कोरोना के साथ एकवर्षीय यात्रा

कोरोना के साथ एकवर्षीय यात्रा

2020 का यह साल भी अपने अवसान की ओर है, पर ऐसा साल रहा यह जिसने पूरी दुनिया की ही रफ्तार को थामने की कोशिश की, बहुत हद तक सफल भी रहा यह। एक वायरस-नोवेल कोरोना, जो पूरी दुनिया को डर और संशय की गिरफ्त में बाँध लेता है, सामाजिक दूरी को सुरक्षा मानक का रूप दे देता है ,सभी बंद अपने- अपने घरों में, नवीन जीवन शैली के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए। ऐसे पूर्ण सच्चाई तो यह है कि 2020 को यह सब कुछ 2019 से ही उत्तराधिकार में प्राप्त हो चुका था। दुनिया का पहला मरीज चीन के वुहान प्रांत में 19 नवंबर या 30 दिसंबर को ही (अलग-अलग स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार) कोरोना का वाहक बनकर आधुनिक विज्ञान को चुनौती देता हुआ आ खड़ा हुआ था।

वैश्विक गत्यात्मकता का युग है यह, संचार और परिवहन ने दुनिया को एक छोटे से गाँव के रूप में बाँध रखा है और इसलिए परिणाम भी इसके अनुरूप ही सामने आया – एक-एक करके 145 से अधिक देश इस संक्रमण का शिकार होते गए और हमारा भारत भी कहाँ बचने वाला था। 29 जनवरी ,2020 को केरल प्रांत में कोरोना ने अपना पहला कदम रखा और 18 मार्च, 2020 तक देश में मरीजों की संख्या लगभग 1000 तक जा पहुँची। इतना ही नहीं , लगभग 27 लोगों की जीवन- लीला को भी यह बीमारी तब तक समाप्त कर चुकी थी। सुरसा के मुँह की तरह फैलती इस बीमारी का सामना करने के लिए पहले तो 14 घंटे का जनता कर्फ्यू(22 मार्च ,2020) और तत्पश्चात 24 मार्च ,2020 से पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा की रणनीति अपनाई गई, जो क्रमवार चार चरणों में बढ़ता हुआ 30 मई, 2020 तक लागू रहा। सीमित गतिविधियाँ, प्रतिबंधों में सिमटा जीवन; भय, संदेह , अनिश्चितता , तकलीफ, चुनौती की धुंध चारों ओर और इसमें हाथ- पैर मारता मानवीय जीवन। 1 जून ,2020 से अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हुई है लेकिन अब तक (माह दिसंबर,२०२०) हमारा जीवन और उसकी विविध गतिविधियाँ प्रतिबंधों और सावधानियों के कैद से पूरी तरह कहाँ आजाद हो पाई है।

पिछले एक साल में लॉकडाउन, अनलॉक,क्वॉरेंटाइन, कंटेनमेंट जोन, सामाजिक दूरी, मास्क, सैनिटाइजर, वेंटिलेटर, पीपीई कीट जैसे शब्द आम जनता के शब्दकोश से भी मित्रता कायम करने में सफल रहे, तो दूसरी ओर कोरोना का दहशत लोगों को योग, व्यायाम जैसी शारीरिक क्रियाओं के ज्यादा करीब ले आया।शिक्षण व्यवस्था तो पूरी तरह से इंटरनेट की आश्रिता ही हो गई, वैवाहिक गठबंधन हो गया मानो दोनों में। इस विपदा में चिकित्सा की दुनिया से जुड़े लोग, पुलिस बल, प्रशासन ने अपने मजबूत कंधों पर आपदा प्रबंधन के दायित्व के निर्वहन का भार सफलतापूर्वक उठाने की कोशिश की। प्रधानमंत्री और देश की ओर से समय-समय पर इनके प्रति कृतज्ञता भी अर्पित की गई, अनेक साधुवाद दिए गए। परंतु एक कचोट रहा मन को, कोरोना प्रबंधन की व्यवस्था में लगे सरकारी शिक्षक वर्ग, जिन्होंने अपने पूरे सामर्थ्य के साथ करोना की लड़ाई में अग्रिम पंक्ति योद्धा की भूमिका अदा की, का जिक्र कहीं भी होता न दिखा।

इस पूरी अवधि में श्वेत और श्याम दोनों ही रंग देखने को खूब मिलें। जहाँ चिकित्सक, नर्सें, अन्य चिकित्सा कर्मचारी सफेद कोट में धरती पर घूमते हुए भगवान के विशेषण से विभूषित हुए, वहीं दूसरी ओर अस्पतालों की दुर्व्यवस्था, मरीजों एवं मृत शरीरों के साथ अमानवीय व्यवहार, चिकित्सा प्रणाली का लूटतंत्र, परेशान होते परिजनों के बहते आँसू-दिल को दहलाते रहें। जहाँ लॉकडाउन मेंअनेक धार्मिक -सामाजिक संस्थाओं ने आगे बढ़कर अजनबीयत से ऊपर उठकर भी जरूरतमंदों के लिए भोजन की व्यवस्था की, वहीं दूसरी ओर मोटे -मोटे मुनाफे कमाने वाले कितने ही नियोक्ताओं ने अपने कर्मचारियों को या तो वेतन ही नहीं दिया या अच्छी-खासी कटौती कर ली। कुछ को तो नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा। आजीविका छिन जाए तो क्या गुजरे, सहज ही समझा जा सकता है। अनेक परिवार निराश्रित हुए, अर्थ से भी, संबंधियों को खोकर भी। प्रवासी मजदूरों का अपने पैतृक निवास- स्थल पर जल्द से जल्द लौट आने की जद्दोजहद में लंबी -लंबी दूरियों को अपने कदमों से ही नाप लेने की जो जिद और साहस दिखा, वह शेष देशवासियों के पेशानी पर बल डालता रहा। यह चित्र भ्रम, विवशता, शोषण, असुरक्षा , अविश्वास , अव्यवस्था, संवेदनहीनता, उत्तरदायित्वबोध का अभाव जैसे कितने ही रंगों से रंगा दिखा। एक ओर तो पुलिस बल और प्रशासनिककर्मी गर्मी और बारिश के रूप में मौसम की मार को झेलते हुए सड़कों पर लोगों को इस बीमारी से बचाने के लिए संक्रमण चक्र को तोड़ने के लिए अथक प्रयास करते नजर आएँ,तो दूसरी ओर आम जनता लॉकडाउन क्या, सुरक्षा चक्र हेतु बनाए गए नियमों का आज भी मखौल उड़ाते नजर आ जाती है। मास्क ठुड्डी की शोभा बढ़ाते या चेहरे से गायब ही और दो हाथ की दूरी सार्वजनिक स्थलों पर कहाँ दिखती है? शादी -विवाह या पर्व- त्योहारों पर लोगों का आचरण कोरोनावायरस को ही चुनौती देता प्रतीत होता है। मानो हम कोरोना को कह रहे हों,”आओ देखें जरा, किसमें कितना है दम?”विपत्ति के साथ जीवन जीने की कला में तारतम्यता बिठा लेना औचित्यपूर्ण और सराहनीय है परंतु सब कुछ जानते- बुझते हुए भी अपने ही प्राणों को दाँव पर लगाकर असावधानी की पगडंडी पर चलना कितना सही हो सकता है?साथ ही यह भी तो समझना होगा कि एक की असावधानी अनेकों के लिए महँगी साबित हो सकती है, जानलेवा भी।सामाजिक दायित्व के निर्वहन का क्षेत्र और वह भी हम समझे पुलिस के डंडे के बल पर ही, शर्मनाक है।

हलाँकि कोरोनावायरस से इस जंग में कुछ उदार चेहरे भी लोगों के सामने आए। जहाँ महिंद्रा एंड महिंद्रा जैसी भारी वाहन बनाने वाली कंपनी सस्ता वेंटीलेटर का उत्पादन करने, महिंद्रा हॉलिडे रिसोर्ट का संक्रमित लोगों के लिए अस्पताल के तौर पर इस्तेमाल करने और खुद आनंद महिंद्रा का अपनी पूरी सैलरी इस उद्देश्य हेतु दान कर देने जैसे महती कार्य सामने आएँ,तो दूसरी ओर अजीम प्रेमजी की अगुवाई में विप्रोग्रुप का 1,125 करोड़ रुपए का योगदान देश में कोरोनावायरस से उत्पन्न अव्यवस्था से लड़ने के लिए खर्च करने की कार्ययोजना बनाना (अपनी सोलह सौ कर्मचारियों की टीम के द्वारा) अत्यंत प्रशंसनीय है।अक्षय कुमार जैसे नायक 25 करोड़ की राशि प्रधानमंत्री नागरिक सहायता एवं आपात स्थिति राहत कोष में दान कर एक नायाब उदाहरण पेश करते हैं, वहीं टी सीरीज जैसी बॉलीवुड से जुड़ी कंपनी ₹11 करोड़ का दान प्रधानमंत्री आपात कोष में करती है। अपने जनकल्याणकारी कार्यों के लिए प्रतिष्ठित टाटा समूह 65 सौ करोड़ रुपए की राशि जहाँ इस कोष को प्रदान करता है, वहीं अपनी सादगी और उदात्त भाव के लिए प्रसिद्ध रतन टाटा स्वयं 500 करोड़ रुपये कोरोनावायरस से उत्पन्न संकट के लिए इस आपात कोष को समर्पित करते हैं।कैबिनेट ने भी स्वास्थ्य प्रबंधन को मजबूत करने के लिए 2020- 21 एवं 2021- 22 के सांसद निधि के अस्थाई निलंबन एवं राष्ट्रपति , उपराष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री ,मंत्री एवं सांसदों के वेतन में एक साल के लिए 30% की कटौती पर मुहर लगाई। अनेक राज्य सरकारों, कई संस्थानों यथा- दिल्ली मेट्रो ,इंडिगो ,एयर इंडियाआदि ने भी इस दिशा में कुछ ऐसे ही कदम उठाए।झारखंड सरकार के लगभग दो लाख सरकारीकर्मियों ने भी अपने एक दिन का वेतन इस महामारी से लड़ाई के नाम किया।

कोरोनावायरस का गहरा दुष्प्रभाव दो क्षेत्रों में विशेष रुप से देखने को मिला-एक तो अर्थव्यवस्था और दूसरी शिक्षा- व्यवस्था। वर्ल्ड बैंक के अनुमान के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2019 -20 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर घटकर मात्र 5% रह जाएगी तो वही 2020 -21 में तुलनात्मक आधार पर अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में भारी गिरावट आएगी जो घटकर मात्र 2.8% ही रह जाएगी।एक अंतरराष्ट्रीय संस्था ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स ने अपने ताजा ग्लोबल रिपोर्ट में आकलन रखा है कि 2025 तक भारत का सकल घरेलू उत्पाद कोविड के पहले के मुकाबले 12% तक नीचे रहेगा।इस पूरे काल में सबसे बुरा असर एविएशन, पर्यटन और होटल उद्योग पर पड़ा है।भारत सरकार का 1.7 लाख करोड़ रुपए का पैकेज कोरोनावायरस के सांकेतिक मदद पर केंद्रित है जिसमें सस्ता अनाज उपलब्ध कराना मुख्य कार्य है।

शिक्षा के क्षेत्र में भले ही ऑनलाइन शिक्षण को वर्ग शिक्षण का विकल्प चुना गया, परंतु निम्न मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग, सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों, इंटरनेट की प्रभावी व्यवस्था से हीन क्षेत्रों के लिए यह चुनौती ही बना रहा। स्मार्टफोन की व्यवस्था;और अगर है भी तो एक परिवार में जितने बच्चे, उतने अलग-अलग स्मार्ट फोन की उपलब्धता, इंटरनेट के पैकेज पर खर्च-सभी इस नई शिक्षण व्यवस्था के मार्ग में व्यवहारिक बाधाएँ खड़ी कर रहे हैं। शिक्षकों के लिए तो यह और भी दुष्कर प्रणाली है। कक्षा शिक्षण की ऑनलाइन तैयारी अलग, यहाँ तक की प्रायोगिक कक्षाएँ भी ऑनलाइन और 50-50 बच्चों(ऐसे कितने ही उपवर्ग हो सकते हैं) की परीक्षाएँ लेकर अगर उनकी कॉपियाँ आप मोबाइल पर ही जाँच रहे हैं,तो मस्तिष्क, आँख और पूरे शरीर की बिगड़ी अवस्था समझी जा सकती है। राहत की बात है कि मेरे गृहराज्य झारखंड में कक्षा दसवीं और 12वीं का कक्षा-संचालन, अभिभावकों की सहमति और कुछ विभागीय दिशानिर्देशों के साथ दिनांक 21.12 .2020 से शुरू होने जा रहा है।

सारी भौतिक हानियों से सबसे ऊपर और ह्रदय विदारक क्षति इस वायरस की गिरफ्त में आकर अपनों से हाथ धो बैठना है। 20 दिसंबर, 2020 के आँकड़े बताते हैं कि जहाँ दुनिया में करोना का मामला 7 .66 करोड़ के पार हो गया है,वहीं 16.91लाख लोगों की मौत भी हो चुकी है। हालाँकि 5. 37 करोड़ मरीज ठीक भी हुए हैं। वहीं स्वास्थ्य मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार भारत में संक्रमण के कुल मामले एक करोड़ 31 हजार तक पहुँच गए, जिसमें 1,45,477 लोग काल के गाल में समा गए। 95 लाख,80 हजार लोगों का सफल इलाज संभव बन पड़ा है। मृत्यु दर जहाँ 1.45% है , वहीं मरीजों के ठीक होने की दर बहुत ही प्रशंसनीय रही-96 .1 2%। जो इस संक्रमण से खुद को बचा नहीं पाए, वो दुनिया के लिए तो एक आँकड़े में शामिल हो गए,परंतु अपनों के लिए-आह और आँसू छोड़ गए। परिवार और मानव संसाधन की अपूरणीय क्षति है यह। भावनात्मक उथल-पुथल को भी कोरोना ने खूब प्रश्रय दिया-अवसाद और घरेलू हिंसा के मामले बढ़े हुए मिले। हालाँकि इसके विपरीत ऑनलाइन कार्यप्रणाली और प्रतिबंधित जीवन ने पारिवारिक जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि भी की। मतलब कि पारिवारिक- सामाजिक स्तर पर जिसने जैसा चाहा, वैसा पाया।

चुनौतियाँ अपनी जगह,जीवन की रफ्तार अपनी जगह। इसी आपदा काल में अयोध्या में राम जन्मभूमि का शिलान्यास हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के हाथों संपन्न हुआ, इस पूरे आपदा काल में हम चीन के आगे अपने वीर सैनिकों की बदौलत सीना ठोक खड़े हैं। 29 जुलाई ,2020 को नई शिक्षा नीति, 2020 की भी घोषणा की गई जो अंतरिक्ष विज्ञानी के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति के रिपोर्ट पर आधारित है।बिहार में जहाँ विधानसभाचुनाव सफलतापूर्वक संपन्न हो गए , वहीं जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषद का चुनाव कार्य भी हुआ। इसी आपदा काल में देश सरकार और किसानों के बीच उत्पन्न हुए मतभेद के समाधान की राह भी तक रहा है।

कुछ प्रतिबंधों और सावधानियों के साथ सभी अपने अपने दायित्व निर्वहन में लग गए हैं । परंतु जब हम लॉकडाउन और कोरोना से उत्पन्न असावधानियों से झल्ला रहे थें, उस समय से ही देश -दुनिया के वैज्ञानिक और अनुसंधानकर्ता दिन- रात कार्य करते हुए कोरोनावायरस से मुक्ति के लिए वैक्सीन बनाने हेतु प्रयोगशालाओं में जूझ रहे थे। भारत दुनिया के उन पाँच -छ: देशों में शामिल है , जहाँ वैक्सीन निर्माण और ट्रायल का कार्य चल रहा है।कोरोनावायरस से जंग के प्रारंभिक चरण में जिस देश के पास वेंटिलेटर, मास्क ,टेस्टिंग लैब जैसी आधारभूत सुविधाएँ तक उपलब्ध नहीं थी, यह उस देश की इच्छाशक्ति का ही परिणाम है कि आज हम उस युद्ध से लड़ने का ब्रह्मास्त्र तैयार कर रहे हैं। हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक कंपनी, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी के साथ मिलकर ‘कोवैक्सीन’ नामक जो टीका बना रही है,वह कम कीमत वाली सबसे सुरक्षित वैक्सीन मानी जा रही है और इसलिए पूरी दुनिया की नजर उस पर है। 21 केंद्रों में 25000 लोगों पर इस वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है। इस वैक्सीन से दुनिया की जुड़ी आशा इस रूप में देखी जा सकती है कि गत 9 दिसंबर को लगभग 70 देशों के राजदूतों और राजनयिकों ने हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक का दौरा किया और इसके उत्पादन से लेकर इसकी सफलता के चार्ट के बारे में पूरी जानकारी ली। इसके अलावा मार्डना (अमेरिका),स्पूतनिक(रूस), फाइजर (अमेरिका),
जाएकोव डी(जाइडस कैडिला कंपनी, भारत), कोवीशिल्ड (सिरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, भारत) तथा और भी अनेक पर दुनिया की निगाहें टिकी हुई हैं। ये सारी वैक्सीन असंभव समय में तैयार हो रही हैं, आवश्यकता है असंभव समय में ही लोगों तक इन्हें पहुँचाया जाए। इन सारी वैक्सीन के संरक्षण हेतु तापमान, प्रभावशीलता, लागत पृथक हैं। अलग-अलग टीकों में दो खुराक के बीच की अंतराल अवधि भी अलग-अलग है।जैसे -भारत बायोटेक की दो खुराक के बीच 28 दिन का अंतराल होना चाहिए तो अमेरिका की जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी के टीके के दो खुराक के बीच 56 दिन का अंतर होना चाहिए।वैक्सीन की तैयारियों के साथ-साथ सुरक्षा एतियहात भी जरूरी है।जैसा कि संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर आधुनिक पासी का कहना है-“ऐसा ना हो कि युद्ध खत्म होने वाला था और आखिरी सैनिक मारा गया।”

वैक्सीन के इस जंग में एक तरफ वैज्ञानिक हैं तो दूसरी तरफ सरकार। वैक्सीन के उत्पादन से लेकर परिवहन, भंडारण, वितरण, टीकाकरण तक कोल्ड चेन की जरूरत होगी।दिल्ली और हैदराबाद के एयरपोर्ट पर वैक्सीन संग्रहण हेतु विशेष कार्गो टर्मिनल की व्यवस्था की गई है।फाइजर को- 70 डिग्री का तापमान चाहिए ,तो मार्डना को – 20 डिग्री, कोवीशिल्ड, कोवैक्सीन और स्पूतनिक को 2 से 8 डिग्री का तापमान चाहिए।भारत सरकार ने लक्जमबर्ग की कंपनी से कोल्ड स्टोरेज के लिए समझौता किया है, जिनके पास – 80 डिग्री सेंटीग्रेड तक वैक्सीन रखने का अनुभव है।

कोरोना के टीकाकरण के क्षेत्र में 8 दिसंबर, 2020 को ब्रिटेन ने फाइजर को टीके के आपातकालीन प्रयोग की इजाजत देकर इस पहल की दुनिया में पहला देश होने का इतिहास लिख दिया । हालाँकि वहाँ के निवासी भी टीके के विरोध में सड़क पर उतरे। प्रदर्शनकारियों का तो यहाँ तक कहना था है कि कोरोना कोई रोग है ही नहीं। विरोध का दौर पाकिस्तान में भी दिख रहा है, जहाँ लोगों को कुछ विशिष्ट वर्ग यह भी समझाते हुए दिख रहे हैं कि कोरोना के टीके से उनकी नस्लें खराब हो जाएगीं।दुबई में 10000 लोगों का टीकाकरण किया जा चुका है।बहरीन ,अमेरिका आदि देश भी आपातकालीन प्रयोग की इजाजत दे चुके हैं। टीके के अन्वेषण के साथ उसकी जाँच परीक्षा,उत्पादन, संग्रहण, वितरण आदि विविध सोपान अपनी -अपनी जगह भिन्न-भिन्न चुनौतियों से घीरे हैं ही, जनमानस की ग्राह्यता भी यक्ष प्रश्न न बन जाए।

भारत के सामने अभी दो चुनौती है-कैसे सवा अरब की आबादी को वह सुरक्षित रखता है? कैसे संकट के समय भारत दुनिया की मदद कर पाता है? फाइजर और बायोटेक, सिरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया तीनों ने ही टीकाकरण के आपातकालीन प्रयोग की अनुमति डीसीजीआई से माँगी है।भारत सरकार ने टीकाकरण अभियान के लिए गत 14 दिसंबर ,2020 को 113 पेज का गाइडलाइन जारी किया है।कोविड-19 डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाया जा रहा है जिससे लोगों को यह बताया जाएगा कि उन्हें वैक्सीन कब लगेगी, कहाँ लगेगी। 5 सदस्यों की टीम टीकाकरण हेतु होगी। अलग-अलग चरणों में अलग-अलग लोगों को टीकाकरण हेतु प्राथमिकता दी जाएगी। यथा, स्वास्थ्य कर्मियों को पहली प्राथमिकता, दूसरे चरण में कोरोना फ्रंट वारियर्स और इसी तरह अन्य। जहाँ एक ओर राज्य और केंद्र के बीच गहरे समन्वय की आवश्यकता होगी,वहीं दूसरी ओर बड़ी संख्या में टीकाकरण कर्मियों के प्रशिक्षण की भी। हमारे पास टीकाकरण के लिए दुनिया का बहुत बड़ा अनुभवी नेटवर्क है। देश में लगभग 2,40000 एएनएम हैं, जिनमें 1,24000 को प्रशिक्षण देने की योजना बन रही है। आवश्यकता जन सहभागिता की भी होगी।

कोरोनावायरस के क्षेत्र में एक बड़ी चिंता ब्रिटेन में उत्पन्न हुई नई स्थिति भी है। कोरोना की एक नई किस्म फैल रही है , जिसकी संक्रमण रफ्तार पुराने वायरस से 70 फ़ीसदी ज्यादा है और जिससे ब्रिटेन में संक्रमित हुए लोगों की कुलसंख्या ब्रिटेन के कुल संक्रमितों का दो तिहाई है। वास्तव में इस वैरीअंट को सितंबर, 2020 में ही देखा गया था और ब्रिटेन से बाहर ऑस्ट्रेलिया, इटली , नीदरलैंड, डेनमार्क ,बेल्जियम, दक्षिण अफ्रीका में भी इसके लक्षण देखने को मिल रहे हैं।इस नए वैरीअंट का नाम VUI (वैरीअंट अंडर इन्वेस्टिगेशन)2020 12 /01रखा गया है। इस नए वेरिएंट के संक्रमण को रोकने के लिए अनेक यूरोपीय देशों ने ब्रिटेन के साथ हवाई संबंध स्थगित कर दिया है। भारत सरकार की ओर से भी तत्काल 31 दिसंबर तक ब्रिटेन के लिए हवाई जहाजों के उड़ान पर रोक लगा दी गई है। वायरस का यह नया रुप- यूके स्ट्रेन, ब्रिटेन में 8 दिसंबर को पहला टीकाकरण होने के महज 12 दिन बाद चिकित्सकों और शोधकर्ताओं के लिए नई समस्या के रूप में सामने आ गया है।

एक वक्त होगा जब कोरोना भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगा, लेकिन कई सवाल छोड़कर- इस संक्रामक रोग के पीछे वुहान के वायरोलॉजी सेंटर की संदिग्ध भूमिका के पीछे का सत्य क्या है? विश्व स्वास्थ्य संगठन पर लगे प्रश्न चिन्ह कितने यथार्थ हैं? क्या दवा कंपनियों की भूमिका, जो पहले से ही कई प्रश्नों के घेरे में हैं, कोरोना के संदर्भ में भी सत्य है?

वर्तमान समय में तो ये सारे प्रश्न अंधकार की गर्त में है। साथ ही, टीकाकरण के बाद का जीवन भी कितना पूर्ववत हो पाएगा, बदली जीवन शैली दीर्घकालिक होगी या हमेशा के लिए समाप्त, टीकाकरण के बाद क्या कोरोनावायरस का पूर्ण सुरक्षा चक्र तैयार हो जाएगा, कोरोना के बदलते स्वरूप के साथ रफ्तार पकड़ रहे टीके कितने कारगर साबित होंगे, क्या अभी भी राहत की साँस मानव आबादी के हिस्से में नहीं आ पाएगी?-कुछ ऐसे ही अनुत्तरित प्रश्न अभी हमारे साथ बने रहेंगे। उम्मीद है, जिजीविषा की जय होगी।

रीता रानी,
साहित्यकार एवं शिक्षिका
जमशेदपुर, झारखंड

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