राष्ट्रकवि डॉ रामधारी सिंह दिनकर
हिन्दी साहित्य और राष्ट्र के गौरव “राष्ट्र कवि डॉ रामधारी सिंह दिनकर जी”की जयंती के अवसर पर उन्हें अपने अविस्मरणीय पल के श्रद्धासुमन अर्पित कर रही हूँ। उन्हें शत-शत नमन।ऐसी महान व्यक्ति का एक संस्मरण मेरे विद्यार्थी जीवन का है। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी दिनकर जी का साक्षात्कार, अपनापन और आत्मियता का सानिध्य मिलना,मेरा सौभाग्य रहा । नेपाल की सीमा से सटा पुर्णिया जिला, इस शहर से उनका अपना निजी संबंध था।उनकी बिटिया का ससुराल था यहां, जहां उनका आना जाना लगा रहता था। मैं भी इसी शहर से हूँ । उनके दामाद मेरे पिता जी के सहयोगी थे। मेंरे पिता जी को बड़े भाई का सम्मान देते थे। दिनकर जी, अपनी बेटी, दामाद के यहां जब भी आते थे, तो उनकी सुबह कि सैर मेरे पिताजी के साथ ही हुआ करती थी। जिसमें हम भाई बहन शामिल होते थे ।सैर के दौरान विभिन्न विषयों पर चर्चाएं होतीं थी कि मनोरंजक और ज्ञान वर्धक जो हमारे लिए मार्गदर्शक बना । “रश्मि रथि” जो दिनकर जी की प्रसिद्ध रचना है, उसके बहुत सारे प्रसंग वहीं लिखे गए हैं।उस समय दो-तीन महीने पुर्णिंया में उनका वास था।हम जिज्ञासा वश बहुत सारी चर्चांऐ करते थें और सबका प्यार भरा उचित उत्तर हमें मिलता था। आत्मियता और अपनापन से भरा विशाल व्यक्तित्व था। जनार्दन प्रसाद झा दिवज, लक्ष्मी नारायण सुधांशु, कपिल और भी बिहार के जाने माने कवि लेखकों के साथ शहर में साहित्यिक गोष्ठियां होती थीं। हमलोंगो के कालेज के वार्षिक उत्सव में मुख्य अतिथि थे। बड़ा ही सुन्दर और सशक्त वातावरण के बीच “दिनकर जी ” सें संवाद होता था और सैर करने की नियमितता निश्चित रहती थीं । हिंदी साहित्य के प्रकाश स्तम्भ “राष्ट्र कवि डॉ रामधारी सिंह दिनकर जी” की निकटता का संबंध अविश्वसनीय और अकल्पनीय रहा,जो उम्र के इस पड़ाव पर भी धूमिल नहीं हुआ है। गृहस्वामिनी के माध्यम से अपनी सुखद अनुभूतियों को साझा करने का अवसर मिला है, ईश्वर की कृपा हुई है। पुनः महान विभूति को नमन और गृहस्वामिनी को धन्यवाद।
उपमा कुमार,
पुणे , महाराष्ट्र