सूना बैठक
ना पीड़ा ना बीमारी ना संहार
कोरोना लाया है पर्यावरण का बहार
हवा स्वच्छ, नदियाँ स्वच्छ ,
पक्षी विचरण कर रहे स्वछन्द,
ईश्वर की मार देख इंसान,
कल तक जो करता था अहंकार,
आज वही इंसान
दुबक कर बैठा है आज बेबस,
चक्र है यह ईश्वर का
कि…………..
जिंदगी ने दिखाया ये रंग
कभी जमती थी महफिल
आज है सुना सब
शिकायत कर रहे हैं दरो – दीवार
ठहाका कोई गूंजता नहीं आज
किवाड़ों पर दस्तक सुने हुआ है अरसा
बैठक भी सूना है
ताक रहे रास्ता
सोफे – कुर्सियाँ, कालीन भी है सुने
आज कोई आता नहीं |
वक्त के हाथों इतना
मजबूर हुए हम
पी. पी. ई. किट और
मास्क में लिपटे हम
जो प्रकृति का किया नाश हमने
आज वही वापस दिया उसने
बिखरी जिंदगी को लगे हैं समेटने |
अंजू मिश्रा ,
शिक्षिका ,
सूरत ,गुजरात