साक्ष्य में राम
राम तुम्हारा चरित ही स्वयं काव्य है
कोई कवि बन जाए सहज सम्भाव्य है
राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त की ये पंक्तियाँ राम के चरित्र का अन्यतम रूप प्रदर्शित करती हैं।
राम का चरित्र एक आदर्श पुंज है और उस चरित्र को जिसने भी गुना है वह यश के चरम पर पहुँचा है चाहे वह ‘रामायण ‘ के रचयिता वाल्मीकि हों या ‘रामचरितमानस‘ को रचने वाले तुलसीदास या आधुनिक जगत में दूरदर्शन धारावाहिक ‘रामायण ‘बनाने वाले रामानंद सागर। जिसने भी हृदय से राम का स्मरण किया उसका प्रतिफल उसे मिला ही है। राम जहाँ ईश्वरीय रूप में कृपा बरसाते लक्षित होते हैं वहीं मनुज अवतार में जीवन का ऐसा आदर्श प्रस्तुत करते हैं जो न केवल भारत के लिए वरन् सम्पूर्ण सृष्टि के लिए प्रेरणा का स्तंभ बन जाता है।
राम एक पुत्र के रूप में, एक पति के रूप में, एक प्रजा पालक के रूप में, एक भाई के रूप, एक भक्त वत्सल के रूप में ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करते हैं जिसका अनुसरण करने के लिए यह जगत नित उनका गुणगान करता है ।
राम वह शक्ति पुंज हैं जो अन्याय के विरुद्ध प्रखर बोध के साथ खड़े होते हैं ,बाल्यावस्था मे राक्षसी ताड़का का वध हो और फिर किशोरावस्था में मारीच हो या फिर रावण।
राम भारत के आदर्श नायक हैं चाहे उन्हें ईश्वर माने या नर रूप किन्तु उनका आदर्श चरित्र इस देश की पहचान है और यहाँ की मिट्टी में रचा-बसा है।
वस्तुतः भारत भूमि का कण-कण राममय है लेकिन विडम्बना यह है कि उस राम को अपनी ही भूमि में साक्ष्य देना पड़ता है।तथाकथित बौद्धिक जन राम को धार्मिकता के चोले में बाँधकर इस पर अपने विचार प्रकट करने से कतराते प्रतीत होते हैं और राम के विराट स्वरुप,उनके आध्यात्मिक पक्ष पर ,उनके अस्तित्व पर प्रश्न करते हुए तनिक भी नहीं विचलित नहीं होते।
राम में रमने के लिए श्रद्धा पक्ष अधिक प्रबल हो जाता है और वहाँ बौद्धिकता परास्त होती प्रतीत होती है लेकिन तथाकथित बुद्धिजीवियों की बुद्धि जब राम के चरित्र पर प्रश्न चिन्ह उठाने लगती है तो राम ही उस श्रद्धा में निमग्न जनों को यह शक्ति देते हैं कि वे उन्हें राम के साक्ष्य से परिचित करा सके।
सर्वप्रथम राम को मिथ मानना कि राम मात्र एक कोरा कहानी का पात्र भर है उनका कोई अस्तित्व ही नहीं यह सबसे बड़ा बौद्धिक जगत का आक्षेप उभरता है जबकि राम सनातन हिन्दू धर्म में ईश्वर का मनुज अवतार हैं। जब वे सब राम के अस्तित्व को ही नकारने लगते हैं तो फिर राम की जन्मभूमि की बात तो उन्हें कोरी कल्पना के अतिरिक्त और कुछ नहीं ही प्रतीत होती होगी पर भक्ति कहती है,राममय भारतवासी मानता है और साक्ष्य कहते हैं कि राम अयोध्या में जन्मे, अयोध्या में ही राम जन्मभूमि है जिसे आक्रान्ता बाबर ने तोड़कर मस्जिद बनाई। यह कितने दुःख का विषय है कि जिस देश के आदर्श राम हैं उस देश में उनकी ही जन्मभूमि के लिए लगभग पाँच सौ साल संघर्ष करना पड़ा।
सन् 1528 मुगल बादशाह बाबर के सिपहसलार मीर बाकी ने राम जन्मभूमि मंदिर तोड़कर मस्जिद का निर्माण करवाया उस समय से हिन्दू समुदाय ने दावा किया कि मस्जिद के गुम्बद के नीचे मंदिर है और तब से लेकर 2019 तक य़ह संघर्ष अनवरत जारी रहा।
श्री रामजन्मभूमि की खुदाई में अनेक ऐसे प्राचीन अवशेष मिले जो राम मन्दिर का संकेत देते हैं जैसे प्राचीन मठ, अमलक, शंख, खंडित मूर्तियाँ आदि जो कि पुरातत्व विभाग के अनुसार लगभग 2000 वर्ष पूर्व के हैं ।
बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था। बाबरी के 12 स्तंभ हिंदू मंदिर के अवशेषों से बनाए गए थे, देवताओं, देवी और मानव आकृतियों की टेराकोटा मूर्तियों के 263 टुकड़े पाए गए थे जो इस्लाम में सख्त गैर-मूर्तिपूजा कानूनों के कारण मस्जिद के नहीं हो सकते थे । अन्य खोजों में मंदिर प्रणाली, मंदिर शिखर, विष्णु हरि शिला फलक सहित कई अन्य शामिल हैं।
मैं स्वयं अयोध्या कई बार गई हूँ, वहां घर-घर राम मय अनुभूत होता है । अयोध्या की किसी भी गली से यदि हम गुज़रे तो रामधुन ,राम भजन-कीर्तन गुंजित होता रहता है। कनक भवन, हनुमान गढ़ी, अनेक आश्रम राम की आराधना पूजा से पूरी अयोध्या का वातावरण दिव्य मालूम पड़ता है ऐसा प्रतीत होता है मानो राम कभी इस गली से प्रकट होंगे या कभी उस गली से, कभी सीता रसोई में माता सीता भोजन बनाती हुई प्रतीत होती हैं। गली-गली में बिकती हुई तुलसी मालाएं, शंख, घन्टा, घड़ियाल, रुद्राक्ष, आरती, मंजीरा स्वतः ही राम की नगरी के साक्ष्य बन जन -मानस के हृदय में राम की छवि सहज ही स्थापित कर देते हैं।
बचपन में मैंने स्वयं अपनी आँखों से रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद के उन स्तंभों को देखा था जो कि मन्दिर के होने का प्रमाण प्रस्तुत कर रहे थे और उसके ऊपरी भाग पर बाबरी मस्जिद का गुम्बद बना हुआ था। राम लला की मूर्ति वहाँ विराजमान थी । मन निरन्तर यही प्रार्थना कर रहा था कि कब राम जन्मभूमि का मन्दिर बनेगा और हम उसके दर्शन के लिए जाएंगे …। राम लला को देख आँखों से अविरल आँसू की धारा बह चली थी। भक्ति में वह शक्ति होतो है जो ईश्वर से साक्षात्कार करा देती है, बुद्धि इसे संयोग मानकर आत्ममुग्ध होती दिखती है। पर कवि कहते हैं न “ जिनके हृदय श्री राम बसे तिन और का नाम लियो न लियो “
हृदय और बुद्धि के इस द्वंद्व में बुद्धि का पलड़ा भारी हो जाता है क्योंकि हृदय तो विनम्रता का परिचायक है और उसका भारहीन होना स्वाभाविक है। उस बुद्धि के दंभ से परिपूर्ण लोगों की तुष्टि के लिए राम के होने के साक्ष्य उन्हें निरुत्तर करते रहते हैं।
चित्रकूट जहाँ राम जी ने चौदह वर्ष वनवास का अधिकतम समय व्यतीत किया था, वहाँ के वन-प्रांतर का भ्रमण करते हुए राम की अनुभूति स्वतः ही होने लगती है। वहां राम, सीता, लक्ष्मण के चरण चिन्ह अंकित हैं, वह स्फटिक शिला जिस पर बैठकर माता सीता प्राकृतिक सौंदर्य व मन्दाकिनी के जल को निहारती थीं ।राम दरबार, जानकी कुंड, गुप्त गोदावरी, कामदगीरी पर्वत इन सब स्थलों पर राम, सीता, लक्ष्मण, भरत के चिन्ह विद्यमान हैं।
वनवास जाते हुए राम-सीता,लक्ष्मण श्रृंगवेरपुर रुके थे जहाँ महर्षि श्रृंगी और राम जी की बुआ शांता का निवास था, वह स्थल आज भी विद्यमान है और इस स्थल का जिक्र अयोध्या कांड में मिलता है। राम के चरण धोने वाले केवट निषाद राज गुह्य का यहां शासन था। आज भी निषाद एवं अन्य जनजातियां जो यहां निवास कर रही हैं उनकी डीएनए मैपिंग से भी यह प्रमाणित हुआ है कि उनके पूर्वज रामायण काल के हैं।
वनवास के दौरान राम सीता लक्ष्मण सहित प्रयाग में एक अक्षय वट-वृक्ष के नीचे रुके थे। यमुना नदी के तट पर अकबर किले में वह अक्षय वट-वृक्ष जिसकी जड़े कई किलोमीटर तक फैली हैं ,आज भी राम की महिमा में हरा – भरा झूमता दृष्टिगत होता है। इस अक्षय वट का वर्णन वाल्मीकि रामायण में मिलता है।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम सीता माँ और लक्ष्मण के साथ आगे बढ़ते हुए एक सुन्दर स्थाल पहुँचे और वही वनवास का शेष समय बिताने का निश्चय किया, वह स्थान था पंचवटी। पंचवटी आज भी नासिक के पास स्थित है और वाल्मीकि रामायण में इसके विषय में लिखा गया है।
न जाने कितने ही साक्ष्य यत्र- तत्र बिखरे पड़े हैं। रामेश्वरम तमिलनाडु में स्थित इसी स्थान पर राम ने सीता की वापसी के लिए शिव की अराधना की थी। यही से लंका तक पहुँचने के लिए राम सेतु का निर्माण हुआ था, वह आज भी विद्यमान है ।यह ढांचा मन्नार की खाड़ी और पाक स्ट्रेट को एक-दूसरे से अलग करता है। इसकी लंबाई लगभग 48 किमी है।
नल और नील के निर्देशन में वानर सेना ने 5 दिन में 30 किलोमीटर लंबा और 3 किलोमीटर चौड़ा पूल तैयार किया था। शोधकर्ताओं के अनुसार इसके लिए एक विशेष प्रकार के पत्थर का इस्तेमाल किया गया था जिसे विज्ञान की भाषा में ‘प्यूमाइस स्टोन’ कहते हैं। यह पत्थर पानी में नहीं डूबता है। रामेश्वरम में आई सुनामी के दौरान समुद्र किनारे इस पत्थर को देखा गया था।
रामेश्वरम दर्शन के लिए जब मैं सपरिवार गई तो प्रतीत हुआ जैसे राम आर्द्र और विह्वल हो कर माँ सीता के लिए शिव से प्रार्थना कर रहें हैं तो वहीं समुद्र तट पर वानर सेना, छोटी सी गिलहरी सेतु निर्माण के कार्य में प्राण पण से संलग्न प्रतीत हुए, यह भाव तो भक्ति के चमत्कार से उत्पन्न हो रहा था किंतु जो स्पष्ट गोचर था उसे बुद्धि भी नकार नहीं सकती कि राम यहाँ प्राण वायु के सदृश हैं।
दक्षिण में किशकिन्धा पर्वत है जहाँ राम जी ने बाली का वध किया था और सुग्रीव को राजा बनाया था, उसी के पास एक तालाब है जहाँ राम-लक्ष्मण ने कुछ समय विश्राम किया था,यह स्थल कर्नाटक के हम्पी शहर के आसपास है। प्राकृतिक सुषमा से व्याप्त यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहरों में शामिल है।
दंडकारण्य वह स्थल है जहाँ राम ने रावण की बहन शूर्पणखा के प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए सीता के प्रति एक निष्ठ प्रेम का उदाहरण प्रस्तुत किया था।
लोगों की आँखों पर जब भ्रम का पर्दा पड़ा हो फिर उसे हटाना बड़ा ही दुष्कर कार्य होता है लेकिन विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय से वह भ्रम भी समाप्त होता दीखता है ।
अंतरिक्ष एजेंसी नासा का प्लेनेटेरियम सॉफ्टवेयर रामायणकालीन हर घटना की गणना कर सकता है। इसमें राम को वनवास हो, राम-रावण युद्ध हो या फिर अन्य कोई घटनाक्रम। इस सॉफ्टवेयर की गणना बताती है कि ईसा पूर्व 5076 साल पहले राम ने रावण का संहार किया था( सन्दर्भ-वेब दुनिया )
श्रीलंका में उस स्थान का भी पता चल चुका है, जहां रावण की सोने की लंका थी। ऐसा माना जाता है कि जंगलों के बीच रानागिल की विशालकाय पहाड़ी पर रावण की गुफा है, जहां उसने तपस्या की थी। रावण के पुष्पक विमान के उतरने के स्थान को भी ढूंढ लिया गया है।
श्रीलंका का इंटरनेशनल रामायण रिसर्च सेंटर और वहां के पर्यटन मंत्रालय ने मिलकर रामायण से जुड़े ऐसे 50 स्थल ढूंढ लिए हैं जिनका पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व है और जिनका रामायण में भी उल्लेख मिलता है। श्रीलंका में वह स्थान ढूंढ लिया गया है, जहां रावण की सोने की लंका थी। अशोक वाटिका, राम-रावण युद्ध भूमि, रावण की गुफा, रावण के हवाई अड्डे, रावण का शव, रावण का महल और ऐसे 50 रामायणकालीन स्थलों की खोज करने का दावा किया गया है। बाकायदा इसके प्रमाण भी प्रस्तुत किए गए हैं।
वर्ष 2004 में पंजाब के बांगा इलाके के रहने वाले अशोक कैंथ श्रीलंका में अशोक वाटिका की खोज की थी। श्रीलंका सरकार ने 2007 में रामायण रिसर्च कमेटी का गठन किया।
कमेटी में श्रीलंका के पर्यटन मंत्रालय के डायरेक्टर जनरल क्लाइव सिलवम, ऑस्ट्रेलिया के डेरिक बाक्सी, श्रीलंका के पीवाई सुंदरेशम, जर्मनी की उर्सला मुलर, इंग्लैंड की हिमी जायज शामिल हैं। अब तक कमेटी ने श्रीलंका में रावण के महल, विभीषण महल, श्रीगुरु नानक के लंका प्रवास पर रिसर्च की है।
सीता एलिया श्री लंका में स्थित वह स्थान है जहां रावण ने माता सीता को बंदी बना कर रखा था। माता सीता को सीता एलिया में एक वाटिका में रखा गया था जिसे अशोक वाटिका कहते हैं। वेरांगटोक से सीता माता को जहां ले जाया गया था उस स्थान का नाम गुरुलपोटा है जिसे अब ‘सीतोकोटुवा’ नाम से जाना जाता है। यह स्थान भी महियांगना के पास है। एलिया पर्वतीय क्षेत्र की एक गुफा में सीता माता को रखा गया था जिसे ‘सीता एलिया’ नाम से जाना जाता है। यहां सीता माता के नाम पर एक मंदिर भी है। यह मंदिर सीता अम्मन कोविले नाम से प्रसिद्ध है।
इस क्षेत्र में लाखों की संख्या में आज भी अशोक के लंबे-लंबे वृक्ष विद्यमान हैं। अशोक वृक्षों की अधिकता होने के कारण ही इसे अशोक वाटिका कहा जाता है। मंदिर के पास ही से ‘सीता’ नाम से एक नदी बहती है। नदी के इस पार मिट्टी का रंग पीला है तो उस पार काला। मान्यता अनुसार उस पार के क्षेत्र को हनुमानजी ने अपनी पूंछ से आग लगा दिया था।
इस स्थान की शिलाओं पर आज भी हनुमानजी के पैरों के निशान देखे जा सकते हैं। कार्बन डेटिंग से इसकी उम्र लगभग 7 हजार वर्ष पूर्व की आंकी गई है। यहां सीता माता के मंदिर में राम, लक्ष्मण, हनुमान और सीताजी की जो मूर्तियां रखी हैं उनकी कार्बन डेटिंग से पता चला कि वह भी 5,000 वर्ष पुरानी है। आज जिस स्थान पर मंदिर है वहां कभी विशालकाय वृक्ष हुआ करता था जिसके नीचे माता सीता बैठी रहती थीं।
श्रीलंका में नुआरा एलिया पहाड़ियों के आसपास स्थित रावण फॉल, रावण गुफाएं, अशोक वाटिका, खंडहर हो चुके विभीषण के महल आदि की पुरातात्विक जांच से इनके रामायण काल के होने की पुष्टि होती है।
इसके अतिरिक्त,नेपाल, कम्बोडिया, ईरान, इजरायल, इंडोनेशिया आदि देशों में भी राम की गाथाएं, उनके भित्ति चित्र विद्यमान हैं।
पद्म विभूषण जगद्गुरु रामभद्राचार्य से जब न्यायाधीश ने उनसे राम जन्मभूमि के विषय में वेदों से प्रमाण देने की बात कही तो राम भद्राचार्य जी जो आँखों से अंधे हैं किन्तु प्रज्ञा चक्षु से समृद्ध हैं, उन्होंने ऋग्वेद की जैमिनी संहिता से उद्धरण देना शुरू किया। न्यायाधीश ने जैमिनीय संहिता मँगवाई तो उसमें सारी बातें सही पाई गई। न्यायाधीश प्रज्ञा चक्षु रामभद्राचार्य की स्मृति से उनके साक्ष्य की स्पष्टता पर सर झुका दिया।
बेल्जियम के प्रख्यात इतिहासकार कोनराॅड एल्सट ने राम के साक्ष्य विषय में कहते हैं कि राम के साक्ष्य के आज भी मौजूद हैं उस पर किसी को संदेह नहीं करना चाहिए (संदर्भ- दैनिक भास्कर)।
अनेक शोधकर्ता, पुरातत्वविद, इतिहासवेत्ता एवं विद्वतजनों ने राम के साक्ष्य पर गंभीर अध्ययन के साथ अपने विचार प्रस्तुत किये हैं और साक्ष्य पर मुहर लगाई है…और भक्त हृदय तो हृदय स्थल पर राम की छवि धारण किए हुए है।
राम तो इस मिट्टी में रमे हुए हैं उन्हें वस्तुतः किसी साक्ष्य की आवश्कता नहीं। भारत के नायक, इस देश के आदर्श श्री राम की जन्मभूमि पर जब मन्दिर निर्माण हो गया है, यह अनुभूति ही रोमांचित करती है और जब मुझे दर्शन होगा तो सम्भवतः वह आनंद अवर्णनीय होगा, शब्दातीत आनंद होगा।
भक्त कवि तुलसी दास जब कहते हैं
“ सिया राममय सब जग जानी
करुं प्रणाम जोरी जुग पानी “
यानी सीता राम इस सृष्टि के कण-कण में समाए हुए हैं उन्हें हाथ जोड़ कर मेरा प्रणाम।
तुलसी दास की यह चौपाई उन सभी तथाकथित बुद्धिजीवियों के सवालों का उत्तर है जो राम के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह उठाते हैं
अस्तु राम पर भरोसा कीजिए और इस जीवन को कृतार्थ कीजिए क्योंकि तुलसीदास कहते हैं
“ जा पर कृपा राम की होई
ता पर कृपा करे सब कोई ‘
आधुनिक जगत के समकालीन कवि श्री रमेश गौतम की कविता राम को हृदयंगम करने की प्रेरणा देती है। वे कहते हैं-
राम हो मन
तन अयोध्या स्वयं हो जाएगा
…देह से पहले निकालो तिमिर घन
वध करो दश- शीश का तुम
एक मर्यादा पुरुष बन
फिर विजय का मर्म मन तक
ठीक से आ पायेगा ….
निश्चय ही राम में मन रम गया फिर किसी साक्ष्य की आवश्यकता नहीं होगी।
सन्दर्भ- (रामचरित मानस,पांचजन्य पत्रिका ,दैनिक जागरण,आजतक,हिन्दुस्तान, वेब दुनियां, सोशल मीडिया)
डॉ जया आनंद
मुंबई, भारत
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