दिव्या माथुर की कविताओं में मानवीय चेतना के संघर्षों की आँच
कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में एक स्थापित हस्ताक्षर दिव्या माथुर समकाल की चर्चित कवयित्री भी हैं। नई कविता की टकराहटें हों या छंदबद्ध गीतों की मधुर तानाकशी, छोटी बड़ी बहर की ग़ज़लें या नज़्में, उनके अपने मौलिक व भावनात्मक बिम्ब-प्रतीक पाठक-मन को सहजता से आंदोलित करने में सक्षम हैं। उनके सात कविता संग्रह: ‘अंतःसलिला’,’रेत का लिखा’, ’ख़याल तेरा’, ‘11 सितम्बर: ‘सपनों की राख तले’, ’चंदन पानी’, ‘झूठ, झूठ और झूठ’, ‘हा जीवन हा मृत्यु’ (ई-संग्रह) और ‘सिया-सिया’ (बाल-कवितायें) जैसी कृतियों में संग्रहित कविताओं को पढ़कर खुरदुरे यथार्थ के सत्य को आच्छादित होते हुए देखा और महसूस किया जा सकता है।
दिव्या जी की कविताओं को पढ़ते हुए उनकी सहजता स्वत: पाठक के मन को छूती है। उनकी गद्य व पद्य लेखन में भारत कहीं व्यंजनात्मक ढंग से मुखरित हुआ है, कहीं अभिधा और कहीं लाक्षणिक रूप से परिलक्षित दिखता है।
‘चन्दन पानी’ संग्रह के प्राक्कथन में मशहूर लेखक और राजनयिक डॉ पवन वर्मा लिखते हैं: रिश्तों पर आधारित रचनाओं के इस संग्रह में कोई ऐसा रंग नहीं है जिसे दिव्या पकड़ने में सफल न रही हो।
दरअसल दिव्या माथुर की रचनाओं में जो जीवन है वह भारतीय मूलक है। भारत की जीवन विधि और परंपराएं परदेश जाकर भले विच्छिन्न हो गयी हों लेकिन धर्म, दर्शन, अध्यात्म, नैतिकता, इतिहास, पुराण, सामाजिक उत्सव, पर्व-त्योहार, मनोरंजन और ज्ञान-विज्ञान सब की अभिव्यक्ति उनकी कविताओं में भारतीय रूप से सहज व्याप्त है। दिव्या जी सात सागरों के पार रहते हुए भी अपनी आवश्यकतानुसार उसी प्रकार उक्त तत्वों के साथ अपनी जीवन कविता में प्रस्तुत हुईं दिखती हैं जिस प्रकार एक सुचारु रूप से भारत में रहने वाला कवि दिखा सकता है।
अंत में, एक महत्वपूर्ण बात अवश्य जोड़ना चाहूंगी और वो है दिव्या जी की रचनाओं में लोकप्रिय मुहावरों का बाहुल्य, विशेषतः ‘ख़याल तेरा’ संग्रह में तो उन्होंने अद्भुत प्रयोग किये हैं, उदाहरणतः ‘‘है वहम मुझे आया भी था / ऊँठ के मुंह में ज़ीरे सा / आज मुझे बहला न सका / क्यूं पूरी तरह ख़याल तेरा।‘धत से भाग लिया,’रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में: ”कविता ही हृदय को प्रकृत दशा में लाती है और जगत के बीच क्रमशः उसका / अधिकाधिक प्रसार करती हुई / उसे मनुष्यत्व की उच्च भूमि पर ले जाती है।” इस अभेदी कठिन वक्त में भी दिव्या माथुर सहज ही विपन्न यथार्थ को कविता में विश्सनीयता के साथ प्रस्तुत कर रही हैं।
कल्पना मनोरमा
अध्यापक व लेखक
नई दिल्ली,भारत