प्रेम का पथ
प्रकृति ने सिखाया प्रेम
समर्पित भाव से बंधन
मानव से मानव करे प्रेम
हृदय देखो बने चंदन।
नेह से बने रिश्तों का
महकता है सदा प्रकाश
प्रेम जोत जगे हृदय में
हो जाता मन वृंदावन।
ममता के पलने में झूले
प्रेम आनंदित हो संतान
मात पिता , गुरू सखा
प्रेम ही है सबका वंदन।
सत प्रेम का पथ कठिन है
जाने हृदय भाव ही है ईश
राधा कृष्ण प्रेम है अनुपम
दोनों विरही हुए मनमोहन।
अंग अंग में कान्ह बसे हैं
राधा बसी विश्वास समान
मीरा के मन मोहन बसे हैं
प्रेम पथ मे किया विषपान।
सुख त्याग करें है तपस्या
विरहा पीड़ा से भरा है मार्ग
बिना प्रेम जीवन क्या जाने
भटका कुमार्ग पर जो मन
हृदय से ह्रदय जुड़े हैं देखो
लौकिक औ अलौकिक बंधन
मार्ग है दुर्गम जाने फिर भी
बढ़ता पग पग बढ़ता तन मन।
प्रभु प्रेम औ कर्म बने जीवन
स्वयं को करना औ समर्पण
प्रेम का पथ प्रभु की कामना
स्वयं को करें हृदय से अर्पण।
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“तुम वीर पुरूष की वीर नार ”
तुम बेटी तुम बहना तुम माता
अनोखी तुम्हारी त्याग तपस्या
ऐसा शौर्य देती तुम हो हरबार
भेजी प्राण सीमा पर कर तैयार
तुम वीर पुरूष की वीर नार
विवाह वेदी से सुन देश पुकार
भेजती अधर मुस्काते प्रियतम
जाते जो सरहद पे सीना तान
हृदय क्रंदन ना विचलित होती
तुम वीर पुरूष की वीर नार
कर्तव्य कर्म ले सदा हो चलती
पिता माता दोनों ही बन जाती
हर पीड़ा हँसके हो सह जाती
मनोबल लेकर हो बढ़ती जाती
तुम वीर पुरूष की वीर नार
आह तुम्हारी कौन है समझे
रक्तरंजित जब आते हैं द्वार
तिरंगे मे लिपटे वीर प्रिय प्राण
श्रृंगार कहते हैं लोग दो उतार
तुम वीर पुरूष की वीर नार
भरती माँग प्रियवर के रक्त से
करती हो तुम ऐसी जो हुँकार
दुर्गा बनती तुम हे कल्याणी
करती हो निछावर हृदय क्रंदन
तुम वीर पुरूष की वीर नार
शत शत नमन तुमको है देवी
तुम्ही हो धाय तुम लक्ष्मीबाई
फिर फिर जनम लेती ना हारी
अचंभित विश्व संकल्प तुम्हारी
तुम वीर पुरूष की वीर नार !
डॉ आशा गुप्ता ‘श्रेया’
झारखंड ,भारत