुरू हुई इस इसकी कहानी…

वर्ष 1528- राम मंदिर गिराकर विवादित ढांचा (बाबरी मस्जिद) का निर्माण हुआ। इसे मुगल शासक बाबर ने बनवाया था, इस वजह से इसे बाबरी मस्जिद कहा जाने लगा।

वर्ष 1853- पहली बार अयोध्या में विवादित स्थल के पास सांप्रदायिक दंगा हुआ। वर्ष 1859- विवादित स्थल पर अंग्रेजों ने बाड़ लगा दी थी। साथ ही परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों और बाहरी हिस्से में हिन्दुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दी।

वर्ष 1949- विवादित स्थल पर भगवान राम की मूर्तियां मिलीं। कहा गया कि कुछ हिन्दुओं ने ये मूर्तियां वहां रखीं थीं। विवाद बढ़ने पर हिंदू व मुस्लिम पक्ष अदालत पहुंच गए।सरकार ने इस जगह को विवादित घोषित कर ताला लगा दिया।

वर्ष 1986- फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट ने हिन्दुओं के अनुरोध पर प्रार्थना करने के लिए विवादित स्थल का दरवाजा खोलने का आदेश दिया। मुसलमान विरोध में उतरे और बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति बनाई।

वर्ष 1989- विहिप ने विवादित स्थल के पास राम मंदिर की नींव रख, मंदिर निर्माण के लिए अभियान तेज किया।

वर्ष 1990- विहिप कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे को नुकसान पहुंचाया था। इसके बाद तत्कालीन पीएम चंद्रशेखर ने बातचीत से विवाद सुलझाने का प्रयास किया, लेकिन विफल रहे।

06 दिसंबर 1992- हजारों की भीड़ ने अयोध्या में विवादित ढांचा गिरा दिया। इसके बाद देश भर में हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क गए। इन दंगों में दो हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे।

जनवरी 2002- प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विवाद सुलझाने के लिए अयोध्या समिति बनाई। वरिष्ठ अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को वार्ता के लिए नियुक्त किया गया।

फरवरी 2002- भाजपा ने यूपी चुनाव के लिए घोषणा पत्र से राम मंदिर निर्माण का मुद्दा हटा दिया। हालांकि, विहिप ने 15 मार्च से राम मंदिर बनाने की घोषणा कर दी। इसके बाद हजारों हिंदू अयोध्या में एकत्र हो गए।

13 मार्च 2002- सुप्रीम कोर्ट ने विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का दिया आदेश। साथ ही स्पष्ट किया कि किसी को विवादित भूमि पर शिलापूजन की अनुमति नहीं होगी।

22 जून 2002- विहिप ने विवादित भूमि पर मंदिर निर्माण की मांग उठाई।

जनवरी 2003- रेडियो तरंगों के जरिए विवादित स्थल के नीचे किसी प्राचीन इमारत के अवशेष का पता लगाने का प्रयास किया गया, लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकला।

मार्च 2003- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस मांग को ठुकराया, जिसमें विवादित स्थल पर पूजापाठ करने की अनुमति मांगी गई थी।

अप्रैल 2003- हाईकोर्ट के आदेश पर पुरातत्‍व सर्वेक्षण विभाग ने विवादित स्थल की जांच के लिए खुदाई शुरू की। पुरातत्‍व सर्वेक्षण विभाग ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि विवादित स्थल की खुदाई में मंदिर से मिलते-जुलते कई अवशेष मिले हैं। इस रिपोर्ट ने हिंदू पक्ष के दावे पर मुहर लगा दी थी।

मई 2003- सीबीआई ने 1992 में विवादित ढांचा विध्वंस मामले में लालकृष्ण आडवाणी सहित आठ लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया।

जून 2003- कांची पीठ शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती ने मामले को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की पहली की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।

अगस्त 2003- विहिप ने अनुरोध किया कि राम मंदिर निर्माण के लिए सरकार विशेष विधेयक लाए। इस मांग को तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने ठुकरा दिया था।

अप्रैल 2004- भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अयोध्या के विवादित स्थल पर बने अस्थाई राममंदिर में पूजा की। साथ ही बयान दिया कि भव्य राम मंदिर का निर्माण जरूर होगा।

जुलाई 2005- पांच आतंकियों ने विवादित परिसर पर जानलेवा हमला किया। इसमें पांच आतंकी समेत छह लोगों की मौत हुई।

04 अगस्त 2005- फैजाबाद की जिला अदालत ने विवादित परिसर के पास हुए हमले में चार लोगों को न्यायिक हिरासत में जेल भेजा।

20 अप्रैल 2006- यूपीए सरकार ने लिब्राहन आयोग को लिखित बयान दिया कि विवादित ढांचे को गिराना सुनियोजित साजिश थी।भाजपा, आरएसएस, बजरंग दल और शिवसेना ने मिलकर इस साजिश को अंजाम दिया।

जुलाई 2006- यूपी सरकार ने विवादित स्थल पर बने अस्थाई राम मंदिर की सुरक्षा पुख्ता करने के लिए बुलेटप्रूफ शीशे का घेरा लगाने का प्रस्ताव तैयार किया। मुस्लिम पक्ष ने अदालत द्वारा दिए गए स्टे की अवहेलना का हवाला देकर विरोध किया।

30 जून 2009- अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस मामले में जांंच के लिए बनाए गए लिब्रहान आयोग ने 17 साल बाद अपनी जांच रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी थी।

07 जुलाई 2009- तत्कालीन यूपी सरकार ने हाईकोर्ट में हलफनामा दायर कर बताया कि अयोध्या विवाद से जुड़ीं 23 महत्वपूर्ण फाइलें सचिवालय से गायब कर दी गईं हैं।

24 नवंबर 2009- संसद के दोनों सदनों में लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट पेश की गई। इसमें नरसिंह राव को क्लीन चिट दे दी गई। 20 मई 2010- विवादित ढांचा विध्वंस मामले में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी समेत अन्य नेताओं पर आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए दायर पुनरीक्षण याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दी।

26 जुलाई 2010- अयोध्या विवाद पर हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी हुई।

08 सितंबर 2010- हाईकोर्ट ने मामले में फैसला सुनाने के लिए 24 सितंबर की तारीख तय की।

24 सितंबर 2010- हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में तीन जजों की बेंच ने फैसला सुनाते हुए विवादित स्थल का एक तिहाई हिस्सा मुसलमानों को मस्जिद बनाने के लिए दिया और हिन्दुओं को विवादित स्थल का शेष हिस्सा समेत मंदिर बनाने के लिए बाकी जमीन देने का फैसला सुनाया। फैसले से असंतुष्ट होकर दोनों पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

09 मई 2011- सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा विवादित स्थल को तीन हिस्सों में बांटने के फैसले पर रोक लगा दी। साथ ही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई।

27 जनवरी 2018- तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। साथ ही पीठ ने इस केस को पांच जजों की पीठ के पास नए सिरे से सुनवाई करने के लिए भेजने से इनकार कर दिया था।

29 अक्टूबर 2018- सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा था इस मामले की सुनवाई के लिए जनवरी के प्रथम सप्ताह में उचित पीठ का गठन होगा, जो इसकी सुनवाई का कार्यक्रम तय करेगा।

जनवरी 2019- अयोध्या केस की सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की संवैधानिक पीठ गठित हुई। पीठ में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस बोबडे और जस्टिस एनवी रमन्ना को शामिल किया गया।

10 जनवरी 2019- मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन द्वारा सवाल उठाए जाने पर जस्टिस यूयू ललित ने खुद को इस केस की सुनवाई से अलग किया। राजीव धवन ने सवाल उठाया था कि 1994 में इसी केस में जस्टिस यूयू ललित ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की कोर्ट में पैरवी की थी।

27 जनवरी 2019- न्यायमूर्ति बोबडे के अवकाश पर होने की वजह से 29 जनवरी 2019 की प्रस्तावित सुनवाई टली। सुप्रीम कोर्ट ने 26 फरवरी 2019 की नई तिथि निर्धारित की।

26 फरवरी 2019- सुप्रीम कोर्ट ने मामले में मध्यस्थता के जरिए विवाद सुलझाने की सलाह दी। कोर्ट ने कहा था कि अगर इसकी एक फीसद भी गुंजाइश है तो मध्यस्थता होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट अपनी निगरानी में मध्यस्थता के जरिए विवाद का निपटारा कराने को तैयार हुआ।

06 मार्च 2019- सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद पर मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता को तैयार हुआ, लेकिन हिंदू महासभा और रामलला पक्ष ने ये कहकर असहमति जताई कि जनता मध्यस्थता के फैसलों को नहीं मानेगी। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के मामले पर फैसला सुरक्षित रखा।

08 मार्च 2019- सुप्रीम कोर्ट ने श्री श्री रविशंकर, श्रीराम पंचू और जस्टिस एफएम खलीफुल्ला को अयोध्या केस में मध्यस्थता करने की मंजूरी प्रदान की।

02 अगस्त 2019- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता के जरिए अयोध्या केस नहीं सुलझाया जा सकता। साथ ही कोर्ट ने छह अगस्त से केस में प्रतिदिन सुनवाई की तिथि तय की।

06 अगस्त 2019- अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिदिन सुनवाई शुरू की।

15 अक्टूबर 2019- सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या केस की सुनवाई 16 अक्टूबर 2019 तक पूरी करने की समय सीमा निर्धारित की।

9 नवंबर 2019: सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए राम जन्मभूमि की 2.77 एकड़ जमीन हिंदू पक्ष को देने का फैसला सुनाया, साथ ही इसका मालिकाना हक केंद्र सरकार के पास रहेगा। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया की मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ जमीन किसी अन्य स्थान पर दिया जाए।

5 अगस्त 2020: यह वह तारीख है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन में हिस्सा लिया।

22 जनवरी 2024: अयोध्या में तैयार हुआ भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की गई।

 

डॉ0 मुकेश कुमार मालवीय
प्रोफेसर
विधि संकाय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय
वाराणसी, भारत

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Price Goldner
10 months ago

Your insights on this topic are spot on. Couldn’t agree more.