कोरोना वाइरस से संघर्ष

कोरोना वायरस से संघर्ष

संपूर्ण मानवता आज कोरोना वायरस नाम के बीमारी से खौफ में हैं,जिसे सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम कोरोना वायरस -2 (SARS-CoV-2) का नाम दिया गया है, जिससे पिछले चार-पांच महीनों से कोविड-19 नाम की बीमारी हो रही है।चमगादड़ इन वायरस के प्राकृतिक पोषिता/स्रोत माने जाते हैं. कोविड- 19 को आम तौर पर एक प्रलय के रूप में देखा जा रहा है कि कैसे इसका प्रभाव समाज, विज्ञान, मनोविज्ञान एवं अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। इस महामारी ने न सिर्फ वैश्विक अर्थव्यवस्था को बल्कि पूरे विश्व के सामाजिक जीवन को अस्त व्यस्त कर दिया है।

अधिकांश लोगों के लिए, यह बीमारी मामूली है, लेकिन कुछ लोग मर जाते हैं, विशेष रूप से बुजुर्ग,बच्चे और गंभीर बीमारी से पीड़ित लोग । यह पहले गले, श्वसन मार्ग और फेफड़ों के स्तर की कोशिकाओं
को संक्रमित करता है और फिर उन्हें “कोरोना वायरस कारखानों” में बदल देता है और बड़ी संख्या में नए वायरस पैदा करता है । जो और अधिक अन्य कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं। कुल मिलाकर, कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में प्रतिरोधक प्रणाली की महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए सही भोजन करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इसलिए, उच्च फाइबर सामग्री से युक्त संतुलित आहार लें क्योंकि यह आंत रोगाणु/ माइक्रोब को मजबूत करता है जो प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत बनाता है, अच्छी नींद लें क्योंकि यह भी प्रमाणित प्रतिरोधक प्रेरक है। योग और हल्के व्यायाम करें और तनाव न लें क्योंकि तनाव से प्रतिरोधक प्रणाली कमजोर हो जाती है। मजबूत प्रतिरोधक प्रणाली बहुत आसानी से कोरोना वायरस को हरा सकती है।

भारत सरकार ने समय-समय पर देशव्यापी लॉकडाउन लगाने का निर्णय लेकर कोरोना वायरस के प्रसार को प्रभावी रूप से नियंत्रित किया है। वायरस लगातार विकसित एवं परिवर्तित हो रहा है। अब तक 11 उपभेदों का विकास हुआ है और यह उत्परिवर्तन की प्रकृति के आधार पर कम घातक हो सकता है। अब हमें इसके साथ रहना होगा क्योंकि यह सभी छह महाद्वीपों में स्थानिक होगा। इसलिए, जागरुक रहें और डरें नहीं, साल के अंत तक दुनिया SARS CoV-2 के खिलाफ प्रभावी वैक्सीन विकसित करने के लिए आशान्वित है। वैज्ञानिक परीक्षणों में एंटीवायरल दवाओं का परीक्षण भी किया जा रहा है और कुछ में कोविड-19 के इलाज की अच्छी संभावनाएँ दिखाई दे रही हैं। भारतीय वैज्ञानिक और फार्मा उद्योग भी कोविड-19 वायरस के खिलाफ टीका विकसित करने में लगे हैं और सफलता हेतु आशान्वित हैं। कोरोना वायरस बीमारी (कोविड-19) के खिलाफ 30 से अधिक टीके विकास के विभिन्न चरणों में हैं और कुछ तो भारत में भी परीक्षण के चरणों में हैं, यहाँ तक कि मौजूदा दवाओं को फिर से पुनरुद्देशित / का फिर से नवीनीकरण किया जा रहा है।भारत में लोग कोविड के संक्रमण से इतना डरे हुए हैं कि बाहर निकलने में भी हिचकते हैं। यहाँ कि मेडिकल व्यवस्था पर भरोसा नहीं हैं। डॉक्टर तो बहुत काबिल और निपुण हैं मगर हॉस्पिटल और बेड की भारी कमी है और बीमारी भी लाइलाज है।

पूरी दुनिया संतप्त है कोविद -19 की त्रासदी से।सभी देश अपनी परिस्थितियोँ के अनुसार अपने अपने क्षेत्रों में लॉकडाउन और प्रतिबन्ध लगा रहे हैं।काफी लम्बे समय के बाद अर्थव्यवस्था पर इतना गहन दवाब महसूस हो रहा है। ऐसा प्रतीत होता है की अचानक कोविड, जिसका जन्म चीन के वुहान में बताया जाता है, कि आंधी आयी और संपूर्ण विश्व जगत की आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था में तूफान ला दिया।चीन के बाजार के प्रति न सिर्फ भारतीयों का बल्कि संपूर्ण विश्व का मोहभंग हुआ और भारत आत्मनिर्भर बाजार की ओर अग्रसर हो रहा है। सरकार स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने और विश्व में चीन का स्थान लेने का प्रयास कर रही है। मगर यह सफर इतना आसान भी नहीं है।

मानसिक तनाव ने लोगो को ग्रस्त कर रखा है।खास तौर पर गरीब मज़दूर और घरों में काम करने वाली महिलाएं जिन्हें आम तौर पर ‘बाई’ के नाम से सम्बोधित किया जाता है, वो अपनी और अपने परिवार के वृद्ध और मासूम बच्चों के भूख से परेशान हो कर मानसिक विकार का शिकार हो रहे हैं। गृह हिंसा और क़र्ज़ का बोझ न सिर्फ गरीबों को बल्कि मध्य वर्ग को भी परेशान कर रहा है।कोविड 19 एक और अध्याय है गरीबी और अमीरी के बीच की दूरी को उजागर करने में।अवश्य ही गरीब और हासिये पर पड़े लोग इस मार से ज्यादा व्यथित हैं। इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी के सर्वे के मुताबिक मानसिक तनाव से ग्रसित लोगों की संख्या पहले से 20% बढ़ गयी है।

राज्यों की सीमाएं बंद हैं मज़दूर बेकार हैं,स्कूल और अन्य शिक्षण संस्थान , कंपनियाँ ,मॉल बाजार सभी बंद हैं। बस, रेल और हवाई सेवा भी बंद है ।टूरिज्म और होटल सेवाओं के बंद होने से भी नुकसान हुआ। कामकाजी महिलाएं जो जेंडर समानता का सबब बानी थी जिनमे नर्स, टीचर, फ्लाइट अटेंडेंट, रेस्टुरेंट या घरों में काम करने वाली महिलाएं , सभी की नौकरियां ठहर गयी हैं और उनकी आय का स्रोत चला गया । उनकी आत्मनिर्भरता भी खत्म हो गयी। इससे समाज में पुनः असमानता की खाई दिखी। शिक्षण संस्थान के विद्यार्थीयों के लिए ऑनलाइन क्लासेज चला तो दी गयी मगर सभी इसका लाभ प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं।दूरगामी क्षेत्रों में इंटरनेट की सुवधाएं उपलब्ध तो हैं मगर सुचारु नहीं हैं। पॉलिसी निर्धारित करने वालों ने राहत पैकेज का घोषणाएं तो किया है जिससे किसान, लघु उद्योग और महिलाओं को कुछ रहत मिले मगर कहा नहीं जा सकता कब गाड़ी पटरी पर आएगी। भारत ने स्वतः ही 12 मार्च से ही क्वारंटाइन कर लिया था और 24 मार्च से तो सम्पूर्ण लॉकडाउन कर लिया है। आरम्भ में कोविड का प्रसार धीमा था परन्तु अब वायरस सामुदायिक प्रसार के स्टेज में है। टेस्टिंग आइसोलेशन और मॉनिटरिंग से इन्फेक्शन को कण्ट्रोल करने की काफी कोशिश की गयी है। सांइटिज़ेर, मास्क, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों (पीपीई), वेंटिलेटर ओर टेस्टिंग किट ही वो सशक्त शस्त्र है जिनसे इसका मुकाबला किया जा रहा है।शुरुआती दौर में इनकी कमी थी मगर हमारे वैज्ञानिकों ने थोड़े समय में ही इसकी आपूर्ति की है।

हम जानते है कि लॉकडाउन कि वजह से कार्बन एमिशन काफी धीमा हो गया है लेकिन जानकर मानते है कि इसका भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इतिहास गवाह है कि जब भी ऐसा हुआ है दुबारा कार्बन एमिशन कई गुना ज्यादा बढ़ कर फैला है। यह सत्य है कि शहरों कि हवा और नदियों का पानी साफ़ हो गया है।कभी कभी हम जंगली जानवरों को सड़को पर घूमते फिरते देख लेते है। बिजली और पेट्रोल डीज़ल कि खपत भी काम हुई है।

डब्ल्यूएचओ ने जब से कोरोना वायरस (COVID-19) को ”सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल/पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी”; घोषित किया है, इंडियन कॉसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च ,नेशनल कॉसिल ऑफ़ डिजीज कण्ट्रोल और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) जैसी वैज्ञानिक संस्थाओं ने इसके प्रसार पर नज़र बनाए रखा है। हम उनको नमन करते हैं जो सच में हमारी सुरक्षा के लिए अगली पंक्ति में खड़े हैं उनमे डॉक्टर्स, नर्स अन्य स्वाथ्यकर्मी और पुलिस, आर्मी, पारामिलिटरी फाॅर्स तथा अन्य लोग हैं।

( डॉ अजय कुमार सिंह और अन्य लेख और ऑडियो ओर विसुअल मीडिया तथा व्यक्तिगत दृष्टिकोड़ इस लेख के स्रोतत हैं )

डॉ विजय लक्ष्मी सिंह
एसोसिएट प्रोफेसर
इतिहास विभाग
दिल्ली यूनिवर्सिटी

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