बोनस

बोनस आज षष्ठी का दिन है। कीर्ति सुबह उठते ही खुशी से उछलने लगी है। कारण आज बाबा को बोनस मिलने वाला है। बाबा बोनस लेकर आएँगे और फिर दुर्गा पूजा के कपड़े आएँगे। उसके बाबा दार्जिलिंग के एक चाय बागान में नैकरी करते हैं। वह फुदकती हुई अपनी माँ कुमारी के पास पहुँची और…

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पुनरावृति

पुनरावृति। चारों ओर लुढ़कते पासे हैं, दाँव पर लगी द्रोपदियाँ हैं, लहराते खुले केश हैं, दर्प भरा अट्टहास है, विवशता भरा आर्तनाद है, हरे कृष्ण की पुकार है… चारों ओर पत्थर की शिलाएँ हैं, मायावी छल है, लंपटता है, ना जाने कितनी ही अहिल्याओं की पाषाण देह है, नैनों में आत्म ग्लानि का नीर भरे,…

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अपनी शक्ति पहचानो

अपनी शक्ति पहचानो निर्भया ! अब जागो डरो नहीं, तुम उठो अपनी शक्ति पहचानो कब तलक दामिनी सी अपना मुँह छुपाओगी कोई राम हनुमान नहीं आएँगे बचाने वानर सेना भी तुम बना नहीं पाओगी कृष्ण भी चीर ना बढ़ाएगा राम के रहते भी हरी गई थी सीता दुःशासनी दुनिया में अंधे तो थे ही अब…

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अबल पुरुष

अबल पुरुष पहले रहे होंगे पुरुष प्रबल और प्रभावशाली, पर आजकल वे बड़े अबल होते जा रहे हैं। सच में, क्या कहा? आप नहीं मानते? चलिए तो मैं बताती हूं।जब से सोशल मीडिया और डेटिंग साइट का बोलबाला हुआ है तब है पुरुष, जो है, बेचारा होता चला जा रहा है।ये हम सभी को ज्ञात…

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हम अब भी आज़ाद नहीं….

हम अब भी आज़ाद नहीं…. आज़ाद हो गया है भारत, हम अब भी आज़ाद नहीं, फल-फूल रहे मुट्ठीभर लोग, सारे हुए आबाद नहीं। है कहां सुरक्षित अब भी, मेरे भारत की हर बाला, वासनांध दुष्‍टों ने जिसका, जीना दूभर कर डाला, अंधेरा रात सा हिस्‍से में आया, हो सका प्रभात नहीं आज़ाद हो गया है…

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सिवाय आकाश के

सिवाय आकाश के तुम मेरे पर कुतर देना चाहते हो चाहते हो मुझे मेरा आकाश न मिले तुम चाहते हो कि मैं तेरे पिंजरे में बंद होकर रहूँ तेरे सिखाए बोली-बात न भूलूँ मत बिगड़े तुम्हारी कोई व्यवस्था बहलता रहे तुम्हारा मन भी होती रहे तुम्हारी सेवा बराबर मगर अब मुझे भी नहीं दिखाई दे…

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अब न सहूँगी

अब न सहूँगी मारपीट अब बहुत हो गई ओछी हरकत अब न सहूँगी खौफ़ दिया क्रूर कर्मों से भँडास निकाली जी भर कर रोई मैं चुपचाप अकेले करवट बदली रात-रात भर पर न बहाऊंगी सावन अब बिजली बन कर कड़कूँगी मैं वार किया तो चुप न रहूँगी मारपीट अब बहुत हो गई ओछी हरकत अब…

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आदमी आदमखोर हो गया।

आदमी आदमखोर हो गया। आदमी आदमी न रहा, आदमखोर हो गया। लग गई उसे खून की लत ये जहां में शोर हो गया। सब भूला ताई दादी, सब भूला बहना अम्मा। मर गई इंसानियत, हो गया आज निकम्मा। गली मुहल्ला चलना मुश्किल हुआ, शहर देहात का एक ही हाल हुआ। बोल उठा जिया ये क्या…

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नया सूरज

नया सूरज चारों तरफ है फैला अनजानी आशंकाओं का घना कोहरा रुक गया जीवन बंदिशों के घेरे में आओ गढ़ें एक नया सूरज जिसकी रश्मियों के तेज में हो जाए भस्म सभी डर न रहे कोई बेटी अजन्मी रात के अंधेरे में कुचलने से बच जाए सुनहरी धूप न मसल पाए कोई उभरती कली को…

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कितनी और कैसी: आजादी ?

कितनी और कैसी:: आजादी ? आधी आबादी की आजादी कैसी और कितनी? इस पर हमेशा बात होती रहती है। कानूनी और संवैधानिक फ्रेम में सब कुछ बहुत आदर्श लगता है। समानता, स्वतंत्रता, और न्याय पाने के अधिकार सभी के लिए हैं। न्यायपालिका से संरक्षित भी हैं।लेकिन क्या स्त्री क्या पुरुष, दोनों के लिए ये किताबी…

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