कोरोना का अंत

कोरोना का अंत

इक फ़्लू की है ये दासतां
जिस फ़्लू से सब बेहाल हैं,
ये फ़्लू है मेड इन चाइना,
इसे कहते ’कोविड’ प्यार से।

’कोरोना’ नाम का फ़्लू है ये,
सुनने में लगता ज्यों फूल है,
जिसे हो वही यह जानता,
ई फूल नाहीं, त्रिशूल है।

देखे हैं हमने भी फ़्लू कई,
कोई तेज और धीमा कोई,
किसी फ़्लू में तेज बुखार है,
कोई मौत का हथियार है।

किसी फ़्लू में खांसी तेज है,
कोई फ़्लू निपट अंग्रेज है,
किसी फ़्लू में होती है कंपकंपी,
किसी फ़्लू में ठंडा बुखार है।

किसी फ़्लू में छींक ही छींक है,
किसी फ़्लू की नीयत ठीक है,
जब फ़्लू की बात करे कोई,
लगता है मौत का वार है।

है आया जब से कोरोना फ़्लू,
ये बना है बायस मौत का,
दुनिया में इसका है डर ’सरन’
ये कपूत पापी चीन का।

लाखों पे इसका हुआ असर,
कोई बच गया, कोई मर गया,
हो चीन तेरा भी बुरा,
तेरा अच्छा वक्त गुजर गया।

आती है मौत भी मौत को,
ये बात समझें इस तरह,
आने को है अब वैक्सीन,
जो इस कोरोना का अंत है।

पर तब तलक रहना सजग,
जब तक ना पूर्ण विनाश हो,
ना मिलायें हाथ, न पास हों,
चेहरे पे हरदम मास्क हो।

ना डेंगू ये, ना मलेरिया,
ना चिकनगुनिया, निमोनिया,
जो सलाह तुमके दे डाक्टर,
उस मश्वरे पे अमल करो।

समझो ये दुश्मन जान का,
कुछ दूरी सबसे रखा करो,
ये फ़्लू है अलग मिजाज़ का,
जरा फ़ासले से मिला करो।

सरन घई
संस्थापक-अध्यक्ष, विश्व हिंदी संस्थान
कनाडा

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