डेटिंग द ऐरा ऑफ़ लार्ड राम

डेटिंग द ऐरा ऑफ़ लार्ड राम
(Dating the Era Of Lord Ram)

मुझे याद है अक्टूबर 1991 का वो दिन जब मुझे पता चला कि मै गुर्दे के कैंसर से पीड़ित हूँ।एक सप्ताह के अंदर ही मेरा दांया गुर्दा ऑपरेशन के जरिए निकाल दिया गया।अपेक्षाओं के विपरीत विषाद की यह केवल शुरुआत भर थी। पांच साल जीवन जीने का मुझे वचन भी कोई नहीं दे सकता था। चिकित्सकों ने वायप्सी रिपोर्ट के आधार पर मुझे यह लिखकर दे दिया कि ट्यूमर बड़ी तेज़ी से फैल रहा है। उस यंत्रणादायक एवम् पीड़ाकारक समय में भगवान श्रीराम के चरणों की शरण ली।

मुझे बचपन से ही भगवान श्रीराम के जीवन चरित्र में बहुत रुचि थी।में बहुत ही श्रद्धा एवम् तन्मयता से राम चरित मानस पढ़ता था। जितना ही पढ़ता जाता था भगवान राम के वास्तविक जीवन को जानने के लिए मेरी उत्सुकता उतनी ही बढ़ती जाती थी। जीवन में वर्ष 1991 के विक्षोभ से मैं उनके और अधिक निकट हो गया। समय अपनी गति से भागता रहा। 1993 में मेरे एक सहयोगी ने मुझे वाल्मीकि रामायण का हिंदी अनुवाद भेंट किया।शायद ही कभी मैं उस मित्र को इस अनमोल भेंट के लिए आभार प्रकट कर पाऊंगा।

रामायण को कई बार पढ़ने से भगवान श्री राम की वास्तविक तस्वीर मेरे मस्तिष्क में बनती गई।इसका कारण यह था कि किताब मे उनके व्यक्तित्व , शारीरिक सौष्ठव एवम् वार्तालाप के साथ – साथ उनके चतुर्दिक वातावरण के बारे में छोटा से छोटा विवरण भी दिया गया था।
इसके साथ ही खगोल विज्ञान के अधिक से अधिक समझना , जो मेरे जीवन का एक शौक़ था, अधिक प्रेरक बन गया क्योंकि भारत में इंटरनेट का जन्म हो चुका था। खगोलीय चमत्कारों के बारे में जानने व सीखने के लिए मैं वेबसाइट खंगालता रहता था। जल्द ही मैंने अपने कंप्यूटर पर कई ऐसे सॉफ्टवेयर डाउनलोड कर लिए जो ग्रहों और नक्षत्रों की सही स्थिति का अवलोकन कराने में सक्षम थे।

खगोल विज्ञान के विस्तृत ज्ञान तथा रामायण के सूक्ष्म अध्ययन से शीघ्र ही मुझे पता चला कि रामायण ग्रंथ कई ऐसे खगोलीय सन्दर्भों से परिपूर्ण है जो उन घटनाओं की सही तारीखों को समझने में पर्याप्त रूप से समझने में सहायक सिद्ध हो सकते थे जब वे आकाश में वास्तविक रूप से नजर आते थे।मैंने एक सॉफ्टवेयर की खोज प्रारम्भ कर जिससे कंप्यूटर पर इतिहास में दर्शाए गए समय पर आकाश के नक्षत्रों का सही ज्ञान हो सके।मेरी खोज ” प्लैनेटेरियम गोल्ड ” नामक सॉफ्टवेयर की खरीद पर जा कर समाप्त हुई।

वर्ष 1999 तक मैं भगवान श्रीराम के जन्म की तिथि का पता लगाने में सफल हो गया। मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि सॉफ्टवेयर की आकाशीय संरचना से वाल्मीकि द्वारा दिए गए नक्षत्र विन्यास मेल खाते थे।महाराज दशरथ के लग्न को जानने में मुझे एक बार रामायण का पुनः अध्ययन करना पड़ा तथा छह माह लगे।रामायण में वर्णित सूर्य ग्रहण के दौरान राम तथा खर के युद्ध की पुष्टि ने मुझे आह्लादित कर दिया।इससे खोजों की सत्यता साबित हो गई।भगवान श्रीराम के जीवन काल की वास्तविक तिथियों का आविष्कार करने के बावजूद भी मैंने इस विषय पर कोई किताब लिखने की नहीं सोची क्योंकि मेरा उद्देश्य प्रचार अथवा व्यापार न होकर आत्मसंतुष्टि था। हालांकि तीन वर्षों बाद विषय में रुचि रखने वाले लोगों में अखबार के माध्यम से इसे बांटने की इच्छा भी हुई।

किताब में वर्णित प्रत्येक परिणाम तक पहुंचने में बहुत सा श्रम तथा समय लगा ।कई अवसरों पर मै लंबे समय तक कंप्यूटर से चिपका रहता था पर कहीं कोई समाधान नजर नहीं आता था। फिर भी अन्तर्दृष्टि , छठी इंद्रिय अथवा जैसा मेरा विश्वास है कि दैविक शक्ति ने लगातार समाधान उपलब्ध किया। यहां पर मै एक घटना कि विस्तार से चर्चा करना चाहता हूँ।

रामायण में इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि जब हनुमान जी सीता माता की खोज में लंका गए तब चंद्र ग्रहण हुआ था। रामायण में वर्णित घटनाओं के क्रम का विश्लेषण करने पर मै इस नतीजे पर पहुंचा कि उस दिन पूर्णिमा थी , मार्गशी्ष अथवा पौष माह की , यानि वनवास का अंतिम वर्ष ( 5076 B.C.) । यद्यपि मेरे पास इस बात को पुष्ट करने का कोई तरीका नहीं था कि 7000 वर्ष पहले सचमुच कोई चंद्रग्रहण हुआ था अथवा नहीं तथापि मेरा यह मानना था कि जिस सॉफ्टवेयर का मैं उपयोग कर रहा था उसमे चंद्रगहण दिखाने कि क्षमता नहीं है।

मैंने वेब को नए साॅफ्टवेयर की तलाश में छान मारा, डाटा बैंकों की सहायता ली, यहां तक कि विशेषज्ञों से इस विषय में पूछताछ की कि क्या कहीं कोई बीजीय अथवा गणितीय समीकरण उपलब्ध है जिससे 7000 वर्ष पूर्व हुए चंद्र ग्रहण का पता लगाया जा सके? इन सब कोशिशों का कोई परिणाम नहीं निकला। लगभग पांच वर्षों तक हताश रहने के दौरान मेरी यह इच्छा थी कि किसी तरह से चंद्र ग्रहण को सत्यापित तथा प्रर्दशित कर पाऊं जिससे मेरी ख़ोज सही मायनों में पूरी हो सके।

पहेली का कोई उत्तर न मिला देख एवं इस संबंध में पूर्ण रूप से लाचार होने के बाद मैंने अक्टूबर 2003 में किताब की पाण्डुलिपि प्रकाशक को सौंप दी। इसके पृष्ठ पर यह उल्लेख कर दिया कि यह तो स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि जब हनुमान जी सीता मां से मिले तो उस दिन चंद्र ग्रहण था किन्तु इस बात को साबित करने अथवा पुष्ट करने का कोई तरीका मिल नहीं रहा था। मैंने यह भी स्पष्ट किया कि घटनाओं के क्रमानुसार उस वर्ष चंद्र माह के मार्गशीर्ष अथवा पौष मास में पूर्णिमा के दिन अवश्य ही चंद्र ग्रहण होना चाहिए था।

कुछ दिनों पश्चात् मैंने अखबार में पढ़ा कि 9 नवंबर 2003 की सुबह चंद्र ग्रहण होगा जो भारत में दिखाई देगा। 8 तारीख की शाम को बिना किसी विशेष उम्मीद से अंर्तज्ञान स्वरूप मुझे ग्रहण के दौरान जो अगले दिन होने वाला था, सूर्य तथा चांद की स्थिति जानने की इच्छा हुई। मेरा इरादा 9 नवंबर 2003 को पड़ने वाले चंद्र ग्रहण के दौरान सूर्य तथा चांद की स्थिति तथा उन संभावित तिथियों का तुलनात्मक अध्ययन करने का था जब हनुमान जी सीता मां से मिले। मैंने परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूप से इस मामले में निष्कर्ष निकालने की सोची।

यद्यपि जैसे ही साॅफ्टवेयर में मैंने 9 नवंबर 2003 को होने वाले चंद्र ग्रहण का समय लिखा (हालांकि यह अखबार के जरिए पता था) मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि साॅफ्टवेयर सूक्ष्मता से चंद्र ग्रहण को दर्शा रहा था। बिना समय गंवाए मैंने 12 सितंबर 5076 ई पूर्व ( मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा) लिखा जो मेरे अनुसार वह दिन था जब हनुमान जी लंका गए थे तथा उस दिन निश्चित तौर पर चंद्र ग्रहण होना चाहिए था। मैंने धड़कते ह्रदय से विश्लेषण करना आरंभ किया और जैसे उसी समय दैविक पुष्टि की मोहर लग गई —— सॉफ्टवेयर ने दिखाया कि चंद्रग्रहण उस शाम को हुआ था ,ठीक उसी समय जैसा की रामायण में वर्णित है।मुझे विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि पांच वर्षों की हताशा अचानक पांच मिनटों में उल्लास में परिणित हो जाएगी।सुखद , आनंद तथा कृतज्ञता के भाव से भरकर मैं श्री राम जी के चित्र के आगे नतमस्तक हो गया। यह विषय वर्षों से मेरे लिए किसी दलदल के समान था। पूर्व में भाग्य के आगे समर्पण कर मैंने पांडुलिपि यह जानते हुए भी की इसमें कमी है , प्रकाशक को सौंप दी। यदि 9 नवंबर को चंद्रग्रहण नहीं हुआ होता और यदि किसी ने मुझे उस दिन चंद्रमा तथा सूर्य की स्थिति जानने को प्रेरित न किया होता अध्ययन में गंभीर संदिग्धता हमेशा के लिए रहा जाती।मेरा यह मानना है की हमारी कोशिशों के पांच वर्ष तथा ” हरि इच्छा” के पांच मिनट में यही अंतर है।कहना न होगा कि मैंने पांडुलिपि को संशोधित कर नया अध्याय जोड़ा और फिर उसे प्रकाशन के लिए दिया ।अध्ययन की समाप्ति पर मैंने लगभग पंद्रह वर्ष पूर्व के संकटों एवम् निराशा की धुंधली यादों की तरफ देखा। साक्षात भगवान श्री राम के अनुग्रह का इससे अच्छा उदाहरण और क्या होगा ? मेरे कई शुभचिंतकों ने कहा कि मैं रामायण की खगोलीय तिथियां एक दोहरे संयोग के कारण तलाश पाया — मुझ में खगोलीय विज्ञान की कुछ समझ हो चली थी तथा भगवान श्रीराम के विषय में अनवरत अन्वेषण की अदम्य इच्छा थी। मेरा मानना है कि कैंसर से बचते हुए मैं यह कार्य कर पाया क्योंकि भगवान श्रीराम चाहते थे कि मैं यह कार्य पूरा करूं । शाश्वत ऋणी होकर मैं यह पुस्तक भगवान श्री राम के चरणों में समर्पित करता हूं जिनकी कृपा के बिना मैं आज का दिन नहीं देख सकता था।

स्वर्गीय श्री पुष्कर भटनागर
10 मई 2004
दिल्ली

मेरा मन उस दिन भर आया जब राम जन्मभूमि पूजन हुआ ,उसके बाद ही मेरी बेटी के पास वकील साहब का फोन आया ,जिन्होंने बताया कि ” पुष्कर जी की  इस पुस्तक के आधार पर राम जन्म के केस को करने में काफी सहायता मिली है। “मेरे परिवार ने  पुष्कर जी की इस पुस्तक को लिखते वक़्त का अथक प्यास महसूस करा है।ये बाते आज सबसे साझा करने का उचित समय लग रहा है। जब अयोध्या नगरी में प्रभु राम के विराजने के लिए सारा जगत राम मय हो रहा है।

1980-82  से बाबा संत नागपाल जी के सानिध्य में छतरपुर मंदिर की सेवा और आरती में भाग लेना नियमित कार्यक्रम था ।

राम रामेति रामेति,रमे रामे मनोरमें।
सहस्त्र नाम ततुल्यम ,राम नाम वरानने ।।

  मां  कात्यायनी के साथ साथ अपनी मां की छत्र छाया में आजीवन रामायण पाठ व भाई बहनों, बचपन के दोस्तों के साथ अक्सर प्रभु राम दरबार सज़ा कर ‘अखंड रामायण’ स्वयं ही करा करते थे। वहीं से आई आर एस , एडिशनल कमिश्नर ऑफ़ इनकम टैक्स(आइ आर एस)  की सेवा में अल्पायु में चयनित हुए।

1989 – 90 के बाद गोवा से तबादला हो कर अपने निवास दिल्ली में आए, बस ऑफिस  के कार्य के साथ साथ डेस्कटॉप पर घंटों लगे रहतें। किसी की सहायता से बड़ा सा  (बायानकुलर)  दूरबीन छत पर सज़ा लिया।
जिसमे ग्रहों ,नक्षत्रों की स्थिति पर पूर्ण रूप से नजर रखा जा सके।
हम बच्चों व परिवार में संलग्न ये समझने से दूर थे कि पुष्कर जी का ये राम  मोह किस ओर अग्रसर हो रहा है।
वाल्मीकि रामायण ,तुलसी रामायण , कबंद रामायण, तमिल और ना जाने कहाँ कहाँ की खोज इस बात का सबूत  जुटा रहें थे कि ” उनके राम को कोर्ट, कचहरी की कैसे आवश्यकता पड़ गई, राजा राम पर ये कैसे प्रश्न चिन्ह्???
बस इसी कारण एक सॉफ्टवेयर २००० में विदेश से मंगाया गया और ” डेटिंग द ऐरा ऑफ़ लॉर्ड राम ” की रचना हुई।
जो आप और भी विस्तृत रूप में इस पुस्तक ये माध्यम से समझ सकते है। ” इनकी” हार्दिक इच्छा थी कि ये पुस्तक हिंदी व अन्य भाषाओं में भी अनुवादित होकर जन मानस तक पहुंचे।अतः ये कार्य हम जैसे तुच्छ प्राणी के  जीवन को सार्थक करने के लिए ईश्वर ने मौका दिया।🙏
गृहस्वामिनी ने इस कार्य को आगे लोगो तक पहुंचने में  सेतु का कार्य किया है । अवसर प्रदान करने के लिए उसका तहें दिल से शुक्रिया।

दुर्भाग्य पूर्ण बात ये रही कि  20 .08.2010 में कमिश्नर ऑफ़ इनकम टैक्स  के कार्य भार को संभालते हुए उसी अल्पायु में ही परिवार व प्रियजनों से दूर हो ,प्रभु श्री राम के चरणों पनाह ली।

ना जाने कितने युग बीते
बीती ना जाने कितनी दीवाली
प्रभु राम लला मंदिर के खातिर
कोर्ट कचहरी इतिहास विज्ञान
जाने कितने सपने हुए निछावर।

बार बार वर मांगऊ हरषी देऊ श्री रंग।
पद सरोज अनपायनी भगति सदा सत्संग।।

मो सम दीन न दीन हित तुम समान रघुबीर ।
अस विचार रघुवंश मनि हरहु विषम भवभीर।।
जय श्री राम।

विन्नी भटनागर
धर्मपत्नी स्वर्गीय पुष्कर भटनागर
५.८.२०२०

 

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