कोरोना वाॅरियर्स की चुनौतियाँ
वैश्विक महामारी कोविड 19(कोरोना) ने संपूर्ण विश्व में उथल-पुथल मचा रखी है । विश्व शक्ति का प्रतीक माने जाने वाले, मेडिकल साइंस के महारथी, संपन्न, नामी देश भी इसकी विभीषिका के समक्ष ठिगने दिखाई दे रहे हैं।समस्त वैज्ञानिक प्रयोग,उन्नति नाकाफी साबित हो रहे हैं ।शेर की तरह दहाड़ कर पूरे विश्व को डराने-धमकाने,परमाणु हमले की धमकी देकर थर्राने वाले देशों की घिग्घी बँधवा दी है इस अदृश्य कोरोना ने । काफी कुछ समझाया है ,आँखें खोली हैं ,वास्तविकता से सामना करवाया है इस विकट परिस्थिति ने ।अब समय है विचार- विमर्श कर इस पर विजय पाने की , ‘जियो और जीने दो’ के सिद्धांत को अपनाकर स्वयं और दूसरों को बचाने की । खुद को मजबूत कर दूसरों के हाथ थाम उन्हें सहारा देने की, गिरतों को संभालने की और मिल-जुलकर जीने की राह तलाशने की । कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए जनता के लिए लॉकडाउन की व्यवस्था और लॉकडाउन के पूर्णतः पालन अथवा उल्लंघन से कम या ज्यादा होती कोरोना वॉरियर्स की चुनौतियाँ विचारणीय मुद्दा है।
इस विकट समय में जनता केंद्र बिंदु में है ,जनता अर्थात् हम सब । जनता की सुरक्षा, उसके अधिकार-कर्तव्य ,नैतिक जिम्मेदारियाँ,उसकी मानसिक शांति और स्थिरता जैसे कई बिंदु प्रश्न रूप में हमारे समक्ष हैं ।जनसामान्य की सम्मिलित शक्ति का आभास तो है जनसामान्य को , लेकिन अधिकांशतः यह शक्ति धरना- प्रदर्शन ,जुलूस आदि के समय प्रत्यक्ष दिखता है । इस शक्ति को सही सोच के साथ ,सही दिशा में मोड़ना आवश्यक है । इसी जनसामान्य की सोच-समझ, धीरज आधार तय कर रही है कोरोना से लड़ने की हमारी शक्ति की । हम बात कर रहे हैं भारत की ,हमारे भारत की जिसकी जनसंख्या लगभग 135 करोड़ है ।इस विशाल जन समुदाय की सुरक्षा किसी सेना ,पुलिस या प्रशासन के एकल प्रयास से संभव नहीं ।यहाँ जरूरत है जनता समय की नजाकत को समझे, अपने कर्तव्यों को समझे और ईमानदारी से उसका पालन करे ।सूचना क्रांति के इस दौर में इस महामारी के रूप ,इसके प्रसार और इसकी विभीषिका से संबंधित जानकारी और संभावित खतरे से कोई भी अछूता या अनजाना नहीं है। हम सब जानते हैं कि इससे बचाव ही इस कोरोना का एक मात्र इलाज है ।एक तरह से यह छुआछूत की बीमारी है जो अदृश्य रूप से हमला करती है ।अतः सामाजिक दूरी बनाकर (रखकर) ही हम स्वयं एवं दूसरों का बचाव कर सकते हैं , तो हर एक को पूरी तरह से इस सामाजिक दूरी का पालन करना ही चाहिए जिससे इसका संक्रमण रूके, इसके प्रसार का चेन टूट सके ।संक्रमण काल में हर समर्थ जनता ,असमर्थ की मदद करे ।अपने नैतिक मूल्यों का पालन कर, जरूरतमंद की मदद कर ,उनका हौसला बढ़ा कर उनमें जीने के प्रति उम्मीद जगा कर मानसिक तौर पर उन्हें सहारा दे। जहाँ हम अपने अधिकार की बात करते हैं, हमारा कर्तव्य भी वहीं साथ में ही खड़ा होता है ।अपने अधिकारों की माँग या प्रयोग करते समय कर्तव्यों की अनदेखी न कर उसका पालन करें जिससे किसी दूसरे का अधिकार क्षेत्र प्रभावित ना हो। देश की जनता से ही देश का निर्माण होता है ,अतः नागरिक कर्तव्य का अक्षरशः पालन कर देश को मजबूत बनाना जनता का सर्वोपरि कर्तव्य है। यहाँ मुख्य बात यह है कि जनता, वह चाहे घर में हो या सेवा कार्य के लिए घर से बाहर प्रत्येक व्यक्ति देश हित में सोचे ।मजबूर और मजदूर को यह एहसास दिलाया जाए कि हम उनके साथ हैं वे अकेले नहीं हैं ।
लॉकडाउन की इस अवधि में ऐसा लग रहा है कि तेजी से भागती -दौड़ती रफ्तार भरी जिंदगी के पैरों में बेड़ियाँ पड़ गई हैं ,दिन और रात का अंतर समझ में आ रहा है ।यह बेड़ी कब खुलेगी अनिश्चित है ।मजबूत,सक्षम,स्पष्ट नीतियों वाली सरकार ने थोड़ा- थोड़ा ,धीरे -धीरे कर हमें लॉकडाउन की बेरी में जकड़ा, इसकी आदत डलवाई और अभ्यस्त बनाने का प्रयास किया ।किस्तों में यह अवधि धीरे-धीरे बढ़ाई गई, जिससे हम इसे झेलने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो सकें और निराशा तथा हताशा की अवस्था से बच सकें। सुनियोजित लॉकडाउन का ही प्रभाव है कि अति सीमित संसाधन और विशाल जनसंख्या वाले इस विकासशील राष्ट्र भारत ने स्वयं को संभालने और बचाने में आंशिक सफलता पाई है ।कोरोना ने जिस तरह अन्य देशों में कहर बरपाया उसे सोच कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि यदि यहाँ की( हमारी )सरकार ने सख्ती दिखा कर समय से लाॅकडाउन की घोषणा न की होती तो क्या होता ? हम भाग्यशाली हैं कि समय रहते , सही निर्णय ने आने वाली मुसीबत की गति को थोड़ा धीमा किया । इस लाॅकडाउन ने हमें आईना दिखाया है कि किस तरह हम प्रकृति को अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए नष्ट करने पर तुले हैं ।आज जब हम लगभग डेढ़ महीने से ज्यादा समय से घरों में बंद हैं तो प्रकृति खिल गई है, नदियां स्वच्छ हो गई हैं, हवा प्रदूषण मुक्त हो गया है ।चुनौतियाँ अभी बहुत हैं -शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहना, सब तक भोजन की उपलब्धता ,गरीबी रेखा से नीचे के लोगों का जीवन यापन ,परिवार से दूर रह रहे लोगों की समस्या , आर्थिक समस्या ,नौकरी का जाना ,शिक्षा व्यवस्था में अनियमितता ,झूठी प्रसिद्धि-प्रचार का प्रयास आदि अनेक समस्याओं से इस लॉकडाउन में हमारा वास्ता पड़ रहा है और लाॅकडाउन समाप्त होने के बाद ये समस्याएँ बड़े विकट रूप में प्रत्यक्ष हमारे सामने खड़ी होंगी ।छोटा बच्चा हो या वृद्ध, स्कूली बच्चा हो या कॉलेज तथा प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करता विद्यार्थी ,नौकरी पेशा हो या व्यापारी वर्ग हर वर्ग ,हर उम्र के लोग प्रभावित हो रहे हैं ।प्रत्येक व्यक्ति परेशान है आज से और चिंतित है आने वाले कल के लिए ।अनिश्चितता और असमंजस के इस दौर में जहां हर वर्ग परेशान है, यह परेशानी समाज के निचले तबके के लिए बहुत ज्यादा है ।गरीबों, मजदूरों के सामने पेट भरने के लिए दो जून की सूखी रोटी का जुगाड़ भी मुश्किल भरा है ।सबसे पहले जरूरत है इनके भूख को मिटाने की। सरकार ,सबल और सक्षम वर्ग द्वारा इसके लिए कदम उठाने की जरूरत है क्योंकि पेट की आग सही और गलत कार्य का भेद खत्म कर सकती है ,समाज में अन्य परेशानियाँ भी उत्पन्न हो सकती हैं। अतः ढूँढ कर ऐसे लोगों तक मदद पहुंचाना होगा जिससे वे जीवित रह सकें। स्वयं पर निर्भर अपने सहायकों की मदद कर उनका जीवन आसान बनाना होगा ।लाॅकडाउन खत्म होने के बाद लोग जब घरों से निकलेंगे तब कठोर वास्तविकताओं से उनका सामना होगा ।कितनों के पास नौकरी नहीं होगी ,कितनों का व्यवसाय प्रभावित होगा ।तब जरूरत होगी मानसिक सहायता की, विचार- विमर्श की ,मार्गदर्शन की जिससे हताशा या निराशा में कोई गलत कदम ना उठा ले ।जरूरतें कुछ कम होंगी पर खत्म नहीं होंगी, तब शायद हमें झेलना पड़े कुछ सामाजिक बुराइयाँ (चोरी ,छिनतई आदि ) क्योंकि मौलिक जरूरतों को नकारा नहीं जा सकेगा । इस प्रकार सच्चाई के धरातल पर बहुत सारी चुनौतियों का आने वाले समय में सामना करना है ।परिवार से दूर रह रहे व्यक्ति का परिवार तक पहुंच जरूरी है क्योंकि परिवार के बीच रहकर व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों से जूझने का संबल पाता है उसे मानसिक सुरक्षा एवं संतुष्टि का एहसास होता है ।इसके साथ ही मन में एक प्रश्न उठता है कि लाॅकडाउन में राहत सामग्री बांटते हुए फोटो खिंचवा कर ,छपवा कर ,प्रचार-प्रसार का जो कार्य जोर-शोर से चल रहा है यह विशुद्ध समाज सेवा है या समाज सेवा की आड़ में स्वयं के प्रचार का एक तरीका या लॉकडाउन में घर से बाहर निकलने की छटपटाहट का एक जुगाड़ मात्र ?आए दिन मदद देते हाथ की तस्वीर अखबार में देख यह प्रश्न मन में आना वाजिब है । शायद कुछ प्रतिशत ही लेकिन लाॅकडाउन का फायदा अपने हित के लिए तो उठाया ही जा रहा है ।इस लाॅकडाउन ने हमें सिखाया है कि हम अपनी जरूरत और शौक में फर्क कर सकें, आने वाले समय में भी अगर हमने स्वयं को जरूरत तक ही सीमित रखा, तभी हम फिर से संभल कर खड़े हो सकेंगे ।अगर लाॅकडाउन के बाद हमने पहले जैसी भीड़ बाजार ,दुकान, होटल आदि में बढ़ाई तो यह खतरे को खुला निमंत्रण देने जैसा होगा ।कोरोना का कहर अभी हमारा पीछा छोड़ने वाला नहीं है अतः इससे बचकर ही रहना है ,इलाज से बेहतर परहेज है और यह तो अभी लाइलाज है । लाॅकडाउन खत्म होने के बाद आवश्यक काम के लिए ही बाहर निकलने की जरूरत है ।सरकार के तरफ से लाॅकडाउन हटने के बाद भी अपने मन के घोड़े के लगाम को कस कर रखना होगा ।लाॅकडाउन का पूरी तरह से पालन न करने का खामियाजा तो हम उठा ही रहे हैं अगर हर व्यक्ति ने पूरी ईमानदारी से इसका पालन किया होता तो भारत में संक्रमण दर शायद और कम होता, चुनौतियाँ और कम होतीं ।
लॉकडाउन के पालन में हुई चूक ने कोरोना वॉरियर्स की चुनौतियाँ- परेशानियाँ बढ़ा दी हैं। ये योद्धा अपनी जान जोखिम में डाल कई स्तर पर हमारे लिए काम कर रहे हैं ।फ्रंट पर प्रत्यक्ष रूप से काम कर रहे डॉक्टर, नर्स ,सफाईकर्मी ,सेना, पुलिस जहां 24 घंटे सेवा दे रहे हैं ,वही बैंकर, खाद्य आपूर्ति कर्ता, मीडिया ,कुछ सरकारी कर्मचारी ,स्वास्थ्य सहायिकाएँ एवं शिक्षक आदि अप्रत्यक्ष रूप से दूसरी कतार में रहकर अपना योगदान दे रहे हैं। ऐसे में जनता का कर्तव्य है कि वे घरों में रहें , स्थिति को और ना बिगाड़ें। जहां ये वाॅरियर्स अपना घर-परिवार छोड़ इस अदृश्य शत्रु कोरोना से पंगा लेकर हमारी सुरक्षा के लिए कार्य कर रहे हैं तो हम घर के अंदर रहकर इन्हें सहयोग तो करें ।ये वॉरियर्स अपने घर नहीं जा रहे कि संक्रमण इनके घर तक न पहुंच जाए , इनके त्याग का कुछ तो सम्मान करें ।कुछ के घरों में छोटे बच्चे हैं तो कुछ के घरों में वृद्ध या बीमार भी ,फिर भी कर्तव्य को सर्वोपरि मान ये कर्म क्षेत्र में डटे हैं । कोरोना ने तो अब इन वॉरियर्स को भी अपने शिकंजे में कसना शुरू कर दिया है ।जवान,स्वास्थ्यकर्मी प्रभावित और संक्रमित हो रहे हैं । अतः बीमा द्वारा इन वॉरियर्स की सुरक्षा आवश्यक है जिससे ये निर्भय होकर काम कर सकें ।इन योद्धाओं के साथ कुछ लोगों द्वारा किया अभद्र व्यवहार सोचने पर मजबूर करता है कि क्या ये विश्व को सभ्यता का पाठ पढ़ाने वाले भारत के नागरिक हैं ?क्या ये भारतीय हैं ?पूरे विश्व में जहां जनता इन वॉरियर्स को सहयोग कर रही है, इन्हें सम्मान दे रही है ,इनके प्रति आभार व्यक्त कर रही है वहीं हमारे देश में कुछ प्रतिशत लोग इस तरह के कार्य को अंजाम दे रहे हैं कि चर्चा करने में भी शर्म महसूस होती है।विश्व के अन्य किसी भी भाग से ऐसी शर्मनाक खबर पढ़ने-सुनने को नहीं मिली । हमारा फर्ज बनता है कि हम इनका सम्मान करें ,आभार जतायें, फेसबुक ,टि्वटर आदि पर पोस्ट द्वारा धन्यवाद दें ।आभार प्रकट करें ,ये हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं इसका एहसास कराएं ।इनके परिवार की मदद करें, उनका हौसला बढ़ाएँ और उनके साथ खड़े हों ।इनके सम्मान में कई जगहों से फूल वर्षा जैसी खबर सुखद संतोष देती है ।प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से कार्य कर रहे सभी कोरोना योद्धाओं को मेरा प्रणाम ।
‘विश्वास है तुम पर,नमन और वंदन हे वीर कोरोना योद्धा ।
खम ठोंक खड़े जब साथ तुम,तो पार कर लेंगे यह बाधा ।।’
इस आपदा ने दुनिया के वर्तमान को बदल दिया है और भविष्य को भी प्रभावित करेगा ।अतः एक दूसरे को यह बताने और जताने की जरूरत है कि वे अकेले नहीं हैं ,यह हमारी साझी समस्या है ।एकता में बहुत शक्ति होती है ,अपने घर (देश )को मजबूत करने की जरूरत है ।इस महामारी ने जहाँ कहर बरपाया है वहीं कुछ वास्तविकताओं से हमारा परिचय भी कराया है। इसने हमें सिखाया है कि प्रकृति बलवान है ,हम उससे जुड़ें, उसका सम्मान करें ।परिवार की महत्ता समझें, अति महत्त्वाकांक्षा की दौड़ में शामिल होकर ,घर-बार छोड़ पलायन करने की जगह अपने क्षेत्र को विकसित करें। स्थानीय स्तर पर रोजगार का सृजन करें और वहीं जीवन- यापन का प्रयास करें, रोजगार का सृजन कर बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था करें।खर्च कम करें, शौक को सीमित करें ,अंध प्रतियोगिता से बाहर निकलें, प्रकृति से जुड़ें, सादा जीवन उच्च विचार को अपनाएँ और सरलता से प्रकृति के साथ सामंजस्य कर एक नये जीवन की शुरुआत करें। कोरोना बीमारी नहीं महामारी है लेकिन सूझबूझ और एहतियात के साथ इस पर विजय पाई जा सकती है ,यह कार्य मुश्किल है पर असंभव नहीं ।
पुष्पांजलि मिश्रा
शिक्षिका
जमशेदपुर