डॉ जया आनंद की कविताएं 

डॉ जया आनंद की कविताएं 

1.धरती

धरती नेह से

लरजती है संवरती है

उपजाती है सरस जीवन ,

सहन करती है बोझ

उपेक्षा का,

घृणा का

और अति होने पर

कम्पित हो

जता देती है अपना आक्रोश

नहीं ..अब और नहीं

2.लड़कियां

लड़कियां

सहेज लेती हैं

घर परिवार

रिश्ते-नाते ,मित्र

और अपना अस्तित्व

लड़कियां

द्वार पर चौक पूरते हुए

कीबोर्ड पर उँगलियाँ चलाते हुए

कार का स्टेयरिंग घुमाते हुए

मन के धागों को सुलझा लेती हैं

और मुस्कुराती हुई करती हैं

घर में प्रवेश

कि घर की दरो- दीवार मुस्कुराए

लड़कियां

जानती हैं सम्हालना

मन के आवेगों को

समेट लेना बिखरे हुए पलों को

संतुलन देना समाज को

लड़कियां

होती नहीं हैं कमज़ोर

रखती हैं तीव्र दृष्टि

परख लेती हैं हर उस तरंग को

जो बाधा बन उसके सामने होती है खड़ी

लड़कियां

करती है प्रतिकार अन्याय का

लड़ती हैं न्याय के लिए

पर प्रतिरोध से अधिक

मुखर होता है स्वर

सामंजस्य का

ये लड़कियां

गर तुम्हारी

परिभाषा में अच्छी हैं

तो तुम भी इन्हें सहेज लो

साझा कर लो इनकी भी जिम्मेदारियां!

लड़कियां

बढ़ती हैं आगे

सबकुछ सहेजते हुए

समेटते हुए

रखती हैं अपने विचार

रचती हैं सुन्दर संसार कि

उन पर है बहुत बड़ी जिम्मेदारी

…..उन्हें दुर्बल मत समझना

डॉ जया आनंद 

मुंबई, भारत

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

1