कोरोना का कमल

कोरोना का कमल

एक ऐसी बीमारी जिसने आदमी के शरीर को ही नहीं संवेदनाओं को भी संक्रमित किया है उसका उदाहण चारदीवारियों में क्वारंटाइन हुए हर मनुष्यों के भावनाओं के टेस्ट रिपोर्ट से मिल रहा है। इस कोरोना काल में जब अपने अपनों से दूर हैं वैसे में पराए का अपनापन जीवन और जज्बातों को बचाए रखने का जनून भी दिखा रहा है । क्वारंटाइन के इस काल खंड में कलम उठा कर कुछ लिखने को अपनी काबिलियत नहीं करिश्मा मानती हूँ क्योंकि मेरी उम्र 86 और पति मेरे 90 के हैं। अच्छे स्वास्थ्य और अच्छी सुविधा के लिए मैं अपने गुरु चार बच्चों के साथ साथ अपनी लता और कमल का भी सदा धन्यवाद करती रही हूँ।जहाँ एक और बेटियां और बेटा अपने उन्नति तरक्की और आर्थिक सुदृढ़ता से मुझे चिंता मुक्त रखते हुए भावनात्मक शक्ति प्रदान करते तो दूसरी तरफ लता घर की सभी काम बडी कुशलता से निबटाती और कमल ड्राइवरी कम करता पर जीवन की गाडी का हर चक्का दुरुस्त रखने में हमारी मदद करता । कमल इनकी डाँट खाता, बेतुकी बकबक सुनता ,पैंट शर्ट के बटन लगाता और मुझसे तनातनी होने पर मुझे गलत बताकर इनकी पौरुष की बलाईयाँ लेता उनकी सभी बातों को सुनकर ऐसा चेहरे पर भाव लाता जैसे कि उसने हमारे बुढापा ही नहीं जवानी और झारखंड से गुरुग्राम आने तक हमारे साथ ही रहा हो। मेरी सेवानिवृत्ति के बाद बेटे के आग्रह पर हम अपने राँची के घर को बेच कर उसके साथ यहां रहने लगे।शादी हुई बच्चे हुए इतना आनंद अपने बच्चों को पालने में भी नहीं हुआ था क्योंकि एक प्राचार्या होने के कारण विद्यालय परिवार की जिम्मेदारी अपने परिवार से अधिक थी ।बेटियां बेटे का ख्याल माँ से अधिक रखतीं थी । सोलह साल का छोटा था अपनी बडी बहन से।मझली दीदी दीदीभाई कहलाती और उसको व्यंजनों का आनंद देती और छोटी इंजीनियरिंग की पढाई करके अमेरिका बसी थी जो उसकी शैक्षणिक गुरु थी। चारों बच्चे नौकरी पेशा अपने कर्म क्षे्त्र में व्यस्त। बेटा भी अति मेहनती।सफल प्रोमोशन के बाद लंदन पोस्टिंग मिली थी। चेहरे पर खुशी की जगह तनाव देख मैने ही कहा था इस पोस्टिंग को स्वीकार करो आगे बढने के लिए हमने भी गाँव से शहर का रुख किया था तब बच्चों को अच्छी शिक्षा और वातावरण दे पाए। तुम भी अपने बच्चों को आगे बढाओ दुनिया दिखाओ ऐसा मौका नहीं छोडना चाहिए।मेरी बातों से संतुष्ट होकर उसने विदेश जाने का फैसला किया था पर घर, मेंटेनेंस ,ड्राइवर खाना साफसफाई की जिम्मेदारी लेते हुए उसने कमल और लता को रख दिया ।बहू ने उन्हें घर के काम सिखाया ,दोनों बंगाल से थे और हमें उनकी भाषा तहजीब और भोजन सभी अच्छे लगते थे क्योंकि मैं भी इसी परिवेश के मुहल्ले स्कूल और रामकृष्ण मिशन से दिक्षित हुई थी। सब कुछ बढिया ही था बच्चे बारी बारी से आते मिलते मेरे ममेरे मौसरे भाई बहन भी यहीं रहते थे।ये अपने शेयर मार्केट में उलझे रहते और मैं सोसायटी में सुंदरकांड के पाठ का ध्यान लगाती। ध्यान टूटा तब जब कोरोना ने मेरे घर दस्तक देदी।

अपच पेट खराब और बुखार होने पर जब ये कमल के साथ डॉक्टर के पास गये तब डॉक्टर ने टेस्ट कर कोरोना बताया ।हॉस्पिटल में भर्ती हुए, मैं कमल लता सभी निगेटिव आए । पर पॉजिटिव रहा हमारा परिवार और ये दो मेरे सहयोगी बच्चे।सोसायटी ने इन्हें क्वारंटाइन रहने का आदेश दिया ।मैं घर पर अकेली पर कमल गाडी लेकर अस्पताल के बाहर खडा रहता। नर्स से हालचाल लेता और संजय की तरह हमें पल पल की जानकारी मुझे और मेरे बच्चों को देता। मेरे लिए फल दवा लाकर गार्ड से भिजवाता । बेटे के कई दोस्त डॉक्टर थे उनकी मदद से हॉस्पिटल में जल्दी बेड और चिकित्सा की सुविधा मिली। बेटियों ने गिलोई, काढा, स्टीमर यहाँ तक की पूरे घर को सेंनेटाइज ऑनलाइन करवाया ।60 से ऊपर की मेरी दोनों बेटियां जो आज भी फूर्तीली और चुस्त थीं वो अचानक बेटे बेटियों के नजर में बूढी हो गयीं । उनके बच्चों ने कहा कि अभी नाना नानी के पास जाना मतलब हमारे घर भी कोरोना आना है जहां हो वहीं रहो और ईश्वर से प्रार्थना करो ।

मेरी भी यही इच्छा थी कि सभी अपने घर में सुरक्षित रहें ।लता के न होने पर खाने की चिंता आने से पहले ही दरवाजे के बास्केट में खाने के पैकेट का तांता लग गया । सूप दलिया खिचडी बिस्किट काढा तो सोसायटी की मेरी छोटी बहने लगातार भिजवाती ही रहीं। दीपावली के दिन इनके कोरोना निगेटिव हो जाने की खुशखबरी आयी, फोन की घंटियां मंदिर की घंटी जैसी लग रही थी सभी शुभकामनाएं दे रहे थे ।90 वर्ष की आयु में बच कर आना कालजयी होना था आँखों के जलतरल में उम्मीदों के दीप जल गये जब संगीता ने दीवाली में दीये बाती और प्रसाद के लिए लड्डू भिजवाए और कहा आंटी शुभदीपावाली तो आप के घर में आई है। इनका घर लौटना कमल और लता की आंतरिक शुभेच्छा थी। आज कमल नर्स के साथ मिलकर दिन रात सेवा में लगा है लता बाबूजी के पसंद का खाना पकाने में व्यस्त है उनके बिस्तर की सफाई कर रही है और मैं सोच रही हूँ कोरोना ने जहां सबको पंगु बना दिया ,भय का जामा पहना दिया, दरवाज़े पर डर बिठा दिया वहीं इन दोनों को कैसे कोरोना ने सेवा कर्मी का कवच पहना कर हमारे प्रेम से संक्रमित कर दिया? माना मास्क, पी पी किट सेंनिटाईजर का इन्होंने ध्यान रखा पर उससे ज्यादा मुझे दिखा वो पॉजिटिव प्यार जो वो इन कुछ सालों में हमारे लिए इनके दिल में पनपा था।

कमल का एक और हुनर सामने आया है वह एक महीने में नर्स के साथ रह कर अच्छा कंपाउंडर भी बन गया है ।सोडियम की कमी और कोरोना के प्रभाव ने इनको चिडचिडा बना दिया है। बात बात में लता कमल पर आरोपों के कीचड़ उछालतें हैं पर जैसे कमल के पत्तों पर जल नहीं ठहरता वह उसी की भाँति कांतिमान बना अपने कर्तव्यों में लगा है। और मैं कलम चला कर डायरी में एक और बेटे बेटी का नाम दर्ज करने में लगी हूँ जिन्हें मैने कोरोना के दौरान पाया है।

(लेखिका सरिता चंद्रा ने कोरोना के दौरान अपने माँ के निजी अनुभवों को कलमबद्ध किया है)

सरिता चंद्रा
सेवानिवृत्त प्राचार्या

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