बेटियों की पहचान
21वीं सदी के इस भारत से यह प्रश्न है मेरा,
दे सको तो दो इस प्रश्न का उत्तर हमें।
नित्य प्रति कोख में क्यों मारी जाती है बेटियां ?
क्यों वासना के चादर में लपेटी जाती है बेटियां ?
मत भूलो ,,,,
परिवार का बोझ कहार बन उठाने लगी है बेटियां ,
हर क्षेत्र में खुद को आजमाने लगी है बेटियां ।
धरती को रौंद डाला आसमान भेद डाला ,
काली दुर्गा का रूप भरने लगी है बेटियां।
घर की दहलीज से जो कदम निकले न थे ,
अब शमशान तक जाने लगी है बेटियां।
घर का श्रृंगार थी मां का दुलार थी,
पिता की ढाल बनकर सजने लगी है बेटियां ।
खुद कष्ट सहकर परिवार को हंसाती हैं,
नीलकंठ बनकर जीने लगी है बेटियां l
चट्टानों को काटती है लहरों की धार से ,
घर की देहरी की ईट बनने लगी है बेटियां ।
वहशी दरिंदों ने जिन्हें किया तार-तार है ,
उन्हें भी जिंदगी के सांस देती है ये बेटियां ।
बोझ समझकर जिसे तूने मार डाला,
आसमान से उतरी पवित्र दुआ है ये बेटियां।
सतयुग से कलयुग तक कई बार रुसवा हुई ,
फिर भी हर युग की शान है यह बेटियां
हिंदू की गीता है मुसलमान की कुरान है ,
धरती पर उतरी हसीन शाम है यह ये बेटियां ।
बेटियां ना होती तो दुनिया ना होती,
कुदरत की अनमोल सौगात है यह बेटियां।
हो सके तो बचा लो इन्हें खुद की जान देकर ,
आने वाले वक्त की पहचान है यह बेटियां ।
मंजू भारद्वाज