कोरोना कोंस्पिरेसी

कोरोना कोंस्पिरेसी

किसी बात को ठीक से समझने के लिए उसकी पृष्ठभूमि को समझना आवश्यक होता है | चीन से शुरू हुई इस वैश्विक महामारी को समझने के लिए भी उसकी पृष्ठभूमि जानना जरूरी है कि वह कब कैसे और किन परिस्थितियों में शुरू हुई |

नवम्बर दिसम्बर 2019 में दो महत्वपूर्ण खबरें थी जिसे टी वी या इन्टरनेट के माध्यम से पूरी दुनिया को दिखाई जा रही थी लेकिन हमारे में से बहुत सारे लोगों के लिए उन खबरों का कोई महत्व नहीं था | इसलिए हमने उन पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया | एक खबर थी हांगकांग में ‘प्रत्यर्पण बिल’ के विरोध में लाखों लोगों द्वारा किया जा रहा विरोध प्रदर्शन और दूसरी खबर थी अमेरिका-चीन के बीच ट्रेड कोल्ड वॉर |

हांगकांग किसी वक़्त ब्रिटिश उपनिवेश का भाग था | 1997 में ब्रिटेन ने उसे पचास वर्ष के समझोते के तहत चीन को सोंपा | जिसमें स्पष्ट था कि चीन सरकार हांगकांग की स्वतन्त्रता, सामाजिक, क़ानूनी और राजनैतिक व्यवस्थाओं में कोई बदलाव नहीं करेगी | हांगकांग दुनिया भर की वाणिज्यिक और आर्थिक गतिविधियों का केन्द्र है | इस समय दुनिया के अधिकांश देशों में लोकतन्त्र है लेकिन कमोबेश सभी देशों में धनबल से सत्ता तक की यात्रा आसान होती गई | यही कारण था कि चीन में 2012 में शी जिनपिंग की सरकार आने के बाद धीरे धीरे हांगकांग की संसद में चीन समर्थक धनी सांसदों की संख्या बढने लगी | इस कारण 2014 से ही छात्र लोकतान्त्रिक तरीके से चुनाव कराने के लिए आंदोलनरत थे | इस आन्दोलन को कुचलने के लिए 2018 के आखिरी महीनों में एच के एन पी ( हांगकांग नेशनल पार्टी ) पर यह कहते हुए प्रतिबन्ध लगा दिया गया कि वह चीन के प्रति घृणा और नफ़रत फैला रही है | यह सब करने के बावजूद छात्रों का आन्दोलन कम नहीं हुआ, वह जारी रहा | उचित समय पर चीन द्वारा ‘कैरी लैम’ को वहां नियुक्त किया गया | अभी तक जिन देशों से प्रत्यर्पण संधि नहीं थी वहां पर हांगकांग का कोई नागरिक गुनाह करके आ भी जाता था तो उस पर हांगकांग के कानून के अनुसार कार्यवाही होती थी लेकिन चीन चाहता था कि वह जिसे अपराधी समझता है उसे चीन के कहने पर हांगकांग चीन को सोंप दे ताकि उसे चीन सजा दे सके | ऐसा करने के लिए संसद में ‘प्रत्यर्पण बिल’ लाया गया | चीन द्वारा थोपी गई नेता ‘कैरी लैम’ का तर्क था कि इससे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के प्रति हम अधिक जिम्मेदारी निभा पायेंगे लेकिन हांगकांग की जनता इसके विरोध में थी | उनका कहना था कि अभी उन्हें बोलने की आज़ादी है लेकिन पिछले कई वर्षों से उनके यहाँ ऐसी किताबें जिनमें चीन, वहां की कम्युनिस्ट पार्टी या कम्युनिज्म के विरुद्ध लिखा गया उन पर चीन ने प्रतिबन्ध लगा दिया तथा सम्बन्धित लोगों को नजरबंद कर दिया गया | ‘अम्ब्रेला मूवमेंट’ के कई आन्दोलनकारियों को शी जिनपिंग की सरकार ने दोषी घोषित कर दिया तथा सजा की तैयारी की जा रही थी | इसलिए उन्हें जर्मनी जैसे यूरोपीय देशों में शरण लेनी पड़ी | यह किसी स्वतंत्र राष्ट्र में चीन की बढती हुई दखलंदाजी थी और प्रत्यर्पण बिल के बाद तो वह चाहे उसे उठाकर ले जा सकता था | मन चाहे वैसी सजा दे सकता था | यह हांगकांग की स्वतन्त्रता, आर्थिक और वाणिज्यिक हितों के खिलाफ था | चीन के खिलाफ बोलने वाले किसी भी नागरिक को यातनाएं देने का अधिकार था |

इस भय के कारण पुलिस ही नहीं चीन की आर्मी की तैनाती, उनके डंडों और गोलियों के बावजूद हांगकांग की 74 लाख की आबादी में से 17 लाख से अधिक युवा इस बिल के विरोध में हांगकांग की सड़कों पर उतर आए | महीनों तक आन्दोलन चला शुरूआती दौर में इस बिल की समर्थक ‘कैरी लैम’ को आखिर कहना पड़ा कि इस कानून का दूसरा ड्राफ्ट तैयार किया जाएगा जो हांगकांग के हित में होगा जबकि आन्दोलनकारियों का कहना था कि इस बिल को पूरी तरह से वापस लिया जाए क्योंकि यह हांगकांग की स्वतन्त्रता पर चीन का अधिकार है |

एक तरफ हांगकांग में प्रत्यर्पण बिल का आन्दोलन था तो दूसरी दूसरी तरफ यू एस और चीन के बीच लम्बे समय से चल रहा ट्रेड वॉर कोल्ड वॉर में बदल चुका था |

चीन की अधिक जनसंख्या के कारण सस्ते श्रम की उपलब्धता, सरकार द्वारा घरेलू कम्पनीज को दी गई विशेष छूट और नागरिकों के लोकतान्त्रिक अधिकारों के हनन के कारण उसका माल बाकि दुनिया के मुकाबले सस्ता होता | इसका परिणाम यह हुआ कि सभी देशों में आयात निर्यात के मध्य का फासला बढने लगा | ऐसे में अमरीका ने विरोध किया | अमेरीका का निर्यात घटता जा रहा था जबकि आयात बढ़ता ही जा रहा था | वर्ष 2018 में अमेरिका को अनुमानतः 419 अरब डॉलर का व्यापार घाटा हुआ | इसका संतुलन बनाए रखने के लिए उसका कहना था कि चीन अपनी घरेलू कम्पनीज को अनेक तरह की छूट ( सब्सिडी ) व अन्य सहूलियतें देना बंद करे अन्यथा वे उसके माल पर अमेरिका में टैक्स दर बढ़ाएंगे और कुछ वस्तुओं पर ऐसा करना शुरू भी कर दिया | बदले में चीन ने भी अमेरिका के माल पर टैक्स बढ़ाया पर चूँकि अमेरिका का निर्यात कम था और उसकी तुलना में चीन से आयात बहुत अधिक था इसलिए चीन को ज्यादा नुकसान होने लगा |

2018 में जब सभी देश आर्थिक संकट के भय से काँप रहे थे और चीन की 28 साल में सबसे धीमी विकास दर का जिक्र कर रहे थे तब न तो चीन की सरकार को किसी तरह का खतरा लग रहा था और न चीन के मीडिया को | वहां के प्रख्यात समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स ने अपने सम्पादकीय में लिखा कि चीन के लिए 6.6 प्रतिशत की ‘सबसे धीमी विकास दर’ के कोई मायने नहीं है | इस विश्वास के पीछे की वजह क्या थी यह चीन ही जानता था |
इन्ही परिस्थितियों के बीच अचानक चीन से दुनिया भर में अनेक विडियो और संदेश आने लगे कि चीन में एक रहस्यमय बीमारी फ़ैल गई है जिससे चलते फिरते लोग घरों में, रेस्टोरेंट में, सड़क किनारे अचानक से गिरते है, तड़पते है और दम तोड़ देते है |

हुबेई प्रान्त की राजधानी वुहान में होने वाली इस बीमारी से डॉक्टर्स भी हतप्रभ थे | बीमारी किसी को कुछ समझ नहीं आ रही थी | सिर्फ़ इतना सा लिंक मिल रहा था कि अधिकांश मरीजों का वुनान सी फ़ूड मार्केट से सम्बन्ध था | यानि कोई ऐसा कारण होना चाहिए जो उस मार्केट में हो |

अभी तक जो समाचार आ रहे थे उन पर कुछ लोग यकीन कर रहे थे कुछ नहीं | पहली बार 30 दिसम्बर 2019 को वुहान हेल्थ सर्विसेज कमीशन ने अधिकारिक तौर पर स्वीकार किया कि वुहान में कोई अज्ञात निमोनिया है जो लोगों की जान ले रहा है | अगले ही दिन यानि 31 दिसम्बर 19 को वुहान हेल्थ कमीशन ने यह भी कहा कि इस अज्ञात जानलेवा निमोनिया का हुनान सी फ़ूड मार्केट से उसका कोई लिंक है लेकिन साथ में एक महत्वपूर्ण बात कही कि इस निमोनिया का ‘मानव से मानव में संक्रमण का कोई साक्ष्य नहीं है’ यानि जिस आदमी को हुआ है उससे दूसरे आदमी में नहीं फैलेगा | चीन और शेष दुनिया के लिए यह बहुत बड़ी राहत भरी खबर थी | जिसे WHO ने भी ट्वीट किया | पूरी दुनिया आश्वस्त थी कि आगे फैले ऐसी कोई बीमारी नहीं है | यह वुहान की कोई लोकल समस्या है | सी फ़ूड मार्केट में उसका स्रोत ढूंढ कोई हल निकाल लिया जाएगा |

एहतियात के लिए 1 जनवरी 2020 को हुनान सी फ़ूड मार्केट को इस निमोनिया का स्रोत मानते हुए बंद कर दिया गया |

30 दिसम्बर 19 को वुहान के डॉ.ली.वेनलियांग ने Weibo सोशल नेटवर्क पर अपने साथी डॉक्टर्स से चैट करते हुए चेतावनी दी कि यह घातक निमोनिया कोरोना वायरस से है और आप सभी पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट ( PPE ) पहन कर काम कीजिए लेकिन यह खबर फैलते ही पब्लिक सिक्यूरिटी ब्यूरो ने अफवाह फ़ैलाने के ज़ुर्म में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया | डॉ.ली से समाज में भय फ़ैलाने के लिए माफ़ीनामा लिया गया और चेतावनी दी गई कि आगे से इस तरह की कोई बात नहीं करोगे | 10 जनवरी से इस व्हिसलब्लोअर को खाँसी और बुखार हुआ | बाद में 30 जनवरी 2020 को ज्ञात हुआ कि उन्हें भी वही रहस्यमय निमोनिया हो गया है और 7 फरवरी को उसके कारण 34 वर्षीय डॉ.ली जिन्हें अन्य कोई बीमारी नहीं थी उनकी कोरोना वायरस निमोनिया से मृत्यु हो जाती है | जबकि अब तक इस उम्र का कोई रोगी जिसे कोई अन्य बीमारी नहीं हो उसकी मौत नहीं हुई थी | पूरे चीन में Weibo पर उनकी संदिग्ध मौत और बोलने की आज़ादी पर बहस होने लगती है | आन्दोलन को कुचलने के लिए चीन सरकार शीघ्र उससे सम्बन्धित पोस्ट हटाती है | लाखों कमेंट्स डिलीट किए जाते है | इस तरह की कोई भी पोस्ट करने पर गिरफ्तारी के आदेश दिए जाते है |

24 जनवरी 2020 को प्रख्यात जर्नल लांसेट और जर्नल ऑफ़ साइंस में आर्टिकल प्रकाशित हुए जिनमें नावेल कोरोना वायरस के लक्षण बताए गए थे | यह भी बताया गया कि एक्स-रे, सी टी स्कैन या रक्त जाँच में क्या बदलाव दिखते है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात कही गई थी वह यह कि सभी मरीजों का सी फ़ूड मार्केट से कोई लिंक नहीं था |

जर्नल में रेफरेन्स दिया गया था कि 1दिसम्बर 19 को पहला मरीज ऐसा मिला जिसमें वैसा ही निमोनिया था | वे ही लक्षण थे परन्तु लाख कोशिशों के बाद भी एपिडेमियोलोजिस्ट को उसका हुनान सी फ़ूड मार्केट से कोई सम्बन्ध नहीं मिला |

10 दिसम्बर को फिर ऐसे ही तीन मरीज मिले | 1 जनवरी तक मरीजों की संख्या बढ़कर 41 हो गई उसमें से 14 मरीजों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी भी तरह से सी फ़ूड मार्केट से कोई सम्बन्ध नहीं था |

लांसेट में पब्लिश हुए आर्टिकल में लेखक ने 29 जनवरी तक 99 मरीजों का हवाला देते हुए बताया कि उनमें से 50 का सी फ़ूड मार्केट से कोई सम्बन्ध नहीं था | ठीक ऐसे ही न्यू इंग्लैंड जर्नल में 425 मरीजों में से 45 का कोई सम्बन्ध नहीं था | इतना ही नहीं 28 जनवरी 2020 तक वहां ज्ञात मरीजों में से एक तिहाई का सी फ़ूड मार्केट से कोई लिंक नहीं था | यानि मामला सुलझने की बजाय उलझता जा रहा था | कुछ भी समझ नहीं आ रहा था |

इतने सारे मरीजों का सी फ़ूड मार्केट से कोई सम्बन्ध न होने के बावजूद चीन के नेशनल हेल्थ कमिशन ने इस तरह के मरीजों के डायग्नोस्टिक क्राइटेरिया में तीन बातें रखी:

1.हुनान सी फ़ूड मार्केट से उसका सीधा सम्पर्क या लिंक होना
2.बुखार
3.वायरस के जीनोम की सिक्वेंस

10 जनवरी को नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ कम्युनिकेबल डीज़िज़ेज़ कण्ट्रोल एंड प्रिवेंशन तथा वुहान यूनिवर्सिटी ने इन मरीजों के नॉवेल कोरोना वायरस की 4 ऐसी जीनोम सिक्वेंस निकाली जो चमगादड़ों में पाए जाने वाले कोरोना वायरस से सौ प्रतिशत मिलती थी | इसका अर्थ था चमगादड़ में पाए जाने वाले प्राकृतिक वायरस का नेचुरल म्युटेशन हुआ हो तथा वह बदला हुआ वह वायरस इंसान में आया हो ऐसी सम्भवना हो सकती है |

21 जनवरी को इंस्टिट्यूट पास्च्योर ऑफ़ शंघाई तथा चाइनीज़ एकेडेमी ऑफ़ साइन्सेज़ ने सांइस चाइना लाइफ साइंसेज जर्नल में आर्टिकल पब्लिश किया कि यह वुहान वायरस सार्स वायरस 1 के जैसा ही सार्स वायरस 2 ( SARS-CoV-2 ) है जो एक इंसान से दूसरे इंसान को आसानी से संक्रमित कर सकता है |

वायरस चमगादड़ों के वायरस से मिलता जरुर था लेकिन समस्या फिर भी इसलिए नहीं सुलझ रही थी क्योंकि एक तिहाई मरीजों की सी फ़ूड मार्केट से कोई कांटेक्ट हिस्ट्री नहीं थी तो उनमें यह वायरस कैसे आया ? ( ध्यान रहे अभी तक चीन सरकार यही मानकर चल रही थी की यह वायरस मानव से मानव में नहीं फैलता है ) इतना ही नहीं वायरस के लिए सी फ़ूड मार्केट तथा चमगादड़ों को जिम्मेदार तो ठहराया जा रहा था लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि हुनान सी फ़ूड मार्केट में चमगादड़ें बेची ही नहीं जाती थी |

एक और पेपर पब्लिकेशन हुआ जिसमें बताया गया 3 फरवरी को उन्होंने वुहान वायरस की जीनोम सिक्वेंस निकाली जो पूर्व में ज्युशान में हुई महामारी के सार्स ( SARS: Severe Acute Respiratory Syndrome ) वायरस से शत प्रतिशत मिलता है | कुछ और पब्लिकेशन, झियांग एंड टीम के भी परिणाम वैसे ही थे | वुहान वायरस ठीक वैसा ही था जैसा ज्युशान सार्स वायरस था | यानि वुहान और ज्युशान में पाए गए वायरस शतप्रतिशत चमगादड़ में पाए गए प्राकृतिक कोरोना वायरस से मिलते थे |

बायो सेफ्टी लेवल 3 लेबोरेट्री के प्रोफेसर ज्योंग यांग जेन एंड टीम ने 26 फरवरी को पूरी जीनोम सिक्वेंश की पहचान कर बताया कि यह सार्स वायरस 2 ( SARS-CoV-2 ) है | इसके साथ ही उन्होंने शांघाई पब्लिक हेल्थ क्लिनिकल सेण्टर से यह जानकारी नेशनल हेल्थ कमीशन को दी तथा इस वायरस के प्रसार को रोकने के उपायों के लिए आग्रह किया |

जब नेशनल हेल्थ कमीशन की तरफ से कोई जवाब नहीं आया तो इनकी टीम ने इस वायरस से सम्बन्धित सारी जानकारी वर्ल्ड वायरोलोजी वेबसाइट वायरोलोजी.ओ आर जी पर अपलोड कर दी |

कुछ ही समय बाद नेशनल हेल्थ कमीशन की तरफ से आदेश आया कि अभी तक आपके पास जितने भी वायरस सैंपल है उन्हें तुरन्त प्रभाव से नष्ट कर दिए जाएं | उन सैम्पल्स के बारे में जानकारी, सम्बन्धित पत्र, पब्लिकेशन और डेटा कुछ भी रिलीज़ नहीं किए जा सकते है | वे सब प्रतिबंधित किए जाते है | किसी भी वेबसाइट पर अपलोड की गई जानकारी इसी समय डिलीट कर दी जाए | यानि इस निमोनिया के सम्बन्ध में चीन के वायरोलोजिस्ट माइक्रोबायोलोजिस्ट तथा अन्य सभी चिकित्सकों के बोलने या लिखने पर पाबन्दी लगा दी गई |

ये सारी पाबंदियां क्यों लगी इसका लिंक ढूँढने के लिए हमें एक बार फिर से भूतकाल में जाना होगा | वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरोलोजी के अधीन एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर की वुहान पी-4 लेबोरेट्री है | जहाँ वायरस से सम्बन्धित अकादमिक शोध की जाती है | उसमें कार्यरत डॉ.शी झेंगली ने वायरस पर बहुत काम किया और पेपर पब्लिश किए है |

डॉ.शी झेंगली ने सिंथेटिक वायरस पर चार पेपर पब्लिश किए | जिसमें उन्होंने बताया कि किस तरह से उन्होंने तीन वायरस चमगादड़ से हासिल किए और चौथा वायरस उन्होंने बनाया |

10 जून 2010 को उन्होंने वायरोलोजिस्ट्स के सामने पेपर प्रेजेंट किया कि किस तरह से उन्होंने सिंथेटिक वायरस का निर्माण किया जिसके एस-प्रोटीन हुबहू चमगादड़ के कोरोना वायरस से मिलते है तथा कोरोना वायरस की तरह ही ACE-Receptors पर जाकर क्रियाशील होते है तथा नुकसान पहुंचाते है |

चूँकि शुरूआती प्रयोग चूहों पर किए गए थे इसलिए जरूरी नहीं कि वह सिंथेटिक वायरस मानव को भी प्रभावित कर सके | क्योंकि पशु पक्षियों को बीमार करने वाले अनेक वायरस मनुष्य को प्रभावित नहीं करते है और ठीक इसका उल्टा भी होता है | यही कारण है कि अभी तक इस महामारी के कोरोना वायरस से भी किसी पशु को कोई बीमारी नहीं हुई | इसलिए डॉ.झेंगली ने 15 चूहों पर प्रयोग करने के बाद उनमें कुछ बदलाव कर बंदरों पर प्रयोग किया | क्योंकि बंदरों ( प्राइमेट्स ) पर क्रियाशील होने वाले वायरस की पूरी सम्भावना थी कि वह इंसानों पर भी वैसा ही असर करेगा |

इस प्रयोग के बाद फ्रांस के वैज्ञानिक साइमन वेन हार्प्स ने नेचर पत्रिका में आलेख लिखा कि अगर इस तरह के रिसर्च प्रोजेक्ट्स को रोका नहीं गया और इस तरह का कोई सिंथेटिक वायरस बना लिया गया तो मानव प्रजाति को कोई नहीं बचा सकता |

यह खबर कितनी महत्वपूर्ण थी यह इस बात से समझ सकते है कि 2014 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चीन को चेतावनी दी कि डॉ. शी झेंगली द्वारा सार्स ( SARS ) मर्स ( MERS ) और इन्फ्लुएंजा वायरस पर की जा रही शोध को तुरंत रोका जाए |

शोध के लिए नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ हेल्थ द्वारा दिया जा रहा फण्ड रोक दिया गया |

इतना ही नहीं कोरोना वायरस सब देशों में फैलने के बाद वैज्ञानिकों ने वायरस की जीनोम सिक्वेंस ज्ञात करने के दौरान पाया कि सार्स वायरस ( SARS-CoV-2 ) की एस-प्रोटीन में gp 120 पर चार जगह एड्स ( HIV ) वायरस की एस-प्रोटीन जो gp 41 पर होती है पायी गई है | यानि यह वायरस चमगादड़ में पाए जाने वाले प्राकृतिक कोरोना वायरस का नया अवतार था जिसमें कोरोना और एड्स वायरस दोनों के गुण थे | एड्स वायरस सबसे पहले मानव शरीर के रोग प्रतिरोधक तन्त्र को खत्म करने लगता है फिर वह इंसान किसी भी संक्रमण से लड़ने लायक नहीं रहता | HIV वायरस के इस आक्रमण के साथ कोरोना वायरस अपना असर हमारे श्वसन तन्त्र और फेफड़ों पर दिखता है |

इस विरोध और दबाव के बावजूद डॉ.शी झेंगली रुकी नहीं | उन्होंने अपना शोध चालू रखा | 14 नवम्बर 2018 को उन्होंने स्कूल ऑफ़ लाइफ साइंसेज एंड बायोटेक्नोलॉजी, शंघाई में ‘Study of Bet corona virus and it’s cross species infection’ पर पेपर प्रेजेंट किया |

वुहान में अज्ञात निमोनिया फैलने के बाद सबसे पहले शी झेंगली ने नेचर जर्नल में पेपर पब्लिश किया और बताया कि सम्भावना है कि वुहान के निमोनिया के वायरस का स्रोत चमगादड़ है |

यह ऐसा समय था जब चीन जूझ रहा था ऐसे में देश की सबसे अत्याधुनिक लैब P-4 को आगे आना चाहिए था लेकिन 2 जनवरी को लैब के डायरेक्टर ने आदेश निकाला कि लैब का कोई भी कर्मचारी किसी तरह की कोई सूचना या जानकारी किसी से साझा नहीं करेगा | फिर चाहे वह व्यक्ति हो या देश विदेश का मीडिया हो या फिर सोशल मीडिया हो | अंतर्राष्ट्रीय जाँच एजेंसीज ने P-4 लैब का निरीक्षण करने देने का आग्रह किया लेकिन उन्हें यह कह कर मना कर दिया गया कि देश इस समय वुहान में फैले निमोनिया को रोकने में लगा है ऐसे में वे ऐसा नहीं करने दे सकते और इस समय न ही उनके पास कोई वायरस सैंपल है |

3 फरवरी को डॉ.वू शिया ब्ला ने बयान दिया कि डॉ.शी झेंगली के अस्तव्यस्त मैनेजमेंट के कारण यह वायरस P-4 लैब से लीक हुआ हो सकता है | उसके अगले ही दिन वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरोलोजी के चेयरमेन डौय शू बो ने भी यही बात कही |

7 फरवरी को पीपल लिबरेशन आर्मी के मुखिया और जीव रसायन हथियारों के विशेषज्ञ चेन वुई ने वुहान की P-4 लैब पर अधिकारिक कण्ट्रोल कर लिया जबकि अब भी अज्ञात निमोनिया का स्रोत सी फ़ूड मार्केट ही बताया जा रहा था |

15 फरवरी को चीन के सोशल मीडिया पर इस खबर ने तहलका मचा दिया कि किसी इंटर्न लड़की के हाथ से P-4 लैब से यह वायरस लीक हुआ है | जबकि उससे अगले दिन सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय था उसी लैब के एक शोधार्थी का बयान कि वायरस लैब की डायरेक्टर जनरल वांग यान यी के हाथ से लीक हुआ है न कि किसी स्टूडेंट के हाथ से |

वुहान P-4 कोई सामान्य अकादमिक लैब नहीं है | चीन और फ़्रांस के मध्य कॉन्ट्रैक्ट से यह बनी थी | जिसमें फ़्रांस के प्रधानमन्त्री की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए गए थे और तय हुआ था कि फ्रेंच आर्किटेक्ट बनाएगा लेकिन जरूरत की जानकारी प्राप्त होने के बाद कांट्रेक्ट के विरुद्ध वुहान के लोकल आर्किटेक्ट ने यह काम किया | चीन ने न जाने क्या सोचकर उस लैब के भीतर मिलिट्री मैनेजमेंट ऑफिस भी बनाया | बाद में फ़्रांस ने आशंका भी जताई थी कि संभव है अकादमिक रिसर्च के अलावा चीन का बायो-केमिकल हथियार बनाने और उन पर शोध करने का भी इरादा हो | इस महामारी के बाद भी एक बार फ़्रांस ने ऐसी ही आशंका जताई थी |

पुनश्च: आज जब यह सब मैं लिख रहा हूँ तब WHO और केन्द्र सरकार की टीम हमारे मेडिकल कॉलेज में आई हुई है | उन्होंने जिस हॉस्पिटल, वार्ड, आई सी यू, लैब, कॉलेज के बारे में जो जानकारी चाही दी जा रही है | टिकट, उन पर लिखे मरीज के लक्षण, जाँच रिपोर्ट्स, दी गई दवाईयां सब कुछ उनके सामने रख दिए गए | मेरा कहने का अर्थ यही कि जब कुछ छुपाने को नहीं हो तो WHO या अन्य देशों को निरीक्षण से मना करने की जरूरत नहीं होती |

वुहान की P4 लेबोरेटरी वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरोलोजी की सब्सिडरी है जो चाइना एकेडेमी ऑफ़ साइंस द्वारा मैनेज की जाती है |

‘युहान झिमिंग’ वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरोलोजी का डायरेक्टर है और यही शख्स चाइना एकेडेमी ऑफ़ साइंस वुहान चैप्टर का हेड है | इनका डिज़ाइन और फंडिंग ‘जियान मियानहेंग’ द्वारा की जा रही है जो कि चाइना एकेडेमी ऑफ़ साइंसेज़ का उपाध्यक्ष है तथा शंघाई तकनीकी विश्वविद्यालय का प्रथम अध्यक्ष रहा है | उससे पहले यही काम ‘चेन जियु’ करता था | जो इस वक़्त चीन में रेड क्रॉस सोसाइटी का अध्यक्ष है | ‘चेन जियु’ रेड रोस सोसाइटी में भी और पहले भी अनैतिक आचरण और अनेक घोटालों के कारण कुख्यात है |

जियान मियानहेंग ‘जियान जेमिन’ का बड़ा बेटा है | अन्य सभी लोग उनके ही परिवार से निकट के रिश्तेदार | उनके पास P-4 लेबोरेटरी के अलावा शंघाई इंस्टिट्यूट ऑफ़ लाइफ साइंसेज, चाइना एकेडेमी ऑफ़ लाइफ साइंसेज, शंघाई कॉलेजज़ एंड यूनिवर्सिटीज़, शंघाई हॉस्पिटल्स, मिलिट्री हॉस्पिटल्स, लेबोरेटरी एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट, वू शी एप्टेक, फुसान फार्मास्यूटिकल है | आखिरी दो प्रोजेक्ट जियान मियानहेंग के बेटे जियांग जीचेंग के नाम है | इतना ही नहीं चीन के अधिकांश लाइफ साइंस प्रोजेक्ट्स इनके पास है तथा भारी भरकम राशी चीन सरकार द्वारा इन्हें दी जाती है |

ऐसा क्यों होता है इसके लिए जियांग जेमिन को जानना होगा |

जियांग जेमिन कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ चाइना के महासचिव भी रहे है | कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ चाइना के सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के चेयरमैन भी रहे है और चीन के राष्ट्रपति भी रहे है | चीन में वो एक ऐसी शख्सियत है जो दिन को रात कहे तो रात मान ली जाती है | इंकार करने का सामर्थ्य किसी में नहीं |

1999 में जियांग जेमिन जब सत्ता में थे तब पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने एक किताब प्रकाशित की थी नाम था ‘TRANSFINITE WAR AND ANTI-TRANSFINITE WAR’ जिसमें बताया गया है कि कमजोर राष्ट्र समर्थ राष्ट्र का सामना किस तरह से कर सकता है | उनके लेखकों में से एक चिया लियांग लिखते है कि अगर चीन और अमेरिका का आमने सामने युद्ध होता है तो हम घाटे में रहते है इसलिए पॉवर बैलेंस के लिए हमें नयी स्ट्रेटेजी अपनानी होगी | बिना किसी प्रतिबन्ध के हमें जो भी करना पड़े वो करना होगा | जैसे आतंकवाद, बायोकेमिकल वेपन्स, ड्रग ट्रेफिकिंग, ज़हर, कम्प्यूटर वायरस, पर्यावरण प्रदूषण आदि |

इन तथ्यों के अलावा कुछ और प्रश्न है जो आप सभी जानते होंगे वे भी चीन को संदेह के घेरे में खड़ा करते है :

चीन से पूरी दुनिया में फ़ैल गया लेकिन चीन के वुहान से दूसरे शहरों में नहीं फैला |

महीनों तक चीन के डेटा बताते रहे कि वुहान में 3300 लोग मारे गए है ( शेष चीन का आंकड़ा दो अंकों में ही बताया गया ) | बड़े देश के आंकड़ों में दो चार प्रतिशत ऊँच नीच की सम्भावना रहती ही है लेकिन सिर्फ़ एक ही शहर वुहान में मौत के आंकड़े बदलकर 4600 से अधिक कर दिए जाते है | आंकड़ों में अचानक से 50% बढ़ोतरी आश्चर्यजनक है | वह भी तब जब चीन कह रहा है कि अब बीमारी पर पूरा कण्ट्रोल कर लिया गया है वुहान में भी सामान्य काम काज शुरू हो गया है |

चीन में लाशें रिश्तेदारों को देने की बजाय उनका अन्तिम संस्कार सरकार द्वारा ही किया गया था | तब यह कहा गया था कि संकट खत्म होने पर उनकी अस्थियाँ परिजनों तक पहुंचा दी जाएगी | अब जो सूचना दी गई है कि किस माध्यम से प्रतिदिन कितनी अस्थियाँ पहुंचाई जाएगी और कितने दिनों तक यह प्रोग्राम चलेगा उसकी गणना करें तो 42 हजार से अधिक लोगों की अस्थियाँ पहुँचाने का कार्यक्रम बन चुका है | उचित समय पर आगे का कार्यक्रम भी बता दिया जाएगा | यानि और भी अस्थियाँ हो सकती है | जब मृत्यु तीन साढ़े तीन हजार की हुई है तो 42 हजार या उससे अधिक अस्थियाँ किसकी भेजी जा रही है ?

कुछ अंतर्राष्ट्रीय एन जी ओ का कहना है कि चीन में अचानक से जो टेलीफोन बंद हो गए है या लगातार नो रिप्लाई हो रहे है उनकी संख्या लगभग एक करोड़ है |

दुनिया भर के डॉक्टर्स वेबिनार्स कर रहे है | विडियो कॉन्फ़्रेंसिंग कर रहे है | पेपर पब्लिश कर रहे है | अपने यहाँ के डेटा बता रहे है | उनके यहाँ मरीजों के लक्षण क्या है ? ब्लड, एक्सरे, सी टी स्कैन की रिपोर्ट कैसी है उनमें क्या बदलाव आ रहे है ? साँस लेने में परेशानी पर उनका ऑक्सीजन सेच्युरेशन कितना रहता है ? कितने प्रतिशत ऑक्सीजन देने से आराम आ जाता है ? वेंटीलेटर पर लेने से बेहतर परिणाम है या बिना वेंटीलेटर ? कौन कौन सी दवाइयाँ काम में ले रहे है ? कौनसी दवाइयों के बेहतर परिणाम है ? ऐसे सभी प्रश्नों के उतर अपने अनुभवों से दे रहे है |

दुनिया भर के डॉक्टर्स नॉलेज का यह आदान प्रदान वर्षों से कर रहे है और इस कोरोना के संकट के समय भी कर रहे है क्योंकि चिकित्सक का कोई धर्म, सम्प्रदाय, देश या जेंडर नहीं होता उसके सामने उसका दुश्मन भी आए तो उसके लिए उस समय वह मरीज है उसका इलाज करना ही उसका धर्म है लेकिन चीन के डॉक्टर्स ने शुरूआती पब्लिकेशन जो हो चुके उनके बाद मौन क्यों धारण कर रखा है ?

पुनश्च: मैं न तो किसी ख़ुफ़िया एजेंसी का सदस्य हूँ और न ही चीन के मामलों का विशेषज्ञ हूँ जितनी जानकारियाँ मिली है सिर्फ उन्हें साझा कर रहा हूँ | संभावनाएं अनंत है, जानकारियों का न कोई और है न छोर है, मेरा अध्ययन बहुत सीमित है | सिक्के के दूसरे पहलू भी होंगे | ऐसी बातें भी हो सकती है जो यह साबित करती हो कि चीन मासूम है लेकिन वे बातें मेरी जानकारी में नहीं हो | पूर्ण सत्य क्या है यह तो शायद आने वाला समय ही बताए या फिर हमेशा के लिए रहस्य बन कर इतिहास के पन्नों में दफन हो जाए | अभी कुछ नहीं कहा जा सकता |

विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO ) पर भी अंगुलियाँ उठ रही है क्योंकि वहां भी सब कुछ ब्लैक एंड वाइट में नहीं है | जहाँ कुछ संदिग्ध बातें होगी वहां सवाल पूछे जाएंगे |

हर अंतर्राष्ट्रीय संगठन सम्बन्धित देश से जानकारी तो लेता ही है लेकिन अपने आँख और कान भी खुले रखता है | जरूरत होने या संदेह होने पर कि कुछ सूचनाएं छुपाई जा रही तब वह अपनी टीम भेज कर वहां की वस्तु स्थिति जानने की कोशिश करता है | WHO ने अनेक बार अनेक देशों में ऐसा किया है लेकिन इस मामले में जब 31 दिसम्बर 2019 को चीन ने सूचना दी कि वुहान में कोई अज्ञात निमोनिया से लोग मर रहे है तब से आज दिन तक वह चीन की हर एक बात पर यकीन करता गया | भले ही चीन स्वयं कितनी ही बार अपनी ही बातों से पलटा हो |

जब संभावित स्रोत सी फ़ूड मार्केट 1 जनवरी को ही बंद करा दिया गया | फिर भी मरीज बढ़ते जा रहे थे | ताइवान ने विदेश से अपने यहाँ आने वाले लोगों की स्क्रीनिंग की तथा उनमें से पॉजिटिव आने वालों की कांटेक्ट ट्रेसिंग की स्ट्रेटेजी अपनाई इसलिए बहुत कम केसेज़ हुए | उसने दिसम्बर के आखिरी दिनों में ही WHO को भी चेतावनी दी थी कि वुहान के इस निमोनिया में इंसान से इंसान में संक्रमण हो रहा है | तब भी WHO बीजिंग पर यकीन करता रहा और 14 जनवरी को भी अपने बयान से सभी देशों को आश्वस्त करता रहा कि इंसान से इंसान में संक्रमण की कोई सम्भावना नहीं है | जबकि सामान्य बुद्धि व्यक्ति के मन में भी यह प्रश्न आता है कि या तो सी फ़ूड मार्केट के आलावा कोई अन्य स्रोत था जिससे लोग संक्रमित हुए जा रहे थे या फिर इंसान से इंसान में संक्रमण हो रहा था | जो भी हो मामला इतना सीधा तो नहीं था फिर भी WHO ने न तो चीन से कोई प्रश्न किया और न ही अपनी टीम भेजकर जानकारी ली | चीन के स्वीकार करने के बाद 22 जनवरी को WHO ने भी बयान जारी किया कि इंसान से इंसान में संक्रमण होता है |

ट्रम्प तो चीन और WHO दोनों को कितनी ही बार बुरा भला कह चुके है पर 28 मार्च को जापान के उप प्रधानमन्त्री टारो आसो ने भी नाराज होते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन को चीनी स्वास्थ्य संगठन कहा | जापान जैसे छोटे से देश के लिए यह सब कहना कितना मुश्किल रहा होगा ? कितनी पीड़ा घनीभूत हुई होगी जिसने ऐसा कहने को मजबूर किया होगा |

मानव से मानव में संक्रमण फैलने का ज्ञात होने पर 22 जनवरी को WHO ने इस बात पर आपातकालीन बैठक की कि क्या इसे अंतर्राष्ट्रीय जन स्वास्थ्य आपातकाल ( PHE IC ) घोषित किया जाए ? जिसे हम वैश्विक महामारी से थोड़ा कम चेतावनी भरा कह सकते है लेकिन सदस्यों की अलग अलग राय के कारण यही कहा गया कि चीन कड़े कदम उठा रहा है इसलिए शेष विश्व पर अभी इस तरह का कोई संकट नहीं है |

23 जनवरी को फिर से WHO की बैठक हुई क्योंकि इस समय तक जापान, दक्षिणी कोरिया, थाईलैंड जैसे कई देशों में संक्रमण फ़ैल चुका था | चीन में सैकड़ों लोग संक्रमित थे और बड़ी बात की उनमें से 4 % लोग मर रहे थे | हालाँकि साइंस जर्नल ने तो अपने आर्टिकल में यह भी चेतावनी दी थी कि चीन जो संख्या बता रहा है वह कुल संख्या का मात्र 14 % है शेष 86 % तो डोक्युमेंटेड ही नहीं है | इसके बावजूद फिर अंतर्राष्ट्रीय जन स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने की बजाय इसे मध्यम स्तर की चेतावनी कह कर किनारा कर लिया गया |

इस समय WHO ने चीन से यह जानकारी चाही कि बीमारी किन हालातों में फैली, उसके क्या लक्षण है, क्या इलाज दिया जा रहा है, रोकथाम और बचाव के लिए क्या किया जा रहा है लेकिन चीन की और से कोई जवाब नहीं मिला |

चीन ने इतना ही कहा कि चीन से अन्य देशों को जाने वाले सभी यात्रियों की स्क्रीनिंग कर भेजा जा रहा है इसलिए किसी देश को कोई खतरा नहीं है | शी जिनपिंग द्वारा ट्रम्प को ऐसा यकीन दिलाने के बावजूद अमेरिका की इंटेलिजेंस ने अपने राष्ट्रपति को चेतवानी दी कि बीमारी बहुत गम्भीर है और अन्य देशों में संक्रमण हो सकता है | संभवतया ट्रम्प भी अपनी इंटेलिजेंस से अधिक शी जिनपिंग पर यकीन करते रहे लेकिन इटली में पहला केस आने पर अमेरिका ने चीन से आने जाने वाली अपनी हवाई सेवाएँ बंद कर दी | उस समय 4 फरवरी को डॉ.टेडरोस ने बयान जारी कर अमेरिका से कहा कि ऐसा करने से स्वास्थ्य का कुछ फायदा होने की बजाय भय का वातावरण बनेगा | ऐसा नहीं किया जाना चाहिए |

टेडरोस ने 30 जनवरी को अपनी आन्तरिक समिति की सिफारिश पर अंतर्राष्ट्रीय जन स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया लेकिन 26 फरवरी को भी उनका मानना था कि पूरी दुनिया में भय का माहौल बनाने और सारी व्यवस्थाओं को ध्वस्त करने का कोई फायदा नहीं | अधिक समय तक यह वायरस जीवित नहीं रहने वाला इस तर्क के साथ वैश्विक महामारी घोषित करने से वे बचते रहे |

21 फरवरी को WHO की आन्तरिक समिति ने चेतावनी दी कि अगर अब भी कदम नहीं उठाए गए तो इस वायरस को विश्वव्यापी होने और उसके फैलाव को रोकने की कोई सम्भावना शेष नहीं रहेगी | तब आनन फानन में साक्ष्य जुटाने और इसके रोकथाम के लिए क्या किया जा सकता है इस हेतु WHO ने अपनी टीम को चीन भेजा | टीम ने चीन से बीमारी के लक्षण, फैलाव, रोकथाम के उपाय तथा अन्य कई मसलों पर जानने का प्रयास किया लेकिन वुहान में चल रहे मौत के ताण्डव के कारण चीन ने इस समय कुछ भी बताने में असमर्थता जाता दी | टीम ने कई दिनों तक समझने के प्रयास किए और अपने स्तर पर जितना कुछ समझ पाई उसके अनुसार उन्होंने वापस आकर रिपोर्ट दी कि अधिक से अधिक स्क्रीनिंग और टेस्टिंग की जाए | जो पॉजिटिव आए उनको आइसोलेशन में रखा जाए तथा उनकी कांटेक्ट ट्रेसिंग की जाए | कांटेक्ट भी पॉजिटिव आए तो आइसोलेशन में और नेगेटिव आए तो क्वारेंटाइन किया जाए | इसका फैलाव रोकने के लिए भीड़ भाड़ रोकी जाए, बड़ी सभाएं, स्कूल, कॉलेज, मॉल जैसे स्थानों को बंद किया जाए ऐसे अनेक सुझाव दिए |

टीम ने अपनी यह रिपोर्ट टेडरोस को मार्च के पहले सप्ताह में दे दी | मार्च के दूसरे सप्ताह तक यह महामारी 114 से अधिक देशों में यह फ़ैल चुकी थी और सवा लाख से अधिक लोगों को संक्रमित कर चुकी | तब जाकर कोई 72 दिन बाद टेडरोस ने 11 मार्च को इसे वैश्विक महामारी घोषित किया |

इस देरी के अनेक कारण हो सकते है:

2009 में WHO के महानिदेशक मार्गरेट चान ने स्वाइन फ्लू को वैश्विक महामारी घोषित करने में बहुत जल्दबाजी दिखाई परन्तु वह इतना घातक नहीं होकर सामान्य फ्लू की तरह ही रहा | यह समस्या को ठीक से समझ न पाने की वैज्ञानिक या मानवीय भूल भी हो सकती है और साजिश भी | अनेक लोगों ने इसे फार्मा कम्पनीज और WHO के बीच गठजोड़ होने तथा टेस्टिंग और वैक्सीन से धन बनाने की साजिश भी कहा | हालांकि अगले वर्ष उसी स्वाइन फ्लू ने पूरी दुनिया में कहर ढाया और लाखों जाने गई |
संभव है कि पूर्व में मढ़े गए ऐसे भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण इस बार डॉ.टेडरोस भी हर कदम फूंक फूंक कर रख रहे हो | जिससे निर्णय लेने में शिथिलता से ऐसा हुआ हो |

दूसरी संभवना है कि वर्षों तक कोई भी संस्था चलती है तो धीरे धीरे उसमें आलसीपना, भ्रष्टाचार, पक्षपात जैसी कई दुश्प्रवृतियाँ उभरने लगती है | अनेक बार अयोग्य व्यक्तियों को पद दे दिया जाता है जिसकी जिम्मेदारी वे प्रयास के बाद भी ठीक से नहीं निभा पाते है और निर्णय लेने में देरी या चूक हो जाती है |

तीसरी सम्भावना है कि सब कुछ चीन और WHO की मिली भगत से हुआ हो | जैसा की अनेक देश कह रहे है |

विश्व स्वास्थ्य संगठन के वर्तमान महानिदेशक डॉ.टेडरोस अधानोम गेब्रियेसस चिकित्सक नहीं है बल्कि M.Sc. करने के बाद उन्होंने माइक्रोबायोलोजी मे Ph.D. की है | इथोपिया के रहने वाले है | पूर्व में इथोपिया के स्वास्थ्य मन्त्री भी रहे है | मन्त्री रहते हुए भी उन पर महामारी के वक़्त लापरवाही और भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे | महानिदेशक के लिए उनके चुनाव के वक़्त चीन ने न सिर्फ़ उनके प्रचार में सहयोग किया बल्कि उनके पक्ष में स्वयं वोट करने के साथ अपने मित्र देशों से आग्रह करके या दबाव बनाकर उन्हें वोट दिलाए |

कहने को यू एन ओ और डब्ल्यू एच ओ जैसी संस्थाएं लोकतान्त्रिक होती है लेकिन व्यवहार में हम सभी जानते है वहाँ भी जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला मामला ही होता है | शुरूआती दौर में इन सभी संस्थाओं पर परोक्ष अमेरिका की लाठी रहती थी | मोटे तौर पर किसी को अधिक आपति नहीं थी क्योंकि सबसे अधिक फंडिंग भी वही करता था और अमेरिका एक लोकतान्त्रिक देश है वहां का राष्ट्रपति डिक्टेटर नहीं हो सकता है | वह संसद के प्रति जवाबदेह होता है | धीरे धीरे चीन आर्थिक शक्ति बनने लगा तो वह इन सभी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में भी अपनी शक्ति बढ़ाने लगा | वर्तमान में यूनाइटेड नेशंस की 15 एजेंसीज में 4 के मुखिया अकेले चीन के है जबकि अमेरिका का दखल सिर्फ़ एक एजेंसी में है | इसी तरह चीन ने WHO में भी अपनी दखलंदाजी बढाई है | वह यह भी जानता था कि इसके लिए फंडिंग बढ़ानी होगी इसलिए 2014 से उसने 52% फंडिंग बढाई है | अमेरिका की फंड रोकने की धमकी के बाद 24 अप्रेल 2020 को ही चीन ने फंड और बढ़ा दिया है | वह यह भी जानता है कि अमेरिका जैसी महाशक्ति भी फंडिंग रोकने या कम करने की धमकी दे सकती है परन्तु रोक नहीं सकती क्योंकि इन अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की जरूरत सभी को रहेगी | भारत जैसे सभी देशों की चिन्ता यह नहीं की इन संस्थाओं की सत्ता उनके मित्र देश से चीन के हाथ में जा रही है बल्कि चिंता यह है कि लोकतान्त्रिक देशों से डिक्टेटर देश के हाथ में जा रही है | जिसे अपने नागरिकों की भी चिंता नहीं है | उसके लिए अपने आर्थिक हित सर्वोपरि है |

जैसी भी है सारी खींचतान के बाद भी इन संस्थाओं के महत्व से कोई इनकार नहीं कर सकता | वैश्विक स्तर पर कोई संस्था जो सभी देशों में होने वाली बिमारियों की जानकारी ले, मोनिटरिंग करे और निर्देश दे यह आवश्यक है | क्योंकि बीमारियों को हम राष्ट्रों की सीमाओं में नहीं बांध सकते | दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि कोई एक देश प्रभावित होता है तो दूसरे देश उससे सबक ले सकते है | जैसे अमेरिका से हमने सीखा की भले ही आप सुपर पॉवर हो, भले ही आपके पास विश्व का श्रेष्ठतम स्वास्थ्य सेवाओं का तन्त्र है फिर भी जिस बीमारी का कोई प्रभावी इलाज नहीं है उसकी रोकथाम यानि उचित समय पर प्रभावी लॉक डाउन आवश्यक है | इटली से हमने सीखा कि कोविड-19 के अस्पताल हमारे सामान्य अस्पतालों से अलग होने चाहिए | उन्होंने एक ही तरह के अस्पतालों में दोनों तरह के मरीज रखे जिसका खामियाजा विश्व की दूसरे नम्बर की श्रेष्ठ स्वास्थ्य सेवाओं वाले राष्ट्र को भुगतनी पड़ी | इतना ही नहीं यह COVID-19 बीमारी है | यह SARS-CoV-2 वायरस से होती है | इसके लक्षण क्या है ? कितने दिन में प्रकट होते है ? मानव शारीर के कौन कौन से अंग या तंत्र प्रभावित होते है ? उनमें कोशिकीय स्तर पर क्या परिवर्तन होते है ? एक्स-रे, सी टी स्कैन या रक्त की जाँच में क्या क्या परिवर्तन होते है यह सब बीमारी हमारे यहाँ आई उससे पहले ही हमें ज्ञात हो गया | यह सब ज्ञात नहीं होता और अचानक से यह बीमारी शुरू हो जाती तो हो सकता है इसे समझते उससे पहले ही लाखों नागरिक और हजारों चिकित्सक व स्वास्थ्यकर्मी जान गंवा चुके होते | इसलिए सभी देशों में होने वाली बीमारियों, उनके बारे में जानकारी, उन पर शोध कार्य, उनके इलाज का प्रोटोकॉल, उनका प्रभावी टीकाकरण, कम विकसित देशों तक यह सब सब्सिडी या मुफ्त में पहुँचाना ये सब कार्य WHO करता है और इसलिए उसका होना ही नहीं प्रभावी और निष्पक्ष होना बहुत आवश्यक है |

डॉ.फ़तेह सिंह भाटी
प्रोफेसर एवं साहित्यकार
जोधपुर, राजस्थान

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