मेरी बेटियाँ:मेरी शान
लोग गलत थे जो कहते थे अक्सर,
बेटों से चलता परिवार है,
जो कहते थे मेरा बेटा मेरे घर की शान है,
आज उनका घर खाली पड़ा श्मशान है,
बेटियों से ही बढ़ती हर घर की शान है,
बेटियाँ ही माता पिता का अभिमान हैं।
खुद रहते हैं वो अब वृद्धाश्रम में जाकर,
क्योंकि बेटा तो उनका लंदन में विराजमान है,
उन बेटों को ज़रा भी फिक्र नहीं माँओं की,
जिस माँ ने खुशियाँ निसार दी उन पर,
जिसे लोरियाँ सुनाकर ज़मीन पर सोती थी माँ,
अब उस माँ से वो बात भी न करता है,
पैसों की खनक दिन रात बस वो सुनता है,
ऐसे बेटों से तो लाख गुना अच्छी हैं बेटियाँ,
दूसरे घर में भी जाकर अपनी तो हैं बेटियाँ,
बेटियों पर सवाल उठाने वालों ये सुन लो पहले,
अपने बेटों को जाकर सलीका सिखाओ पहले,
इज्ज़त करें वो हर नारी की,
बेटों को ये संस्कार सिखाओ पहले,
तभी इज्ज़त करेंगे वो तुम्हारी भी,
खुद इज्ज़त कमाकर दिखाओ पहले,
जो पैसों के लिए बहुओं को मरवाते हैं,
अरे आईने में जाकर चेहरा तो दिखाओ पहले,
याद रखना जो सीखेंगे वही दोहराएँगे,
अपने बेटों को अच्छा दामाद बनाओ पहले,
बेटियाँ खुद ब खुद संभल जाएँगी,
आप अपनी जिम्मेदारी तो निभाओ पहले,
वो वक्त गया जब बेटों से चलता परिवार था,
अब बेटियों ने कमान संभाली है,
सही कहा है किसी ने दुनिया वालों,
आज दस बेटों पे एक बेटी भारी है,
मुझे गर्व है मेरी बेटियों पर,
सुकून है कि वो जीवन भर हमारी हैं,
जो कहते थे मेरा बेटा मेरे घर की शान है,
आज उनका घर खाली पड़ा श्मशान है,
बेटियों से ही बढ़ती हर घर की शान है,
बेटियाँ ही माता पिता का अभिमान हैं।।
डॉ मीनू पाराशर ‘मानसी’
दोहा-कतर